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जच्चा-बच्चा एक्सपर्ट मिडवाइफ का दिन

कार्ला बाइकर/आरपी५ मई २०१६

पांच मई को अंतरराष्ट्रीय मिडवाइफ दिवस मनाया जाता है. एक ऐसा पेशा जो दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है लेकिन जिनकी जरूरत पहले से भी कहीं ज्यादा महसूस की जा रही है.

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Verbesserung der Gesundheitsversorgung der Mütter Millennium Development Goals
तस्वीर: picture-alliance/dpa

हर दिन कोई 800 महिलाएं और 8,000 नवजात शिशु गर्भावस्था, जन्म के दौरान या उसके तुरंत बाद होने वाली ऐसी दिक्कतों के कारण मारे जाते हैं, जिनसे उन्हें बचाया जा सकता था. विश्व स्वास्थ्य संगठन के ये आंकड़े मिडवाइफ के बारे में जारी उसकी ताजा रिपोर्ट में दर्ज हैं.

गर्भ और जन्म के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली मिडवाइफ पेशे के सम्मान में 5 मई को अंतरराष्ट्रीय मिडवाइफ दिवस घोषित किया गया. 1992 में इसे शुरु करने वाले इंटरनेशनल कंफेडरेशन ऑफ मिडवाइव्स की इस साल 25वीं वर्षगांठ है.

Internationaler Tag der Hebammen Logo
2016 की खास थीम.

नई मांओं की चिंताओं का इलाज

जर्मनी में बाकायदा मिडवाइफ कानून के तहत, घर या अस्पताल कहीं भी बच्चे के जन्म के समय मिडवाइफ का मौजूद होना जरूरी है. जर्मनी में 21,000 से भी अधिक मिडवाइव्स हैं और उनकी भारी मांग रहती है.

गर्भवस्था के दौरान, जन्म के समय और बाद में नवजात की देखभाल से जुड़ी तमाम जानकारी मिडवाइफ ही नई मांओं को देती है और उन्हें किसी समस्या का इलाज भी बताती है.

लिंचपिन लायबिलिटी इंश्योरेंस

भूल की स्थिति में हर्जाने की राशि चुकाने के लिए मिडवाइव्स के लिए लायबिलिटी इंश्योरेंस होता है. जर्मनी में इस बीमा की निरंतर बढ़ती रकम चुकाना मिडवाइफ को भारी पड़ रहा है. कई महिलाओं ने इसी कारण पेशा छोड़ दिया है. 2016 में इन्हें साल के 7,000 यूरो से भी अधिक और अगले साल 8,000 यूरो से अधिक चुकाने पड़ेंगे.

सन 1981 से लागू लिंचपिन लायबिलिटी इंश्योरेंस के अंतर्गत अगर मिडवाइफ की किसी गलती से बच्चे या मां को कोई नुकसान हुआ है, तो उसकी भरपाई की जाती है.

जर्मन मिडवाइफ एसोसिएशन के अनुसार स्वतंत्र रूप से काम करने वाली एक मिडवाइफ घंटे के 8.50 यूरो कमाती है, जो कि देश के न्यूनतम भुगतान के बराबर ही है. ऐसे में साल के 7,000 यूरो बीमा फीस देना उनके लिए काफी मंहगा पड़ता है. वहीं जर्मनी के पड़ोसी देश ऑस्ट्रिया में केवल 350 यूरो में सामूहिक बीमा किए जाने की व्यवस्था है.

'मातृ स्वास्थ्य देखभाल का मजबूत स्तम्भ'

भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में आमतौर पर जच्चा करवाने वाली दाई कही जाने वाली मिडवाइफ का बहुत पुराना चलन है. खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां ज्यादातर जन्म घरों पर होते हैं, और आसपास किसी अस्पताल या डॉक्टर की सुविधा उपलब्ध नहीं होती. ऐसी जगहों पर मिडवाइफ जर्मनी या किसी और विकसित देश के मुकाबले कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं.

पूरी दुनिया में लगभग 287,000 औरतें हर साल गर्भ या जन्म से जुड़ी परेशानियों के कारण जान से हाथ धो बैठती हैं. अधिकतर गरीब और कम आय वाले परिवारों के ऐसे करीब 29 लाख नवजात जन्म के पहले महीने में ही दम तोड़ देते हैं, जिन्हें बचाया जा सकता था. यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मिडवाइव्स की व्यवस्था को और मजबूत बनाने पर जोर देते हुए अपनी वेबसाइट पर जारी संदेश में लिखा है, "दुनिया के तमाम देशों के साथ काम कर उनकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों में मिडवाइफ से जुड़े मुद्दों की ओर ध्यान दिलाना" ही लक्ष्य है.

कार्ला बाइकर/आरपी