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लक्ष्मी के संघर्ष को सम्मान

५ मार्च २०१४

16 साल की उम्र में एसिड हमले की शिकार हुई लक्ष्मी को इस साल का इंटरनेशनल विमेन ऑफ करेज अवॉर्ड दिया गया है. उन्हें भारत में महिलाओं पर होने वाले एसिड हमलों के खिलाफ शुरू किए संघर्ष के लिए ये पुरस्कार दिया गया है.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

लक्ष्मी के अलावा 10 और देशों की महिलाओं को महिला अधिकारों के लिए संघर्ष में उनके कामों के लिए ये पुरस्कार दिया गया है. अमेरिका के विदेश मंत्रालय के ऑडिटोरियम में लक्ष्मी की भावनाएं, जो कविता में उतरीं, वो सीधे लोगों के दिलों तक पहुंची. उन पर एसिड फेंकने वाले के लिए उन्होंने कहा, "आपने तेजाब मेरे चेहरे पर नहीं, मेरे सपनों पर डाला था, आपके दिल में प्यार नहीं, तेजाब हुआ करता था. आप मुझे प्यार की नजर से नहीं, तेजाब की नजर से देखते थे, मुझे दुख है, इस बात का कि आपका नाम
मेरे तेजाबी चेहरे से जुड़ गया है. वक्त इस दर्द को कभी मरहम नहीं लगा पाएगा, हर ऑपरेशन में मुझे तेजाब की याद दिलाएगा, जब आपको यह पता चलेगा की जिस चेहरे को, आपने तेजाब से जलाया, अब मुझे उस चेहरे से प्यार है, जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी, वो वक्त आपको कितना सताएगा, जब आपको यह बात मालूम पड़ेगी, कि आज भी मैं जिंदा हूं, अपने सपनों को साकार कर रही हूं..."

2005 में नई दिल्ली के खान मार्केट में बस स्टॉप पर खड़ी 16 साल की लक्ष्मी के चेहरे पर उसके दोस्त के एक भाई ने एसिड फेंक दिया था. कारण यह था कि लक्ष्मी ने उसके प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. लक्ष्मी तब से अपने और अपने जैसी और महिलाओं के लिए संघर्ष कर रही हैं और एसिड हमला करने की प्रवृत्ति के खिलाफ भी. समाचार एजेंसी पीटीआई को लक्ष्मी ने बताया, "इस अवॉर्ड के बाद भारत की लड़कियां शायद सोचें कि अगर लक्ष्मी ने कर दिखाया है तो मैं भी अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठा सकती हूं."

International Women of Courage Award 2014
तस्वीर: AFP/Getty Images

बदलाव के दौर में भारत में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और बलात्कार की रिपोर्टें सामने आ रही हैं और ये मामले भी बढ़ रहे हैं. पिछले साल निर्भया को भी यह अवॉर्ड दिया गया था.

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एसिड की बिक्री के लिए दिशा निर्देश दिए थे ताकि एसिड हर किसी के हाथों में पड़े. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. लक्ष्मी ने मांग की कि महिलाओं पर होने वाले एसिड हमलों को रोकने के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बनाई जानी चाहिए. इतना ही नहीं, "एसिड हमलों के पीड़ितों को न केवल मुआवजा मिलना चाहिए बल्कि सरकार को उनके इलाज का खर्च भी उठाना चाहिए. पीड़ितों को सरकारी नौकरी दी जानी चाहिए और उनके मामलों का फास्ट ट्रैक कोर्ट में निराकरण किया जाना चाहिए."

अवॉर्ड समारोह में अमेरिका की प्रथम महिला मिशेल ओबामा ने कहा, "जब हम देखते हैं कि ये महिलाएं अपनी आवाज उठाती हैं, बदलाव लाने के लिए और दूसरों को ताकत देने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाती हैं, तब हमें महसूस होता है कि हममें से हर एक पास एक जैसी ताकत है और एक प्रतिबद्धता है. जब मैंने इस साल सम्मान पाने वाली महिलाओं के बारे में सुना तो मैंने सोचा कि हम उनके काम में मदद कैसे कर सकते हैं. मुझे समझ में आया कि इन महिलाओं में से अधिकतर का आधार एक है, शिक्षा का." ओबामा ने कहा कि इन महिलाओं से उन्हें बहुत प्रेरणा मिलती है और सिर्फ उन्हें ही नहीं उस हर व्यक्ति को मिलती है, जिनके लिए ये काम कर रही हैं, जिन्हें ये संभाल रही हैं.

अमेरिका की उप विदेश मंत्री हेदर ए हिगेनबॉटम ने कहा, "पिछले साल हमने एक युवा भारतीय महिला को सम्मानित किया था जिसे सिर्फ निर्भया के नाम से जाना जाता है. इस मुद्दे पर दुनिया के सब लोग एक साथ आए और दिखाया कि महिलाओं पर होने वाले हमलों से कोई नजर नहीं फेरता. या इस तरह के हमलों के पीड़ितों के प्रति कोई दुर्भाव नहीं है. यही भारत की लक्ष्मी का भी संदेश है. एसिड हमले महिलाओं पर ही ज्यादा होते हैं, खास कर युवा लड़कियों पर."

उन्होंने कहा कि महिलाएं अक्सर हमले के बाद समाज से कट जाती हैं या कई मामलों में आत्महत्या कर लेती हैं. लेकिन लक्ष्मी इसके बाद खुल कर सामने आईं और उन्होंने एसिड हमलों के खिलाफ अभियान चलाया.

लक्ष्मी के अलावा फिजी में रहने वाली भारतीय मूल की रोशिका देव को भी यह अवॉर्ड दिया गया है. सैन्य तख्ता पलट के बाद वहां लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वालों में वह शामिल हैं और उन्होंने चुनावों में खड़े रहने की भी घोषणा की है. 2006 में तख्ता पलट के बाद अब 2014 में लोकतांत्रिक चुनाव होने हैं. अफगानिस्तान की महिला रोग विशेषज्ञ और जच्चा बच्चा की सेहत के लिए काम करने वाली डॉक्टर नसरीन ओरियाखिल, जॉर्जिया की महिला बिशप रुसुदान गोत्सिरिज, सऊदी अरब में घरेलू हिंसा और बच्चों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ काम करने वाली डॉ माहा अल मुनीफ सहित दुनिया भर की दस महिलाओं को ये अमेरिकी सम्मान दिया गया है.

रिपोर्टः आभा मोंढे (पीटीआई)

संपादनः महेश झा

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