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लिंडाऊ में 65 नोबेल विजेता

३ जुलाई २०१५

जर्मनी के दक्षिणी छोर पर बसे छोटे से द्वीप लिंडाऊ पर 1951 से हर साल नोबेल पुरस्कार विजेताओं की बैठक हो रही है. इस बार यह बैठक 65वीं बार हुई और 65 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने इसमें शिरकत की.

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तस्वीर: DW/Z. Abbany

नोबेल विजेताओं के साथ सम्मलेन की शुरुआत वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने और युवा रिसर्चरों को दिग्गज वैज्ञानिकों से मिलने का मौका देने के उद्देश्य से की गयी थी. इस बार दुनिया भर से 650 युवा रिसर्चरों को यह मौका मिला. भारत के रिसर्चर भी यहां बड़ी संख्या में मौजूद रहे.

विज्ञान की सीमा

सम्मेलन को संबोधित करते हुए जर्मनी के राष्ट्रपति योआखिम गाउक ने सवाल उठाया कि विज्ञान किस हद तक वैज्ञानिक सोच में हस्तक्षेप कर सकता है. उन्होंने कहा कि विज्ञान की आचार संहिता पर बहस की जरूरत है. वैज्ञानिक ऐसी दवाएं बनाने में लगे हैं जो हर व्यक्ति के जैविक ढांचे के अनुरूप होंगी. हर दवा "टेलर मेड" होगी यानि हर व्यक्ति के लिए अलग.

राष्ट्रपति ने इस ओर इशारा करते हुए सवाल किया कि क्या इस तरह की रिसर्च की वाकई जरूरत है. उन्होंने कहा, "जैविक ढांचे के साथ छेड़ छाड़, भले ही यह बीमारियों का इलाज ढूंढने के नेक इरादे से किया जा रहा हो, लेकिन इंसानी प्रतिष्ठा पर इसका क्या असर पड़ेगा?" साथ ही उन्होंने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस पर भी सवाल उठाए और कहा कि विज्ञान जगत को इस दिशा में आगे बढ़ने से पहले इस पर सोच विचार करने की जरूरत है.

लिंडाऊ नोबेल सम्मलेन हर साल विज्ञान के किसी एक पहलू फिजिक्स, केमिस्ट्री या मेडिसिन पर केंद्रित होता है. चार साल में एक बार अर्थशास्त्र और पांच साल में एक बार विज्ञान के तीनों पहलुओं को एक साथ जोड़ कर सम्मलेन किया जाता है. इस साल ऐसा ही हुआ. विज्ञान जगत के दिग्गजों के साथ साथ भारत के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी यहां विशेष अतिथि रहे. सत्यार्थी ने शिक्षा में विज्ञान के महत्त्व और सभी के लिए शिक्षा के अवसर पर जोर दिया.

ऐसे हुई शुरुआत

एजुकेट, इंस्पायर, कनेक्ट के नारे के साथ हर साल लिंडाऊ में नोबेल विजेताओं और युवा वैज्ञानिकों का सम्मलेन आयोजित किया जाता है. शुरुआत लिंडाऊ के रहने वाले दो वैज्ञानिकों फ्रांत्स कार्ल हाइन और गुस्ताव विल्हेल्म पराड ने की. लिंडाऊ के पास स्थित द्वीप माइनाउ के काउंट लेनार्ट बेर्नाडोट आफ विसबोर्ग से उन्होंने संपर्क साधा.

काउंट लेनार्ट बेर्नाडोट स्वीडन के शाही खानदान से नाता रखते थे और स्टॉकहोम की नोबेल कमिटी के करीबी थे. उनके कहने पर सात नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने पहली बैठक में शिरकत की. बैठक का मकसद था दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप के वैज्ञानिकों को एक बार फिर साथ लाना. पहली बैठक चिकित्सा के विषय में हुई. आज यह बैठक एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन बन चुकी है. 2004 से अर्थशास्त्र को भी इसमें जोड़ दिया गया है.

ईशा भाटिया, लिंडाऊ