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विदेशी निवेश की राह में कम नहीं हैं चुनौतियां

प्रभाकर६ सितम्बर २०१६

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए इस सप्ताह जर्मनी के म्युनिख शहर में उद्योगपतियों से मुलाकात कर रही हैं.

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Indien Bengal Wahlen 2016
तस्वीर: DW/P. Tewari

सरकारी तौर पर उनके इस दौरे को चाहे जितना अहम बताया जा रहा हो, बंगाल में विदेशी निवेश आकर्षित करने की राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं. हुगली जिले के सिंगुर में टाटा मोटर्स की जमीन लौटाने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी इस राह में प्रमुख बाधा बन सकता है. इससे उद्योग जगत में यह संदेश गया है कि अगर सरकार की ओर से अधिगृहीत जमीन भी हाथों से निकल सकती है तो लोग भारी-भरकम निवेश का साहस कैसे जुटाएंगे?

ममता का दौरा

रविवार को वैटिकन सिटी में मदर टेरेसा को संत घोषित किए जाने के समारोह में शिरकत करने और इटली के उद्योगपतियों से मुलाकात के बाद निवेश आकर्षित करने के मकसद से ममता इस सप्ताह म्युनिख में रहेंगी. उनके इस दौरे की जमीन तैयार करने के लिए वित्त मंत्री अमित मित्र पहले ही म्युनिख पहुंच गए हैं. मित्र ने जर्मनी रवाना होने से पहले बताया, "जर्मनी के दो प्रमुख चैंबर्स आफ कामर्स, बीवीएमडब्ल्यू और द एसोसिएशन आफ जर्मन कामर्स एंड इंडस्ट्री (आईएचके) ने ममता को जर्मनी आने का न्योता दिया था. इस मौके पर एक व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भी ममता के साथ होगा." उन्होंने कहा कि बीवीएमडब्ल्यू जर्मनी की मझौली कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है. उसकी तीन सौ शाखाएं हैं और वह हर साल दो हजार सेमिनारों का आयोजन करता है.

अमित मित्र ने बताया कि 2.70 लाख से ज्यादा कंपनियां इस संगठन की सदस्य हैं और उनमें 90 लाख लोग काम करते हैं. इसी तरह आईएचके में तीन लाख उद्यमी सदस्य हैं. वित्त मंत्री कहते हैं, "म्युनिख मुख्य तौर पर आटोमोबाइल क्षेत्र के सहायक उद्योगों का गढ़ है. मुख्यमंत्री ऐसी ही जगह का दौरा करना चाहती थीं." वह बताते हैं कि फिलहाल बंगाल की पांच सौ कंपनियां अपने उत्पादों को जर्मनी निर्यात करती हैं जबकि जर्मनी की दो सौ कंपनियां यहां मौजूद हैं.

ममता के साथ उद्योगपतियों का एक प्रतिनिधिमंडल भी गया है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि अबकी ममता का फोकस बड़े ब्रांडों पर नहीं होगा. वह चाहती हैं कि जर्मनी की छोटी व मझौली कंपनियां बंगाल को अपने निवेश का ठिकाना बनाएं. ममता के प्रतिनिधिमंडल में शामिल एक उद्योगपति कहते हैं, "बड़े ब्रांड अगर बंगाल में निवेश पर सहमत होते हैं तो यह अच्छी बात है. लेकिन उनको इसके लिए तैयार करना आसान नहीं होगा. उनकी बजाय छोटी व मझौली कंपनियों को आसानी से निवेश के लिए राजी किया जा सकता है."

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बाड़ लगाते टाटा के मजदूरतस्वीर: Getty Images/AFP/D. Chowdhury

कामयाबी पर संशय

यह ममता का पांचवां और सरकार में दूसरी पारी शुरू करने के बाद पहला विदेश दौरा है. इससे पहले वह लंदन व सिंगापुर समेत कई देशों का दौरा कर चुकी हैं. लेकिन निवेश के मोर्चे पर सरकार को अब तक कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी है. राज्य में हर साल होने वाले निवेश सम्मेलनों में सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर तो खूब होते हैं, लेकिन अब तक उनमें से किसी को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है.

राज्य सरकार की जमीन नीति और बंगाल के औद्योगिक माहौल को ध्यान में रखते हुए उद्योग जगत को उनके मौजूदा दौरे के कामयाब होने पर संशय है.

निवेशकों के मन में यह बात गहरे पैठ गई है कि ममता के आंदोलन की वजह से ही टाटा मोटर्स को यहां से अपना कारोबार समेटना पड़ा था. एक उद्योगपति नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "निर्माण और ऑटोमोबाइल उद्योगों के लिए काफी मात्रा में जमीन की जरूरत होगी. लेकिन बिचौलियों के प्रभाव के चलते निवेशकों के लिए अपने बूते इतनी जमीन का अधिग्रहण संभव नहीं है. दूसरी ओर, राज्य सरकार निजी निवेशकों के लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं करने की अपनी नीति पर अडिग है.' उद्योग जगत का कहना है कि इन दोनों क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार को पहले अपनी जमीन नीति की समीक्षा करनी होगी.

सिंगुर से बढ़ा असमंजस

सिंगुर मामले पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने भी निवेशकों का असमंजस बढ़ा दिया है. उद्योग जगत की ओर से सवाल उठ रहा है कि जब सरकार की ओर से अधिगृहीत जमीन भी सुरक्षित नहीं है तो निजी तौर पर अधिगृहीत जमीन का भविष्य कितना सुरक्षित होगा? दिलचस्प बात यह है कि ममता बनर्जी अब जर्मनी ने आटोमोबाइल उद्योग को निवेश के लिए लुभाने का प्रयास कर रही हैं. लेकिन उनके आंदोलन की वजह से ही इसी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी टाटा मोटर्स को बंगाल छोड़ कर जाना पड़ा था. अब अदालती फैसले के बाद वह जमीन भी टाटा के हाथों से निकल गई है और वहां उसके सहायक उद्योगों की ओर से निवेश किए गए करोड़ों रुपए डूब गए हैं. ऐसे में सवाल यह भी है कि जर्मन कंपनियों को ममता के भरोसे पर कितना भरोसा होगा?

व्यापार संगठन मर्चेंट चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज (एमसीसीआई) के अध्यक्ष मनीष गोयनका कहते हैं, "बंगाल को बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है. सरकार को इसके लिए नई रणनीति अपनानी होगी." एक अन्य उद्योगपति कहते हैं कि आगे से कोई भी निवेशक सरकारी जमीन लेने से हिचकेगा. राज्य सरकार का दावा है कि उसके लैंड बैंक में तीन लाख एकड़ जमीन उपलब्ध है. छोटी परियोजनाओं को तो कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन बड़ी परियोजनाओं को एक साथ बड़े प्लाट की जरूरत होगी. जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान बनाना भी ममता बनर्जी सरकार के लिए एक प्रमुख चुनौती है.

अगर जमीन के अधिग्रहण के लिए निवेशकों को लालफीताशाही से लेकर बिचौलियों तक की समस्या से जूझना पड़ा तो बंगाल में निवेश करने का खतरा कौन उठाएगा? इस सवाल का जवाब तलाशना ही विदेशी निवेश आकर्षित करने की राह में ममता की सबसे बड़ी चुनौती होगी.