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किन्नर नहीं देना चाहते वोट

२८ मार्च २०१४

भारत के किन्नर लोकसभा चुनावों में वोट नहीं देना चाहते, जबकि उन्हें वोट देने का अधिकार है. एक्टिविस्टों का कहना है कि चुनाव प्रक्रिया में उनका कम विश्वास है.

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तस्वीर: DW/M. Krishnan

सात अप्रैल से भारत में लोकसभा चुनावों के लिए मतदान शुरू होना है और चुनावी बुखार जोरों पर है. हर दिन पार्टियां और उनके उम्मीदवार लोगों को लुभाने निकल रहे हैं. लेकिन 25 साल की ट्रांसजेंडर संजना को चुनावी अभियान में कोई रुचि नहीं है. डॉयचे वेले से बात करते हुए संजना ने शिकायत की, "इन नेताओं को हमारे अस्तित्व से कोई लेना देना नहीं है. मुझे हाल ही में वोटिंग कार्ड मिला है लेकिन मैं चुनाव में शामिल नहीं होउंगी. और मैं क्यों शामिल हूं? क्या इतने साल में किसी पार्टी ने हमारे लिए कुछ किया है?" अन्य किन्नर मलिका डिसूजा भी संजना से सहमत हैं. हालांकि पार्टियां उनका समर्थन मांग रही हैं लेकिन वे चुनाव का बहिष्कार करेंगी, "पार्टियां हमारा वोट तो चाहती हैं, लेकिन हमारी मुश्किलें खत्म करने के लिए कुछ नहीं करतीं. चुनाव के समय वे हमारे पास दौड़ती हुई आती हैं. हम चाहते हैं कि सबसे पहले सभी हमारी पहचान को स्वीकार करें और हमारा आदर करें."

2011 में मिला अधिकार

संजना और मलि काभारत के 30 लाख ट्रांसजेंडरों में शामिल हैं. हिन्दी में इनके लिए किन्नर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें ट्रांसजेंडर पुरुष महिलाएं, हिजडे, लिंग परिवर्तन करवाने वाले और क्रॉस ड्रेसर भी शामिल हैं. इस समुदाय में शामिल लोग या तो यौनकर्मी हैं या फिर भिखारी हैं. 2011 में भारतीय चुनाव आयोग ने तय किया कि लोकसभा चुनावों में ट्रांसजेंडर लोगों को भी वोट देने का अधिकार होगा. लेकिन चुनाव अधिकारियों का कहना है कि इनमें से कुछ ही लोगों ने 'अन्य' की श्रेणी में अपना नाम दर्ज करवाया है.

Indien Transsexuelle Sanjana
संजना का कहना है कि नेताओं ने उनके लिए कुछ नहीं कियातस्वीर: DW/M. Krishnan

चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त रखते हुए बताया, "यह दुखी करने वाला है. हमने पूरी कोशिश की है कि इन लोगों तक पहुंच के लिए इन्हें पंजीकृत करवाया जाए लेकिन उन्हें कोई रुचि ही नहीं है." वहीं गैर सरकारी संगठन में काम करने वाले अंजन जोशी कहते हैं, "ट्रांसजेंडर अभी भी समाज के हाशिये पर हैं. और उन्हें पुलिस लगातार परेशान करती है. ऐसा भी लगता है कि उनके समुदाय के बारे में किसी राजनीतिक पार्टी को कोई मतलब नहीं है. शायद उनकी कम संख्या के कारण."

साथ ही कोई पार्टी ऐसी नहीं है जिसके एजेंडा में इन लोगों के बारे में कुछ लिखा हो. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादियों को फिर से अपराध घोषित कर दिया है और इस समुदाय को डर है कि राष्ट्रवादी पार्टी के सत्ता में आने से उनके लिए और मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. थर्ड सेक्स की शबनम मौसी पहली व्यक्ति थीं जिन्होंने 2002 में मध्यप्रदेश से विधान सभा का चुनाव जीता. लेकिन उनकी इस जीत से भी समुदाय चुनाव की ओर आकर्षित नहीं हुआ.

रिपोर्टः मुरली कृष्णन/एएम

संपादनः ईशा भाटिया