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राजनीतिज्ञों पर भेदभाव का आरोप

१५ फ़रवरी २०१३

कोलकाता के यौनकर्मियों और किन्नरों में इस बात से गहरी नाराजगी है कि राजनीतिक नेता एक दूसरे को अपमानित करने के लिए उनसे तुलना करते हैं. उन्होंने मानवाधिकार आयोग से शिकायत की है.

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तस्वीर: AP

यौनकर्मियों और किन्नरों ने मानवाधिकार आयोग से अपील की है कि वह राजनीतिज्ञों पर उनसे तुलना बंद करने के लिए दबाव डालें. यौनकर्मियों के लिए काम करने वाली कोलकाता की गैरसरकारी संस्था दुर्बार महिला समन्वय समिति और एसोसिएशन आफ ट्रांसजेंडर्स इन बंगाल ने आयोग में शिकायती याचिका दर्ज की है. आयोग के अधिकारियों ने कहा कि वे खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं. आयोग ने इस मामले की जांच और जरूरी कार्रवाई का भरोसा दिया है.

पश्चिम बंगाल में हाल के दिनों में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी वाममोर्चा के नेताओं के बीच तल्खी लगातार बढ़ रही है. एक-दूसरे के खिलाफ पैनी टिप्पणियों की होड़ में हर नेता दूसरे को पछाड़ने के फेर में है. इसकी वजह से राज्य में सियासत छिछले स्तर पर पहुंच गई है. इस होड़ में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी माकपा के नेताओं में कोई पीछे नहीं है. नेताओं द्वारा इस्तेमाल होने वाली भाषा ने बंगाल की राजनीतिक संस्कृति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.

ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के वरिष्ठ नेता देवब्रत विश्वास ने हाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की यौनकर्मियों से तुलना करते हुए उस पर 'राजनीतिक वेश्यावृत्ति' का आरोप लगाया था. इस बयान पर बढ़ते विवाद के बाद हालांकि उन्होंने बिना शर्त माफी मांग ली थी, लेकिन तृणमूल भला कहां चूकने वाली थी. तृणमूल नेता व शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने राज्य में वामपंथी सरकार के कार्यकाल में सीपीएम के अत्याचार के खिलाफ कुछ कर पाने में असमर्थ रहने पर फारवर्ड ब्लॉक की तुलना किन्नरों से की. हकीम ने कहा, "वह (फारवर्ड ब्लाक) तो किन्नरों से भी गई-गुजरी है."

Mamta Bannerjee
गिरती राजनीतिक संस्कृतितस्वीर: DW

यौनकर्मियों के हितों में काम करने वाली दुर्बार महिला समन्वय समिति की परियोजना निदेशक भारती दे कहती हैं, "फारवर्ड ब्लाक नेता की अपमानजनक टिप्पणी से यौनकर्मियों को आघात लगा है. हम लोग लंबे समय से वेश्या शब्द की बजाय यौनकर्मी का इस्तेमाल करने की लड़ाई लड़ रहे हैं क्योंकि यह शब्द काफी अपमानजनक है." वह कहती हैं कि फारवर्ड ब्लाक नेता की टिप्पणी इस पेशे से जुड़े लोगों का अपमान है. भारती कहती है कि राजनेताओँ को हमारे अधिकारों का अहसास करते हुए यह समझना चाहिए यह भी रोजी-रोटी कमाने के दूसरे पेशों की तरह ही है. इसीलिए हमने मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया है ताकि राजनेताओँ समेत कोई भी व्यक्ति इस पेशे का अपमान नहीं कर सके.

एसोसिएशन आफ ट्रांसजेंडर्स इन बंगाल की सचिव रंजीता सिन्हा कहती हैं, "हमारे समाज में तीन तरह के सेक्स को मान्यता मिली है, पुरुष, महिला और किन्नर. इन सबके अधिकार समान हैं. भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में किन्नरों को मान्यता मिल रही है. अब तो आधार कार्ड में भी तीसरे सेक्स को मान्यता मिल गई है. ऐसे में उससे भेदभाव करना उचित नहीं है." वह कहती हैं कि राजनीतिक बयानबाजी अपनी जगह है. लेकिन उसमें अगर किन्नरों व यौनकर्मियों को निशाना बनाया गया तो हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. रंजीता कहती हैं कि तमाम संगठनों ने मानवाधिकार आयोग से इस बारे में दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया है ताकि भविष्य में कोई अपमानजनक तरीके से हमारा जिक्र नहीं करे. वह कहती हैं, "अगर मंत्री व राजनेता ही ऐसी टिप्पणियां करेंगे तो हम जिन अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं उसमें कभी कामयाबी नहीं मिलेगी."

बेचारे राजनेताओं को यह अहसास तक नहीं था कि उनकी टिप्पणी से नाराज यौनकर्मी और किन्नर पलटवार भी कर सकते हैं. समाजविज्ञानी नीतीश बागची कहते हैं, "एक-दूसरे पर हमला करने की होड़ में राजनेताओं की बयानबाजी का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. ऐसे में उसी तबके के लोगों ने उनको सबक सिखाने की ठानी है जिसे समाज में काफी ओछी निगाहों से देखा जाता है. अब शायद राजनेता इससे सबक लेकर अपनी भाषा पर संयम रखें."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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