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यूरोप के अखबारों का आईएस पर ध्यान

१७ जून २०१५

इस्लामिक स्टेट का मुद्दा लगातार यूरोप के अखबारों में छाया हुआ है. फ्रांस के एक अखबार ने टिप्पणी की है कि एक साल पहले कौन सोच सकता था कि यह आतंकवादी संगठन इतना बड़ा हो जाएगा.

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Bildergalerie ein Jahr Islamischer Staat in Mossul
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

फ्रांस के अखबार सुद-वेस्ट ने इस्लामिक स्टेट की रणनीति पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, "जून 2014 की बात है. उत्तर पूर्वी इराक में जिहादियों ने इस्लामिक स्टेट का गठन किया. उस वक्त कौन सोच सकता था कि एक साल बाद वे ब्रिटेन जितना बड़ा इलाका अपने नियंत्रण में ले लेंगे और दो बदहाल देशों, सीरिया और इराक में इस कदर फैल जाएंगे? अब हमें स्वीकारना होगा कि इस्लामिक स्टेट ने अपने नियंत्रित इलाकों में इस्लामी व्यवस्था लागू कर दी है. आतंक के साथ? जी हां, लेकिन सिर्फ आतंक ही नहीं. उन्होंने बिजली और पानी की व्यवस्था को बहाल कर दिया है, जरूरत का मूलभूत ढांचा खड़ा कर दिया है और बाजारों में कम दामों पर सामान भी उपलब्ध करा दिया है. इस तरह से इन जिहादियों ने लोगों को यह मानने पर मजबूर कर दिया है कि वे कम बुरे हैं."

पांच संकट

वहीं जर्मन अखबार "नॉय ओस्नाब्रुक साइटुंग" ने लिखा है, "एक बार की बात है, जब केवल मध्य पूर्व का संकट हुआ करता था. वही काफी पेचीदा था. आज वैसे पांच हैं. इस्राएल और फलीस्तीन के आपसी मतभेद के अलावा इराक में इस्लामिक स्टेट की समस्या खड़ी हो गयी है, सीरिया बिखर रहा है, ईरान के साथ परमाणु बातचीत चल रही है और फिर गाजा में फलीस्तीनी संगठनों हमस और फतेह का संकट है. ये सभी संकट किसी न किसी रूप में एक दूसरे पर निर्भर करते हैं. न ही ये सब और न मध्य पूर्व खुद पिछले कुछ सालों और दशकों में इस्राएल और फलीस्तीन के रिश्ते स्थायी रूप से सुधारने में कामयाब रहे हैं."

राजनीतिक दबाव

ऑस्ट्रिया के अखबार "डी प्रेसे" ने आईएस की सफलता के बारे में लिखा है, "आईएस 'खिलाफत' की स्थापना के एक साल बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल सका है. अमेरिका के नेतृत्व वाली सेना ने हवाई हमले कर खुद भी हत्याएं करने का फैसला लिया. लेकिन आईएस पर लगाम लगाने के लिए यह काफी नहीं था. आईएस को कमजोर करने के लिए उस पर सैन्य दबाव बढ़ाना होगा. साथ ही एक राजनीतिक हल की भी जरूरत है. हालांकि सीरिया संकट का अंत दिखाई नहीं पड़ता. लेकिन जब तक सीरिया में संकट रहेगा, उससे आईएस को फायदा मिलता रहेगा."

जर्मनी के "फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने" अखबार ने इराक के प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, "कई बातों को अबादी बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं, जैसे कि जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों की राजनीतिक स्थिति को जिहादियों की बढ़ती संख्या के लिए जिम्मेदार ठहराना. लेकिन और सैन्य मदद मांगने की उनकी बात सही है. हाल ही में अमेरिकी रक्षा मंत्री ने जिस तरह से इराक की सेना की बुराई की, वैसा करने से सेना मजबूत नहीं हो जाएगी, बल्कि उसे और सहायता की जरूरत है. अब तक किए गए हवाई हमले काफी नहीं हैं."

आईबी/एमजे (एएफपी)