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वाघा बॉर्डर पर बूटों की गरज बंद

२१ जुलाई २०१०

वाघा सीमा पर भारत और पाकिस्तान के सैनिकों की तरफ से पैर पटक कर आक्रामक तरीके की जाने वाली परेड को आसान बनाया जा रहा है. इस परेड में हिस्सा लेने वाले सैनिकों के घुटनों में हुई तकलीफ की वजह से यह कदम उठाया गया है.

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वाघा का नजारा

वर्षों से वाघा सीमा पर दोनों देशों के सैनिक यह परेड करते हैं जिसे देखने के लिए सीमा के दोनों तरफ बहुत से लोग और सैलानी जुटते हैं. बरसों से चली आ रही दुश्मनी के बावजूद परेड के समय सीमा के दोनों तरफ अच्छा माहौल होता है. भारतीय अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक अब दोनों पक्षों ने इस परेड को आसान बनाने के लिए एक समझौता किया है.

भारतीय सीमा सुरक्षा बल के एक वरिष्ठ अधिकारी हिम्मत सिंह कहते हैं, "हमने रोजाना होने वाली इस परेड की आक्रामता को कम करने का प्रस्ताव रखा था और इसके बाद एक तरफा तौर पर इसे लागू करने का फैसला भी ले लिया. अब पाकिस्तानी रेंजर्स भी इस प्रस्ताव पर सहमत हो गए हैं और उन्होंने भी अपनी परेड की आक्रामकता को कम किया है."

सिंह बताते हैं कि जोर जोर से पैर पटक कर चलना इस परेड का अहम हिस्सा होता है. लेकिन इसकी वजह से यह परेड करने वाले सैनिकों के घुटनों को खासा नुकसान होता है. इसी वजह से दोनों पक्ष परेड को आसान बनाने पर सहमत हुए हैं.

1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से दोनों देशों ने तीन बार युद्ध लड़ा है. बीते साठ साल में दोतरफा संबंध ज्यादा अच्छे नहीं रहे हैं. 2008 के मुंबई हमलों के चलते दोनों पक्षों के बीच लंबे अर्से तक बातचीत नहीं हुई. अब वार्ता का सिलसिला शुरू हुआ है लेकिन उसकी रफ्तार बेहद धीमी है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः आभा एम