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रूसी सेना पर अपने ही जवानों को मारने के आरोप

२३ सितम्बर २०१०

रूसी सेना के सैकड़ों जवान हर साल आत्महत्या कर रहे हैं. कई जवान संदिग्ध परिस्थितियों में मारे जा रहे हैं. अब कई परिवार और मानवाधिकार संगठन अपनी सेना पर जवानों के अंगों के बेचने के आरोप लगा रहे हैं. रूस सरकार चुप.

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रूसी सैनिकों में बढ़ती खुदकुशीतस्वीर: AP

जवान रूसी सेना अब दुनिया के किसी हिस्से में युद्ध नहीं लड़ रही है. सैनिक अपने वतन में ही तैनात हैं. लेकिन इसके बावजूद कई जवान आत्महत्या कर रहे हैं. सैन्य अधिकारियों पर आरोप लग रहे हैं कि वे जवानों को प्रताड़ित कर रहे हैं. मौत को गले लगाने वाले जवानों के खून और अंगों के बेचने की रिपोर्टें भी सामने आ रही हैं.

अपनी और मां बाप की मर्जी के खिलाफ 19 साल के रोमान सुसलोव को रूसी सेना में रंगरुट बनकर जाना पड़ा. रुंगरुट सुसलोव ट्रेन में अफसरों के साथ सवार हुआ. उसके मां बाप का कहना है कि चार दिन की ट्रेन यात्रा के दौरान वह लगातार एसएमएस भेजता रहा. फिर उसने फोन किया और कहा, ''मुझे डर लग रहा है कि कोई मुझे बात करते हुए सुन या देख न ले. ये लोग या तो मुझे मार देंगे या काट देंगे.''

अगले दिन खबर आई कि 19 साल के सुसलोव ने आत्महत्या कर ली. वह ट्रेन के टॉयलट में गया और बेल्ट से खुद को फांसी लगा दी. सेना के जांचकर्ताओं ने साबित कर दिया सुसलोव ने आत्महत्या की. लेकिन आरोप है कि उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया. सुसलोव का शव जब घर पहुंचा तो कफन के ऊपर एक चिट पर लिखा गया था कि इसे न खोले. परिवार वालों ने शक जताते हुए जब कफन खोला तो उनकी आंखें फटी रह गई. सुसलोव के शरीर को मामूली ढंग से सिला गया था. परिवार का आरोप है कि उनके बेटे के शव से कई भीतरी अंग गायब थे.

सुसलोव के परिवार के अलावा मानवाधिकार संगठन भी सेना पर जवानों के अंग और खून बेचने के आरोप लगा रहे हैं. ऐसे सात और मामले हैं जिनमें इसी तरह का संदेह जताया जा रहा है. लेकिन इन आरोपों पर रूसी सरकार और सेना चुप्पी साधे बैठे हैं.

ये घटनाएं सैकड़ों रूसी युवकों से जुड़ी हैं. वे मरे मन से सेना की नौकरी कर रहे हैं. और जब पानी सर से ऊपर निकल जाता है तो आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं. 2009 में 137 रूसी सैनिकों ने आत्महत्या की. 100 से ज्यादा फौजी सैन्य दुर्घटनाओं में मारे गए. 20 जवानों की जान सड़क हादसों में हुई. 2008 में 200 से ज्यादा जवानों ने खुदकुशी की.

रूस में लड़कों को अनिवार्य रूप से एक साल सैन्य सेवा करनी पड़ती है. अगर जवान लड़के किसी अन्य क्षेत्र में मेधावी हैं तो उन्हें सेना के बजाए एक साल नागरिक सेवा करनी पड़ती है. वरना सेना में तो जाना ही है. एक साल की नौकरी में उन्हें तनख्वाह और छुट्टियां न के बराबर मिलती है. भ्रष्टाचार ने भी आम आदमी की नाक में दम कर रखा है. कई लोग कहते हैं कि अमीर लोग मोटी रिश्वत देकर अपने बच्चों को सेना में जाने से बचा लेते हैं. जिन लोगों के पास इतने पैसे नहीं होते उनके बच्चे सेना में जाते नहीं, खींचे जाते हैं.

दुनिया भर के मीडिया में अब रूसी सैनिकों की संदिग्ध मौतों की चर्चा होने लगी है. सरकार के कड़े शिंकजे के बावजूद अब रूसी मीडिया भी इन मामलों को उठाने लगा है. सैनिकों की माताएं कई संगठन बनाकर जवाब मांग रही हैं. लेकिन अब तक मायूसी ही हाथ लगी है. 1990 में मदर्स राइट्स के नाम से संगठन शुरू करने वाली वेरोनिका मारचेंको कहती हैं कि हर साल हजार से ज्यादा रूसी सैनिक बिना युद्ध के मारे जा रहे हैं.

मानवाधिकार संगठनों के पास ऐसे जवानों की कई चिट्ठियां हैं जिन्होंने बाद में आत्महत्या कर ली या संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई. रूसी रक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक हर साल औसतन 500 रंगरुट बिना किसी लड़ाई संबंधी वजह के मारे जाते हैं.

ऑर्गन ट्रेड पर नजर रखने वाले भी कह रहे हैं कि चीन, रूस, बेलारूस, रोमानिया, यूक्रेन और माल्दोवा जैसे देशों में अंगों की चोरी और खरीद फरोख्त का जाल फैलता जा रहा है. विशेषज्ञ याद दिलाते हैं कि एक जमाने में मॉस्को की खुली सड़कों पर गरीब सोते नहीं थे. उन्हें डर सताता था कि रात में कोई उन्हें मारकर उनके अंग बेच न दे. ताजा आरोपों के बाद इस तरह का डर सैनिकों को सता रहा है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ ओ सिंह

संपादन: एस गौड़