लुप्त होता पानी वाला भिश्ती समुदाय
११ मई २०१७अहमद उन आखिरी भिश्तियों में से हैं, जो आज भी ये काम कर रहे हैं. भिश्ती समुदाय दिल्ली और अन्य जगह पानी पहुंचाने वाले या पानी ढोने वाले वे लोग होते थे जो व्यापारियों, यात्रियों आदि को पानी पिलाने का काम करते थे. बकौल अहमद, "मैंने अपना पूरा बचपन ये काम करते हुये बिता दिया. मेरे बाप-दादा भी यही काम करते थे. अहमद कहते हैं कि "मैं शायद यह काम करने वाला आखिरी इंसान हूं क्योंकि मुझे नहीं लगता कि मेरे बच्चे या फिर अगली पीढ़ी यह काम करेगी."
सदियों से भिश्ती समुदाय पुरानी दिल्ली स्थित मुगल काल के स्मारकों के नीचे दबे भूमिगत स्रोतों से पानी निकालते रहे हैं. लेकिन आधुनिक होती राजधानी में इस तरह की हलचलें और कार्य तकनीक आने के साथ-साथ गुम होते गये.
इसी भिश्ती समुदाय के अहमद सूफी दरगाह के भीतर स्थित एक गहरे कुएं से पानी निकाल कर कंधे पर लटकायी हुई मशाक को भर लेते हैं. कंधे पर लटकने वाले झोलेनुमा बस्ता मशाक कहलाता है. अहमद बताते है कि वह कुआं पहले कभी नहीं सूखा, लेकिन दिल्ली मेट्रो लाइन के निर्माण कार्य के दौरान एक बार जरूर सूखा था. कार्य पूरा होने के बाद वह फिर जस का तस हो गया. भिश्ती समुदाय के ये लोग 40 डिग्री से अधिक तापमान में भी भीड़भाड़ वाली गलियों में कंधे पर मशाक लेकर पानी ढोने का काम करते हैं. एक पूरी मशाक में तकरीबन 30 लीटर पानी आता है, और इससे लगभग 30 रुपये की कमाई होती है जो शायद इस कड़ी मेहनत के सामने कुछ भी नहीं है.
अहमद के मुताबिक उनके बच्चों को यह काम मुश्किल लगता है और शायद यह काम करने वाले वे अपने परिवार के आखिरी इंसान हों. अहमद कहते हैं कि पंप से पानी निकालना और पानी की पैक बोतलों ने जरूर उनके काम को नुकसान पहुंचाया है लेकिन अब भी जब वह गलियों से गुजरते हैं लोग उनको आवाज देकर बुलाते हैं. अहमद कहते हैं कि अब भी पुराने दुकानदार हाथ फैलाकर पानी पीने आ जाते हैं और गली-नुक्कड़ों पर ठंडा पानी बेचने वालों को भी ये पानी देते हैं.
अहमद बताते हैं कि जब पाइपलाइन सप्लाई अच्छे से होती है तब किसी को भी उनकी याद नहीं आती. उन्होंने बताया कि आज हमारा काम फल फूल नहीं रहा है लेकिन पर्यटक और पूजा-पाठ करने जो लोग आते हैं उनसे उन्हें काम मिल जाता है. उन्होंने बताया, "कुछ लोग तो यही देपानी के लिए लड़ाईखकर हैरान हो जाते हैं कि राजा-महाराजाओं के वक्त किया जाने वाला यह काम आज तक किया जा रहा है, वे हमें देखकर खुश भी होते हैं और हैरान भी."
एए/आरपी (एएफपी)