यूरोपियन देशों पर भारी है लैटिन स्टाइल फुटबॉल
१२ जून २०१०हर देश का फुटबॉल खेलने का अपना अलग अंदाज होता है. खेल की लय, लंबे या छोटे पास, खिलाड़ियों की फील्ड पोजिशन यह सब रणनीति का हिस्सा होते हैं. लेकिन मैदान पर उतरते ही जब किसी टीम के खिलाफ गोल दागे जाते हैं तो रणनीति तुरंत बदल दी जाती है. इससे टीम और खिलाड़ियों की पहचान उभरती है.
फुटबॉल आज भी दो स्टाइल में बंटा हुआ है, एक यूरोपियन और दूसरी साउथ अमेरिकी यानी लैटिन स्टाइल. अक्सर यूरोपीय स्टाइल मशीनी सी लगती है. 3 फॉरवर्ड, चार मि़डफील्डर और चार डिफेंडर यूरोपियन देश लंबे समय से इसी अंदाज में खेलते आ रहे हैं.
सिर्फ हॉलैंड ने ही 1974 में 'टोटल फुटबॉल' की नई स्टाइल विकसित की थी, जिसमें किसी भी खिलाड़ी की एक पोजिशन नहीं रहती थी. पूरी टीम एक साथ हमला करती तो एक साथ बचाव भी, लेकिन यह 'लूटमार स्टाइल' ज्यादा दिनों तक सफल नहीं हो सकी.
इंग्लैंड की टीम आज भी परंपरागत शैली में ही खेलती है, जिसमें बैक से मूव बनते हैं. मिडफील्ड उसे आगे बढ़ाता है और फिर स्ट्राइकर गोल करते हैं, वहीं पर विंगर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है लेकिन डिफेंडरों को 'डी' से काफी दूर रहना पड़ता है. यूरोपियन देश इसी स्टाइल को अपनाते हैं क्योंकि लंबे हवाई पास रफ्तार को कम करते हैं और ड्रिब्लिंग और इंटरचेंज, यही इस स्टाइल की खासियत है. '
लेकिन लैटिन अमेरिकी फुटबॉल इससे अलग है, वह कला और लय की तरह है. ड्रिब्लिंग' लैटिन स्टाइल की जान है. याद कीजिए 1986 में इंग्लैंड के खिलाफ सुपर स्टार डिएगो मेराडोना की सेंटर लाइन से 'ड्रिब्लिंग और फिर गोल. पूरी इंग्लिश टीम मेराडोना को रोक नहीं पाई थी, उसके बाद वही जादू रोमारियो ने 1994 में दिखाया तो 2002 में रिवाल्डो और रोनाल्डिनो ने.
दुनिया भर में यदि ब्राजील की टीम का खेल देखने के पीछे करोड़ों लोग पागल हैं तो सिर्फ इसी वजह से कि उसकी स्टाइल न सिर्फ दर्शनीय है बल्कि वह गोल करने का अचूक अस्त्र भी है, जो ब्राजील को पांच बार विश्व चैंपियन बना चुका है.