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येरुशलम में दहशत भरे दिन

आईबी/एएम (एएफपी)२० नवम्बर २०१४

येरुशलम की एक आम सुबह. बाजार लोगों से पटा हुआ है, दुकानों में चहल पहल है. ऐसा लगता है जैसे दो दिन पहले हुए हमलों का शहर पर कोई असर ही ना पड़ा हो. लेकिन लोगों से बात करने पर दहशत का अंदाजा होता है.

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Palästina Proteste Jerusalem Westjordanland 14.11.2014
तस्वीर: Reuters/A. Awad

येरुशलम में रहने वाले इस्राएलियों और फलस्तीनियों को दशकों से दहशत में जीने की आदत है. लेकिन पिछले कुछ महीनों में डर का माहौल और बढ़ गया है. दिन दहाड़े आम नागरिकों पर हमले होते हैं. कोई नहीं जानता कि अगले पल क्या हो जाए. इसी बाजार के एक कैफे में बैठी आयलत ब्लास का कहना है कि शहर के इस हालात के साथ जीना आसान नहीं, "यह बहुत डरावना है. मुझे गलियों से गुजरते हुए भी डर लगता है. भगवान जाने कब क्या होगा."

कैफे के बाहर खड़ा टैक्सी ड्राइवर शादी भी इस डर को बखूबी जानता है. शादी अरब मूल का है. हाल ही में एक फलीस्तीनी बस ड्राइवर का शव बस में ही टंगा मिला. उसी की बात करते हुए शादी कहता है, "मुझे इतने सालों में यहां रहने और काम करने में इतना डर नहीं लगा जितना कि अब लगने लगा है. खास कर उस बस ड्राइवर की मौत के बाद." इस्राएली पुलिस कहती है कि ड्राइवर ने आत्महत्या की, पर फलीस्तीनी लोगों का मानना है कि धर्म के नाम पर उसका कत्ल किया गया.

शादी अपना पूरा नाम नहीं बताना चाहता. शहर के कुछ रास्तों पर जाते उसे अब डर लगता है, "मैं कोशिश करता हूं कि यहूदियों के धार्मिक इलाकों से ना गुजरूं क्योंकि मुझे डर है कि मुझे उसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है." टैक्सी में किसे बिठाना है, किसे नहीं, इसका भी वह ध्यान रखने लगा है, "अगर कोई यहूदी जोड़ा है, तो उसे मैं टैक्सी में बैठने देता हूं, उनसे तो कोई खतरा नहीं होना चाहिए. लेकिन अगर तीन जवान लड़के हैं, और अगर वे देखने में बहुत धार्मिक हैं, तो मैं मना कर देता हूं."

पिछले कुछ महीनों में शहर में हमले बढे हैं. मंगलवार को जिस तरह से यहूदियों के प्रार्थनास्थल पर हमला हुआ, उसे अब तक का सबसे बुरा हमला बताया जा रहा है. आयलत ब्लास के साथ कैफे में बैठे डेनियल मकोवर का कहना है, "मैं सिपाही हुआ करता था. हमें ऐसी जगह तैनात किया जाता था जो विवादित हैं. लेकिन यह डरावना है कि ऐसी जगह हमला हुआ है जिस पर कोई विवाद ही नहीं है, एक यहूदी पूजाघर में."

मंगलवार के हमले के बाद लोगों में दहशत बढ़ गयी है. फलीस्तीनी अबीर निजमेह बताती हैं कि लोग अब अपने साथ चाकू ले कर चलते हैं, "हमें डर है कि लोग बदला लेना चाहेंगे. हालात यकीनन बिगड़ेंगे, दोनों ही तरफ से. हम जानते हैं कि सभी यहूदी ऐसे नहीं हैं, पर हालात अचानक ही बिगड़ सकते हैं."

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने येरुशलम में यहूदियों के धर्मस्थल पर हुए हमले की कड़ी आलोचना की है और इस्राएल और फलीस्तीन के नेताओं से शांति स्थापित करने की अपील की है. इस हमले में चार रब्बी और एक पुलिसकर्मी की मौत हुई है.