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रेप के मामलों में सुलह का प्रयास गलत

२ जुलाई २०१५

महिलाओं की सुरक्षा पर दो अहम फैसले. एक दिन की बच्ची को असुरक्षित छोड़ने के लिए मां-बाप को पांच साल कैद की सजा मिली तो सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के दोषी और पीड़ित के बीच मध्यस्थता के प्रयास को पीड़ित के खिलाफ बताया.

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तस्वीर: DW/S. Waheed

भारत के उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बलात्कार मामलों में दोषी और पीड़ित के बीच मध्यस्थता अथवा सुलह का प्रयास पीड़ित के सम्मान के खिलाफ और त्रुटिपूर्ण निर्णय है. शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश के एक बलात्कार मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बलात्कार के मामलों में अदालत द्वारा मध्यस्थता अथवा सुलह करने का निर्देश दिया जाना असाधारण त्रुटि है. जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने यह फैसला मध्य प्रदेश में निचली अदालत द्वारा रेप के आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया.

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि इन मुद्दों पर नरम रूख नहीं अपनाया जा सकता. न्यायालय का इशारा मद्रास उच्च न्यायालय के हाल के उस फैसले की ओर भी था, जिसके एक न्यायाधीश ने पीड़िता से सुलह के लिए निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए एक युवक को जेल से छोड़ने का आदेश दिया था. बलात्कार की घटना 2002 की थी. उस वक्त पीड़िता की उम्र केवल 15 साल थी. न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में मध्यस्थता अथवा सुलह सफाई का अदालत द्वारा मौका देना पीड़िता के सम्मान के खिलाफ है. शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला का शरीर उसका मंदिर होता है और उसे अपवित्र करने वालों को मध्यस्थता के लिए रिहा करने का आदेश देना उचित नहीं कहा जा सकता.

तमिलनाडु के कुड्डालोर से 80 किलोमीटर दूर गांव में रह रही रेप की शिकार हुई अनब्याही मां ने अभियुक्त को बेल दिए जाने का विरोध किया है और कहा कि आरोपी को जमानत देते वक्त जज ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि पिछले सात सालों के दौरान मैं किन हालात से गुजरी हूं? 2008 में जब पीड़िता सिर्फ 14 साल की थी, तब गांव के ही एक आदमी ने उसे कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिलाकर पिलाया और उसके साथ रेप किया. लड़की के माता-पिता पर गर्भपात कराने के लिए काफी दबाव भी डाला गया. साल 2014 में निचली अदालत ने आरोपी को सात साल की सजा और दो लाख रूपये के जुर्माने की सजा सुनाई. इसके खिलाफ दोषी ने हाईकोर्ट में अपील की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए जज ने सुलह का आदेश दिया था.

लड़कियों की सुरक्षा के लिए एक अन्य अहम फैसले में घटते लिंगानुपात के लिए कुख्यात मध्यप्रदेश के मुरैना जिले की एक अदालत ने अपनी एक दिन की नवजात बच्ची को खेत में लावारिस हालत में छोड़ने वाले मां-बाप को पांच साल की कैद और एक-एक हजार रूपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई है. न्यायाधीश ने अपने फैसले में नवजात कन्या को असुरक्षित छोड़ने वाले मां-बाप को सामाजिक अपराधी की संज्ञा देते हुए कहा कि इस प्रकार के घिनौने कृत्य को अंजाम देने वाले माता-पिता कतई सहानुभूति के पात्र नहीं हैं. जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक मुरैना जिले में 1000 लडकों पर 840 लड़कियां हैं.

एमजे/एसएफ (वार्ता)