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रेडिएशन मामला: डीयू के ख़िलाफ़ कार्रवाई

२९ अप्रैल २०१०

राजधानी दिल्ली के मायापुरी इलाके में मिला परमाणु कचरा दिल्ली विश्वविद्यालय से आया था. अब दिल्ली विश्वविद्यालय से रिपोर्ट की मांग की जा रही है. यूनिवर्सिटी ने लापरवाही से कोबाल्ट-60 लगी मशीन को कूड़ें में बेच दिया.

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दिल्ली पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि 1968 में दिल्ली विश्वविद्यालय ने कनाडा से गामा इरेडिएटर नाम की एक मशीन खरीदी थी जिसमें कोबाल्ट-60 लगा हुआ था. यह मशीन 1985 से यहां के रसायन शास्त्र विभाग की एक लैब में पड़ी थी और इसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा था. इसीलिए इस साल फरवरी में इसे बेच दिया गया था. आम तौर पर यह मशीन रसायन विज्ञान के छात्रों द्वारा प्रयोगशाला में प्रशिक्षण करने के काम आती है. यूनिवर्सिटी से कबाड़ में खरीदी गई इस मशीन के बाद में टुकड़े किए गए जिसके कारण इस पर लगी लेड की परत टूट गई और कोबाल्ट लीक होने लगा. पुलिस ने बताया कि रेडिएशन के शिकार हुए मज़दूरों ने इसकी पहचान कर ली है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर दीपक पेंटल ने विश्वविद्यालय की ओर से माफ़ी मांगते हुए इसकी ज़िम्मेदारी ली है. पेंटल ने बताया की विश्वविद्यालय ने इस मामले की छानबीन करने के लिए तीन सदस्यों की कमेटी बनाई है जिसमें बाहर के विशेषज्ञ भी शामिल हैं. उन्होंने कहा, "मैं जानता हूं कि किसी भी तरह से इस नुक़सान की भरपाई नहीं की जा सकती. हम चाहते हैं कि इस मामले की पूरी तरह जांच हो ताकि भविष्य में ऐसा कुछ भी होने से रोका जा सके. हमें इस घटना से सबक लेना चाहिए."

वहीं भारत की परमाणु ऊर्जा नियंत्रण समिति के प्रमुख एस एस बजाज ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि विश्वविद्यालय को परमाणु ऊर्जा नियंत्रण समिति को इसकी सूचना देनी चाहिए थी ताकि वो सही तरीके से उसे वहां से हटा सकें. उन्होंने कहा, "अभी हम दिल्ली विश्वविद्यालय का परमाणु पदार्थ खरीदने और रखने का लाइसेंस रद्द कर रहे हैं. बाकी कार्यवाही हम बाद में करेंगे."

रसायन विभाग के अधिकारीयों से पूछताछ जारी है. साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय से रिपोर्ट की मांग की है. सरकार अब सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों को परमाणु सामाग्री के बारे में ट्रेनिंग देनी के बारे में भी सोच रही है. परमाणु रेडीएशन के कारण अब तक एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है और सात अभी अस्पताल में हैं. इन में से एक की हालत गंभीर बताई जा रही है.

रिपोर्ट - एजेंसियां/ईशा भाटिया

संपादन: ओ सिंह