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कला

वुडों के जंगल में एक और वुड, कुमावुड

९ जून २०१७

भारत में बॉलीवुड है तो नाइजीरिया में नॉलीवुड. यहां तक कि न्यूजीलैंड के पास भी एक वेलीवुड है. इसी तर्ज पर घाना के फिल्म उद्योग को कुमासी इलाके में होने के कारण कुमावुड का नाम मिला है. यहां देश के तेज तर्रार फिल्मकार हैं.

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GHANA Kino Produktionen KUMAWOOD
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Aldehuela

घाना का सांस्कृतिक केंद्र राजधानी अकरा से करीब 5 घंटे की दूरी पर है और दरअसल समुद्र तट पर बसे महानगर अकरा के साथ प्रतिद्वंद्विता ने कुमासी को फिल्म उद्योग का तेजी से बढ़ता केंद्र बनाने में मदद की है. फिल्मकार जेम्स अबोआग्ये बताते हैं कि एक दशक पहले अकरा के फिल्मकारों के साथ हुए एक विवाद के बाद कुमावुड ने खुद को बनाना शुरू किया. "उस समय कुमासी में काम करने वाले एकमात्र प्रोड्यूसर ने कहा कि यदि वे हमसे इस तरह का व्यवहार करेंगे तो हम कुमासी में रहेंगे और कुमावुड बनायेंगे." ऐसा ही हुआ और कामयाबी के साथ.

चार साल पहले कुमावुड में एक हफ्ते में 12 फिल्में बनना आम बात थी और वह भी 30 हजार से 50,000 सेडी (6000-10,000 यूरो) के बजट में. इसमें फिल्म बनाने, उसे रिलीज करने और उसकी डीवीडी बनाने का खर्च शामिल था. बिजली की कमी ने इसमें बाधा डाली है और अब हफ्ते में चार ही फिल्में बनती हैं लेकिन वह भी कम नहीं हैं, यदि इसकी तुलना हॉलीवुड से की जाए, यहां महीनों में फिल्में बनती हैं.

घाना का दूसरा सबसे बड़ा शहर कुमासी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और देश के सम्मानित राजपरिवार का घर होने के लिए जाना जाता है. फिल्मों की शूटिंग सिटी सेंटर के सुंदर लोकेशनों और आसपास के इलाकों में होती है. डायलॉग आकान भाषा की ट्वी बोली में होते हैं जिसे घाना में ज्यादातर लोग बोलते हैं और अक्सर उन्हें लिखा नहीं जाता. अबोआग्ये कहते हैं कि फीचर फिल्म बनाने वाली टीम सुबह से लेकर मध्यरात्रि तक सेट पर होती है. वे कहते हैं, "जब आप कुमासी आते हैं तो आपको इस कहावत का असली मतलब पता चलता है कि टाइम इज मनी." आप जितना ज्यादा समय सेट पर होते हैं प्रोडक्शन उतना ही खर्चीला होता जाता है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Aldehuela

अकरा के फिल्म स्कूल के कार्यकारी निदेशक रेक्स एंथनी अन्नान कहते हैं कि घाना के कुछ लोग इन फिल्मों को अपना कहने में कतराते हैं क्योंकि उन्हें निम्नस्तरीय समझा जाता है. लेकिन वे बहुत ही लोकप्रिय हैं और लंबी दूरी वाले बस रूटों पर नियमित रूप से दिखायी जाती हैं. कुमासी से अकरा जाने वाली बस का इंतजार कर रही 22 वर्षीया यूनिस लारबी कहती है, "चूंकि वे स्थानीय बोली में हैं, लोग खुद को उनसे जोड़ पाते हैं." वह यह भी कहती है कि अंजान लोगों के साथ बस के सफर के दौरान फिल्म देखना उन्हें एक दूसरे के करीब लाता है. ये फिल्में धीरे धीरे घाना के सिनेमाघरों में जगह बना रही हैं, हालांकि उन्हें टेलिविजन और बसों में ज्यादा देखा जाता है.

इस समय घाना की 40 फीसदी फिल्में कुमावुड में ही बनती हैं. अकरा में करीब 50 प्रतिशत फिल्में बनती हैं. अन्ना कहते हैं कि बाकी फिल्में देश के दूसरे हिस्सों में बनायी जाती हैं. लेकिन उनकी राय में अकरा में बनने वाली फिल्मों के मुकाबले कुमावुड के स्टार देश में ज्यादा लोकप्रिय हैं. ये फिल्में सारी दुनिया में रह वाले घानावासी देखते हैं जो देश से दूर होने का दंश झेल रहे होते हैं. उन्हें ये फिल्में अपने वतन की याद दिलाती हैं.

मजेदार बात यह है कि कुमावुड की फिल्में किसी नियम का पालन नहीं करतीं. उनके फिल्मकार पेशेवर तौर पर प्रशिक्षित भी नहीं हैं. अक्सर फिल्मों में कोई प्लॉट नहीं होता और उलझन सी दिखती है. अन्नान कहते हैं, "कुमावुड के विवाद कभी खत्म नहीं होते, वे चलते रहते हैं." कुछ फिल्मों में तो अजीबोगरीब चीजें होती हैं. अक्सर भूत प्रेत को भी दिखाया जाता है. सेट पर 25 वर्षीया एमांडा नाना आचिया सड़क पर पलने वाले बच्चे के एक भावपूर्ण सीन के लिए तैयार हो रही है. डायरेक्टर एक्शन कहता है और कैमरा चलने लगता है. एमांडा कहती है कि उसे याद भी नहीं कि उसने कितनी फिल्मों में काम किया है. उसने कभी हॉलीवुड में काम करने के सपने के साथ करियर शुरू किया और अभी भी हॉलीवुड का सपना देख रही है.

एमजे/एके (एएफपी)

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तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Aldehuela