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लियु की पत्नी को लेकर चीन पर दुनिया का दबाव

१४ जुलाई २०१७

नोबेल विजेता लियु शियावबो की मौत के बाद चीन की सरकार पर उनकी पत्नी को रिहा करने का दबाव बढ़ गया है. चीन से बाहर जाने की अनुमति का इंतजार करते करते लियु की मौत हो गई इसके लिए चीनी सरकार की काफी आलोचना हो रही है.

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Hong Kong | Trauer um  Liu Xiaobo
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Kin Cheung

नोबेल विजेता लियु शियावबो की मौत के बाद चीन की सरकार पर उनकी पत्नी को रिहा करने का दबाव बढ़ गया है. चीन से बाहर जाने की अनुमति का इंतजार करते करते लियु की मौत हो गई और इसके लिए लोकतांत्रिक देशों ने चीनी सरकार की जमकर आलोचना की है.

अमेरिका और यूरोपीय संघ ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार से लियु की पत्नी और कवयित्री लियु शिया को रिहा कर देश से बाहर जाने की अनुमति देने का अनुरोध किया है. लियु शिया 2010 से ही अपने घर में नजरबंद हैं. चीनी डॉक्टरों ने कहा है कि गुरुवार को लियु शियावबो के अंतिम पलों में उनकी पत्नी उनके पास थीं. लियु के डॉक्टर ने बताया कि उन्होंने अपनी पत्नी को अंतिम विदा कहते समय ठीक से रहने के लिए कहा था. कैंसर के मरीज लियु लंबे समय से जेल में बंद थे एक महीने पहले ही उन्हें जेल से निकाल कर शेनयांग शहर के अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 1989 में थियानमेन चौक पर हुई क्रांति में शामिल रहे 61 साल के लियु लोकतंत्र की वकालत और चीनी सरकार की आलोचना करके सरकार के निशाने पर आ गए थे.

Japan Nobelpreisträger Liu Xiaobo und Frau Liu Xia
तस्वीर: imago/Kyodo News

अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा है, "मैं चीन की सरकार से मांग करता हूं कि वो लियु शिया को नजरबंदी से आजाद कर उनकी इच्छा के मुताबिक चीन से बाहर जाने की अनुमति दे." यूरोपीय संघ ने चीन से कहा है कि लियु शिया और उनके परिवार के लोगों को लोकतंत्र के पैरोकार का अंतिम संस्कार, "उनकी चुनी हुई जगह पर और उनकी इच्छा के मुताबिक कराने दे और उन्हें शांति से मातम मनाने दे."

लियु की पैरवी करने वाले अमेरिकी वकील जेयर्ड गेंसर का कहना है कि बीते 48 घंटों से लियु शिया से उनके सभी संपर्क काट दिए गए हैं. गेंसर ने अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन से कहा, "मुझे बहुत चिंता हो रही है कि उनके साथ अभी क्या हो रहा होगा." गेंसर ने यह भी कहा कि सरकार के लिए लियु शिया को बिना किसी आरोप के नजरबंद रखना मुश्किल होगा.

लियु शिया के मां बाप की पिछले साल ही मौत हो गई. कवयित्री शिया की राजनीति में कभी दिलचस्पी नहीं रही और उनके दोस्त बाते हैं कि वो अवसाद की शिकार रही हैं. 

उधर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने लियु की मौत के लिए चीन की आलोचना को सिरे से खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा है कि डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की "हर कोशिश" की थी. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने गेंग का बयान छापा है, "चीन एक कानून सम्मत देश है. लियु शियावबो के मामले से कैसे निबटना है ये चीन का आंतरिक मामला है और बाहरी देशों को इस इस बारे में कोई अनुचित बात नहीं कहनी चाहिए." ब्रिटेन ने लियु को इलाज के लिए बाहर भेजने की अनुमति नहीं देने पर चीन की कड़ी आलोचना की थी जबकि जर्मनी ने लियु शियावबो को अपने देश में रखने का प्रस्ताव दिया था जिसे चीन ने अनसुना कर दिया.

पश्चिमी देशों के डॉक्टर पिछले हफ्ते लियु को देखने गए थे और उनके पास अब भी वक्त था कि वो वहां से निकल सकें लेकिन चीन के डॉक्टरों का कहना है कि गुरुवार को उनकी स्थिति अचानक बहुत खराब हो गई और उन्हें बाहर भेजना खतरनाक हो गया था.

Friedensnobelpreis 2010 für Liu Xiaobo
तस्वीर: picture-alliance/NTB scanpix

1938 में जर्मन शांतिवादी कार्ल फॉन ओसिएत्स्की को नाजियों ने पकड़ लिया था और तब हिरासत में ही उनकी मौत हो गई थी. उसके बाद ये पहला मौका है जब किसी नोबेल शांति पुरस्कार के विजेता की हिरासत में मौत हुई है. 2010 में ओस्लो के नोबेल पुरस्कार सम्मेलन में लियु की जगह खाली कुर्सी रखी गई थी. लियु को 2008 में लोकतांत्रिक सुधारों की मांग में एक लिखे गए एक लेख के लिए गिरफ्तार किया गया था. एक साल बाद उन्हें 'देशविरोधी' गतिविधियों के लिए 11 साल के कैद की सजा सुनाई गई. नोबेल कमेटी का कहना है कि सरकार, "समय से पहले उनकी मौत के लिए जिम्मेदार है."

बहुत से लोगों ने चीन सरकार की आलोचना की है लेकिन कुछ दुनिया की कुछ बुलंद आवाजें इस मौके पर सुनाई नहीं पड़ी हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने पेरिस की प्रेस कांफ्रेंस में शी जिनपिंग की तारीफ की है. बाद में उन्होंने एक बयान जारी कर लियु शियावबो की मौत पर दुख जाहिर किया.

एनआर/एमजे (एपी, एएफपी)