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विरोध का और कोई जरिया नहीं: पीएम भार्गव

ईशा भाटिया२९ अक्टूबर २०१५

लेखकों और फिल्मकारों के बाद अब वैज्ञानिक भी अपने पुरस्कार लौटाने वालों की सूची में शामिल हो गए हैं. पीएम भार्गव देश में फैलती असहिष्णुता के विरोध में अपना पद्म भूषण सम्मान लौटाना चाहते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Das

87 वर्षीय भार्गव का कहना है कि वे गृह सचिव से मिलकर पुरस्कार लौटा देंगे. उनका कहना है कि तर्कवादी लेखकों की हत्या ने उन्हें काफी परेशान किया, "आए दिन कट्टरपंथी बयानबाजी होती है. इस तरह के दल दशकों से हमारे देश में रहे हैं लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार में उनकी हिम्मत बढ़ गयी है. वे लोगों को मारने की हिम्मत रखते हैं और उसके बाद नफरत भरे बयान भी देते हैं." भार्गव के अनुसार पिछले डेढ़ साल में देश में सांप्रदायिक माहौल बढ़ा है. उनका कहना है, "सरकार और आरएसएस यह निर्धारित करना चाह रहे हैं कि हम क्या खाएंगे और क्या करेंगे."

भारत शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा लोकतंत्र है, जहां लोगों को अपनी इच्छा से खाने-पीने की आजादी खोनी पड़ रही है. ब्लॉग यहां पढ़ें:

भार्गव का कहना है कि भारत में वैज्ञानिक सामाजिक रूप से असंवेदनशील हैं, "मैं उम्मीद करता हूं कि मेरे द्वारा लिया गया निर्णय कम से कम वैज्ञानिकों को देश की चिंताजनक स्थिति के बारे में सोचने पर विवश करेगा. वैज्ञानिक चुप चाप नहीं बैठ सकते, उनके इर्द गिर्द जो सब हो रहा है, वे उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते."

लेखकों, कलाकारों और फिल्मकारों की इस बात को लेकर आलोचना हो रही है कि वे सरकार के प्रति अपना विरोध पुरस्कार लौटा कर दिखाने के बजाए, अपने काम से ही क्यों नहीं दिखाते. भार्गव ने इस ओर इशारा करते हुए कहा, "कलाकार अपनी नाराजगी अपने काम के जरिये दिखा सकता है. लेकिन मैं वैज्ञानिक हूं. मैं अपने काम के जरिये कैसे विरोध करूं? इसलिए मुझे पुरस्कार लौटाने का फैसला लेना पड़ा, मेरे पास विरोध का यही एक माध्यम है."

फिल्मकार आनंदपटवर्धन ने एक लेख लिख कर व्यक्त किया है कि वे अपना पुरस्कार क्यों लौटा रहे हैं. यहां पढ़ें:

भार्गव का कहना है कि वे नहीं चाहते कि देश में लोकतंत्र की जगह धार्मिक तानाशाही ले ले. भार्गव को 1986 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में उन्होंने कहा, "मेरे सौ से अधिक पुरस्कारों के संकलन में पद्म भूषण की एक खास जगह रही है. मैं भावात्मक रूप से इससे जुड़ा हुआ हूं."

भार्गव इससे पहले भी देश में वैज्ञानिक सोच के अभाव पर बोलते रहे हैं. उनका मानना है कि भारत के वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार तक इसलिए नहीं पहुंच पाते क्योंकि देश में वैज्ञानिक माहौल ही नहीं है और सरकारें भी इसे बदलने के लिए कुछ नहीं करतीं. हालांकि कलाकारों की तरह भार्गव की भी निंदा हो रही है कि यह कदम उन्होंने पहले कभी क्यों नहीं उठाया.

देश में फैले माहौल से नाखुश 135 वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने एक ऑनलाइन पेटिशन पर भी दस्तखत किए हैं. याचिका में लिखा गया है, "एक बंटा हुआ समाज परमाणु बम जैसा होता है, जो किसी भी वक्त फट सकता है और देश में त्राहि मचा सकता है. यह एक बेहद अस्थिर माहौल है और इस असमानता को खत्म करने के लिए हमें हर मुमकिन कदम उठाना होगा और अपने समाज को वैज्ञानिक सोच के प्रति जागरूक करना होगा."

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