विज्ञान जगत पर जर्मन एकीकरण का प्रभाव
३१ अक्टूबर २०१०दूसरी ओर, पूरब की दूसरी संरचनाओं की तरह विज्ञान के संस्थानों की संरचना भी चरमराकर गिर पड़ी, क्योंकि उनके लिए राजकीय वित्तीय प्रबंधन नए सिरे से तय किया जाना था. वैज्ञानिकों को अब बाजार की प्रतिस्पर्धा में अपने आपको प्रतिष्ठित करना था. एकीकरण के बाद पश्चिम जर्मन सरकार की सलाहकार संस्था विज्ञान परिषद को पूर्वी जर्मन शोध संस्थानों के मूल्यांकन का काम सौंपा गया. अनेक संस्थान बंद कर दिये गये या पश्चिम के किसी संस्थान में उसका विलय कर दिया गया. समाज वैज्ञानिक प्रोफेसर कार्ल उलरिष मायर जर्मनी के लाइबनित्ज ऐसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, जिसमें देश के 86 प्रमुख शोध संस्थान शामिल हैं. उस समय की याद करते हुए वह कहते हैं:
काफी संस्थान बंद कर दिये गये, खासकर समाज विज्ञान के संस्थान, क्योंकि समझा जा रहा था कि वे बहुत ज्यादा पार्टी लाइन पर चलते हैं.
प्रोफेसर मायर का कहना है कि सिर्फ समाज विज्ञान के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक विषयों से जुड़े अन्य संस्थानों पर इसका प्रभाव पड़ा. भारी मात्रा में कटौती की गई. वह कहते हैं:
येना में पेनिसिलीन के क्षेत्र में शोध के लिए एक बड़ी विज्ञान अकादमी थी. यहां काम करने वालों की संख्या एक हजार से घटाकर 550 कर दी गई.
पेनिसिलीन के अलावा तत्कालीन पूर्वी जर्मनी या जर्मन जनवादी गणतंत्र में केमिस्ट्री, बायो टेक्नोलॉजी या परमाणु तकनीक के क्षेत्र में काफी व्यापक शोध हो रहा था. एकीकरण के बाद पूरब के वैज्ञानिकों के लिए दूसरे वैज्ञानिक विषयों पर पश्चिम के ऐकडेमिक जर्नलों में अपने अध्ययनों को प्रकाशित करना तो थोड़ा आसान था, लेकिन समाज विज्ञान के लोगों के लिए यह लगभग असंभव था. प्रोफेसर डीटर हॉफमान बर्लिन के माक्स प्लांक संस्थान में विज्ञान के इतिहास पर काम कर रहे हैं. एकीकरण से पहले वह पूर्वी जर्मनी की विज्ञान अकादमी में विज्ञान के इतिहास और सिद्धांत पर काम कर रहे थे. पूर्वी जर्मनी में अपने काम के बारे में वह कहते हैं:
मिसाल के तौर पर पश्चिम के किसी जर्नल में अपना अध्ययन प्रकाशित करना मेरे लिए संभव नहीं था. इस विषय पर काम करने वाले पश्चिम के साथियों से मिलने के लिए या अपने अध्ययनों को प्रस्तुत करने के लिए वहां संगोष्ठियों में भी मैं नहीं जा सकता था.
पार्टी लाइन पर न चलने वाले या शासन की आलोचना करने वाले वैज्ञानिकों को पूर्वी जर्मनी में सेंसर का सामना करना पड़ता था, उनके अध्ययन छापे नहीं जाते थे. लेकिन युवा वैज्ञानिकों के लिए संभावनाएं भी थीं. हिल्डेगार्ड मारिया निकेल मजदूर परिवार की बेटी थीं. वह पूर्वी जर्मन शैक्षणिक विज्ञान अकादमी में समाज विज्ञानी के रूप में काम करती थीं. उनका कहना है कि जीडीआर न होता, तो उन्हें कभी प्रोफेसर बनने का मौका न मिलता. लेकिन उन्हें भी सेंसर का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके अध्ययनों में ऐसी बातें भी होती थीं, जो हुक्मरानों को पसंद नहीं थीं. वह बताती हैं:
मेरी दिलचस्पी एक बेहतर, अधिक लोकतांत्रिक जीडीआर में थी और मुझे समझ में नहीं आया कि लोग मेरी बात क्यों नहीं सुनना चाहते हैं.
एकीकरण के बाद डीटर हॉफमान और हिल्डेगार्ड मारिया निकेल को काम करने का मौका मिला. अब वह यात्रा कर सकते थे, अपने अध्ययन कहीं भी भेज सकते हैं. लेकिन बहुतों को मौका नहीं मिला. डीटर हॉफमान कहते हैं:
कुछ लोग समय से पहले रिटायर हो गए. कुछ एक को नए सिरे से काम करने का मौका मिला, वह किसी दूसरे संस्थान में चले गए और बहुतेरे बेरोजगार हो गए.
वैसे यहां ध्यान दिलाया जा सकता है कि एकीकृत जर्मनी में एक नया जीवन शुरू करने की सबसे बेहतरीन मिसाल वर्तमान चांसलर अंगेला मैर्केल हैं. राजनीति में आने से पहले उन्होंने पूर्वी जर्मनी में क्वॉन्टम केमिस्ट्री में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की थी. बहरहाल, पश्चिम जर्मन संरचना में पूर्वी जर्मन संस्थानों को जोड़ना कतई आसान नहीं था. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पूरब के अनेक वैज्ञानिकों के लिए सुनहरे मौके सामने आए हैं. प्रोफेसर डीटर हॉफमान आज की स्थिति के बारे में कहते हैं:
मैं समझता हूं कि जो सीन अभी उभर रहा है, बेहद दिलचस्प है. मिसाल के तौर पर लेजर फिजिक्स के लिए बर्लिन का माक्स बोर्न इंस्टिट्यूट, यह अपने किस्म का एक चोटी का संस्थान है. यानी कि काफी अच्छी चीजें सामने आई हैं.
आज सिर्फ बर्लिन में ही नहीं, पूरब के अनेक शहरों में नए वैज्ञानिक संस्थान फल फूल रहे हैं. येना ऑप्टिकल साइंस का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, ड्रेसडेन में मेटिरियल साइंस का केंद्र बना है और फ्राइबैर्ग भी इस बीच सौर उर्जा के क्षेत्र में शोध के लिए एक जाना माना नाम है.
रिपोर्टः उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादनः वी कुमार