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रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते: मोदी

२७ सितम्बर २०१६

भारत ने पाकिस्तान की कमजोर नस पर हाथ रखने का संकेत दिया है. भारतीय प्रधानमंत्री ने सिंधु जल समझौते के साथ ही दूसरी नदियों के पानी को लेकर भी रणनीति बदलने का संकेत दिया है.

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Indien New Delhi - Sitzung nach Uri Terrorangriff
तस्वीर: UNI

सोमवार को भारतीय प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल, विदेश सचिव ए जयशंकर, जल संसाधन सचिव और पीएमओ के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की. बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "रक्त और पानी एक साथ नहीं बह सकते." बैठक में यह भी तय किया गया कि वह पाकिस्तान की तरफ जाने वाली नदियों के पानी का संधि के मुताबिक भरपूर इस्तेमाल करेगा. उड़ी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में खासी तल्खी है. नई दिल्ली इस्लामाबाद को जवाब देने के लिए तमाम विकल्पों पर विचार कर रही है.

विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच सितंबर 1960 में सिंधु समझौता हुआ था. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुए उस समझौते के मुताबिक सिंधु और उसकी पांच सहायक नदियों का पानी दोनों देशों को बांटना था. एंग्रीमेंट के तहत पश्चिम की ओर बहने वाली तीन नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का नियंत्रण इस्लामाबाद को सौंपा गया. लेकिन सिंधु का 20 फीसदी पानी भारत को सिंचाईं, परिवहन और ऊर्जा बनाने के लिए मिला. वहीं पूरब की ओर बहने वाली सतलुत, व्यास और रावी का नियंत्रण भारत को मिला. समझौता इस बात पर भी हुआ कि 1970 तक दोनों देश सभी छह नदियों का पानी बांटेगे. इस दौरान वे अपने यहां नहर सिस्टम विकसित करेंगे ताकि बाद में परेशानी न हो. लेकिन नहर सिस्टम तैयार करने के बजाए दोनों देशों ने अपने अपने हिस्से में आई नदियों को बांट सा लिया. चीन के तिब्बत से निकले वाली सिंधु पाकिस्तान की सबसे बड़ी नदी है. चीन सिंधु जल समझौते में पक्षकार नहीं है. ऐसे में अगर चीन सिंधु नदी को लेकर कोई फैसला करेगा तो उसका असर भारत और पाकिस्तान दोनों पर पड़ेगा.

उत्तर से पाकिस्तान में दाखिल होने वाली सिंधु पूरे देश से गुजरते हुए अरब खाड़ी में गिरती है. सिंधु के अलावा रावी, झेलम, चिनाब और सतलुज भी भारत से पाकिस्तान की ओर बहती हैं. पाकिस्तानी पंजाब और सिंध की पूरी खेती झेलम, चिनाब, रावी और सतलुज पर टिकी है. भारत और पाकिस्तान के बीच हुए तीन युद्धों (1965, 1972 और 1999) के बावजूद जल समझौते पर आंच नहीं आई. लेकिन अब बदलाव की बात होने लगी है.

भारत तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट को बहाल करने पर भी समीक्षा करेगा. पाकिस्तान की आपत्ति के चलते इस प्रोजेक्ट को 1987 में निलंबित कर दिया गया था. पाकिस्तान का आरोप है कि तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट का भारत सामरिक इस्तेमाल भी कर सकता है. साथ ही वुलर बांध बनाकर भारत पानी का रुख झेलम की ओर भी मोड़ सकता है. ऐसा हुआ तो पाक प्रशासित कश्मीर और पाकिस्तान को सूखे का सामना करना पड़ेगा.