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लाइफस्टाइल के भरोसे कॉफी का चेन

२९ जनवरी २०११

पिज्जा हट और मैकडोनल्ड के बाद अब कॉफी की चुस्की के शौकीन मध्यवर्ग को अपनी ओर खींचने के लिए स्टारबक्स भारतीय बाजार में पहुंच रहा है. उसकी साझेदारी भारत में कॉफी की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी टाटा कॉफी के साथ है.

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तस्वीर: AP

स्टारबक्स को भारतीय मध्यवर्ग की बदलती हुई लाइफस्टाइल पर भरोसा है. लेकिन नए बाजारों के लिए स्टारबक्स के वाइस प्रेसिडेंट अरुण भारद्वाज कहते हैं कि भारत में कंपनी की स्ट्रैटेजी के बारे में बात करना अभी जल्दबाजी होगी. वैसे इतना तय है कि स्टारबक्स की कॉफी भी कुछ भारतीय अंदाज में पेश की जाएगी, जिस तरह पिज्जा हट और मैकडोनल्ड का भारतीयकरण हुआ है.

वैसे तो भारत को परंपरागत रूप से चाय पीने वालों का देश माना जाता है, लेकिन खासकर दक्षिण भारत के तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में कॉफी पीने की एक लंबी परंपरा है. इंडियन कॉफी हाउस चेन की ओर से पिछले 53 सालों से महानगरों में कॉफी हाउस चलाए जा रहे हैं. कभी बुद्धिजीवियों के जमघट के लिए मशहूर ये कॉफी हाउस इस बीच अपनी लोकप्रियता खो बैठे हैं, और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

Starbucks Becher
दुनिया भर में कई शाखाएंतस्वीर: AP

स्वाद नहीं शान की चुस्की

छोटी दुकानों में दस रुपये में भी कॉफी का एक प्याला मिल जाता है, लेकिन इन नए वेस्टर्न कैफे में एस्प्रेसो या कापुचिनो के प्याले की कीमत 75 रुपए तक हो सकती है. ऐसी बात नहीं है कि शहरी मध्यवर्ग का जायका बदल गया है और उन्हें कापुचिनों अचानक स्वादिष्ट लगने लगा है, लेकिन उन्हें पीना "सॉफिस्टिकेटेड" है, और पीने वाने को लगता है कि मामला थोड़ा वेस्टर्न है.

कॉफी के विशेषज्ञ हरीश बिजूर का कहना है कि चाय के मुकाबले एस्प्रेसो वाली कॉफी बनाना थोड़ा जटिल है, और यह भी एक वजह है कि इसे "सॉफिस्टिकेटेड" समझा जाता है.

Steuermann Kaffee?
भारतीय स्टाइल की कॉपीतस्वीर: dpa

कड़ी प्रतिस्पर्धा, लेकिन संभावना भी

लेकिन स्टारबक्स को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा. भारतीय चेन कैफे कॉफी डे की सारे देश में एक हजार से अधिक शाखाएं हैं, इसके अलावा विदेशी मालिकाने के चे बारिस्टा लावाजा और कोस्टा कॉफी पहले से ही भारतीय बाजार में मौजूद हैं और अपने चेन का विस्तार करना चाहते हैं. ब्रिटिश कंपनी कोस्टा कॉफी की इंटरनेशनल मार्केटिंग विभाग की प्रमुख मिता पाधी का कहना है कि उन्हें स्टारबक्स के आने से कोई चिंता नहीं है. दूसरे बाजारों में हम सफलता के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. वह कहती हैं, ''कैफे कॉफी डे के मार्केटिंग प्रधान के रामकृष्णन कहते हैं कि भारत के बाजार में इतनी संभावना है कि प्रतिस्पर्धा से डरने की कोई वजह नहीं है. वे ध्यान दिलाते हैं कि सिर्फ 22 फीसदी शहरी नौजवान कॉफी पीने जाते हैं. यह संख्या काफी बढ़ सकती है.''

इस सबके बावजूद भारत चाय पीने वालों का देश बना रहेगा. भारत के टी बोर्ड और कॉफी बोर्ड की सूचनाओं के अनुसार देश में सात लाख टन चाय और सिर्फ 75 हजार टन कॉफी की खपत है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उ भट्टाचार्य

संपादन: ओ सिंह