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रूमी पर भिड़े तीन देश

३० जून २०१६

सूफी संत रूमी विश्व के सबसे अधिक चाहे जाने वाले कवियों में हैं. अब ईरान और तुर्की की उन्हें हड़पने की कोशिशों ने अफगानिस्तान को नाराज कर दिया है. रूमी 8 सदी पहले अफगानिस्तान में ही पैदा हुए थे.

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Mawlana Jalaluddin Muhammad Rumi
मौलाना रूमीतस्वीर: picture-alliance/CPA Media

तेहरान और अंकारा ने इस साल मई में संयुक्त राष्ट्र की "विश्व यादगार" रजिस्टर में जलालुद्दीन मुहम्मद रूमी की रचनाओं को अपनी साझा धरोहर के रूप में दर्ज करने को कहा. यह रजिस्टर संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक संस्था यूनेस्को के तहत आता है और इसे 1997 में आर्काइव, पत्र व्यवहार और लेखन जैसी विश्व की दस्तावेजी धरोहरों की रक्षा के लिए बनाया गया था, खासकर विवादग्रस्त क्षेत्रों के लिए.

अफगान सरकार ने इस पहल की निंदा की है जिसमें मुख्य रूप से फारसी साहित्य के सबसे प्रभावी कृतियों में से एक मसनवी ए मानवी के 25,600 शेर हैं. रूमी अमेरिका के बेस्ट सेलिंग कवियों में शामिल हैं और उनकी रचनाओं का अनुवाद 23 भाषाओं में हुआ है. उनकी जीवनी पर हॉलीवुड में एक फिल्म बनाने की भी चर्चा है जिसमें लियोनार्डो डिकैप्रियो की मुख्य भूमिका निभाने की चर्चा थी. इस पर विवाद भी हुआ कि हॉलीवुड को रूमी की भूमिका निभाने के लिए कोई मुसलमान अभिनेता नहीं मिला और #RumiWasntWhite हैशटैग चल पड़ा.

Türkei Mausoleum von Mevlana Celaleddin Rumi und Hadschi-Bektasch-Moschee
तुर्की में मौलाना की कब्रतस्वीर: picture alliance/blickwinkel/imagesandstories

अफगानिस्तान के संस्कृति मंत्रालय का कहना है कि कवि और दार्शनिक रूमी का जन्म अफगानिस्तान के बल्ख में हुआ और उन्होंने देश को गौरवान्वित किया. मंत्रालय के प्रवक्ता हारुन हकलिमी ने कहा कि यूनेस्को ने अफगानिस्तान से इस प्रस्ताव के बारे में कभी नहीं पूछा. अफगानिस्तान का कहना है कि उसे उम्मीद है कि वह यूनेस्को को समझा पाएगा कि रूमी पर अफगानिस्तान का ज्यादा दावा बनता है.

अफगान बच्चे प्राइमरी स्कूल में रूमी की कविताएं पढ़ते हैं. उनके लिए रूमी मौलाना जलालुद्दीव बल्ख, मौलाना या सिर्फ बल्खी हैं. अधिकतर शोधकर्ता इस पर सहमत हैं कि रूमी का जन्म 1207 में अफगानिस्तान के बल्ख में हुआ था. हालांकि इस पर भी विवाद रहा है. कुछ लोगों का कहना है कि उनका जन्म उस इलाके में हुआ था जो आधुनिक ताजिकिस्तान में है और बल्ख के नाम से ही जाना जाता है. इस समय बल्ख छोटा अफगान कस्बा है लेकिन 1221 में चंगेज खान के हमले तक यह बौद्ध और फारसी साहित्य व संस्कृति का केंद्र हुआ करता था.

युवा रूमी अपने परिवार के साथ भागकर तुर्की चले गए जहां उन्होंने अपनी ज्यादातर जिंदगी बिताई. उनकी मौत 1273 में कोन्या शहर में हुई. वहीं उनके बेटे ने पिता की शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए नाचते दरवेशों का समुदाय बनाया. लेकिन अफगानों के लिए वे अफगान बच्चे हैं और उस घर को सुरक्षित रखा गया है जहां माना जाता है कि उनका जन्म हुआ था. बल्ख प्रांत के शक्तिशाली गवर्नर जनरल आता मोहम्मद नूर ने संयुक्त राष्ट्र में देश के राजदूत से यूनेस्को के कदम का विरोध करने को कहा है. उनका कहना है कि मौलाना को दो देशों तक सीमित कर हम उनके वैश्विक शख्सियत के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं जो दुनिया भर में सराहे जाते हैं.

Tannoura Dance Troupe in Kairo
दरवेश नृत्यतस्वीर: picture-alliance/dpa

बल्ख यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सादिक उसयान का भी कहना है कि रूमी अफगानिस्तान की संस्कृति और उसकी पहचान का हिस्सा हैं. इन दोनों को अलग करना अपमान के अलावा अफगानिस्तान को खतरा भी समझा जाएगा. काबुल में यूनेस्को के एक प्रतिनिधि रिकार्डो ग्रासी ने दलील दी है कि कहीं कोई गड़बड़ हुई है. उन्होंने कहा, "कोई देश, प्रतिनधिमंडल या एकल इंसान इस प्रोग्राम के लिए प्रस्ताव दे सकता है." उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव पर अभी विचार होना बाकी है. बल्ख के प्रांतीय संस्कृति विभाग के डाइरेक्टर सालेह मोहम्मद खलीक का कहना है कि अफगानिस्तान का जिक्र किए इसे मानना स्वीकार्य नहीं होगा. वे कहते हैं, "मौलाना अफगानिस्तान के हैं."

इस विवाद पर रूमी क्या सोचते यह उनकी रचनाओं में दिखता है. 2007 में अफगानिस्तान, ईरान और तुर्की ने यूनेस्को के साथ मिलकर रूमी की 800वीं जयंती मनाई थी. इस मौके पर उनके सम्मान में जारी मेडल में उनका एक विख्यात शेर था, "मैं रिश्तेदारों और इंसानों में फर्क नहीं करता."

एमजे/ओएसजे (एएफपी)