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शरणार्थी सुरक्षा के लिए ज्यादा धन की जरूरत

५ अक्टूबर २०१४

निजी कंपनियों को शरणार्थियों की सुरक्षा का ठेका देकर किसे फायदा हो रहा है, इसकी गहनता से जांच की जानी चाहिए. डीडब्ल्यू के स्वेन पोएले का मानना है कि जर्मनी में शरणार्थियों की सुरक्षा अहम होनी चाहिए.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/Federico Gambarini

दोनों सुरक्षाकर्मी कैमरे में देख कर हंस रहे हैं. इन दोनों में से एक का पैर एक आदमी के गले पर है, जिसके दोनों हाथ बंधे हैं और जो जमीन पर गिरा हुआ है. यह बहुत डराने वाला चित्र है. इसे देख कर ग्वांतानामो या अबू गरेब की याद आती है. लेकिन यह चित्र इराक में लिया हुआ नहीं है, बल्कि जर्मनी में बुरबाख शहर के शरणार्थी आवास का है.

यह चित्र पुलिस को एक चौकीदार के मोबाइल में तब मिला जब और हैरान करने वाले वीडियो की जांच शुरू की गई. जर्मनी के नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया राज्य के अन्य शरणार्थी गृहों से भी ऐसी रिपोर्टें मिली हैं. वहां भी जांच पड़ताल चल रही है.

सुरक्षा निजीकरण

शरणार्थियों के लिए बनाए गए खास आवास गृह संकटग्रस्त इलाकों से आने वाले लोगों के लिए पहली छत होते हैं. जर्मनी में आकर वे यहां रह सकते हैं. अधिकतर लोग लंबा और पीड़ादायक रास्ता तय करके आते हैं, हिंसा से बचने के लिए अपना घर बार छोड़ कर. जो लोग यहां शरण और सुरक्षा लेने के लिए पहुंचे हैं उन्हीं के साथ अत्याचार किया जाए, यह क्षोभनीय है.

स्थानीय प्रशासन और नगर पालिकाएं बार बार सफाई देती हैं कि वह बढ़ते शरणार्थियों के कारण परेशानी का सामना कर रही हैं. इसलिए उनके आवास का प्रबंधन अक्सर निजी कंपनियों को दिया जाता है ताकि खर्च कम हो सके और लाल फीताशाही से बचा जा सके.

वैसे इसमें कुछ गलत नहीं है कि निजी कंपनियां जिम्मेदार प्रशासन और राज्य से प्रबंधन का काम संभाल लें. वह भी एक ऐसे दौर में जब जर्मनी में आने वाले आप्रवासियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. मुख्य समस्या यह है कि कई जिलों में गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा, बल्कि खर्च कम रखना प्राथमिकता बन गई है.

बुरबाख के मामले में यह बहुत ही गंभीर गलती थी. वहां यूरोपीयन होमकेयर ने एक और कंपनी को सुरक्षा के लिए ठेका दिया था. इसी ने एसकेआई सुरक्षा कंपनी के लोग शरणार्थीगृह में सुरक्षाकर्मी के तौर पर रखे गए थे. जांच से पता चला है कि इन चौकीदारों के बारे में पुलिस जानती थी. उनसे पहले भी मारपीट, ड्रग्स, हथियारों और धोखाधड़ी के मामले में पूछताछ की गई थी. किसी शरणार्थी आवासगृह में उन्हें नौकरी मिलनी ही नहीं चाहिए थी.

निजी सुरक्षा कंपनियां लाभ की नीति पर काम करती हैं, यह कोई नई बात नहीं है. कम तनख्वाह और बुरी रोजगार की परिस्थितियां इस शाखा में आम हैं. शरणार्थियों के साथ अच्छे से पेश आने वाले कर्मचारी जिन्हें चाहिए हों, उन्हें प्रशिक्षित और संस्कृतियों को समझने वाले लोगों की जरूरत होती है, न कि सजा पाए लोगों की. इसलिए नियुक्त लोगों की जांच करना न केवल उस निजी कंपनी की जिम्मेदारी है, बल्कि ठेका देने वाली कंपनी की भी. अगर सरकार किसी निजी कंपनी को नियुक्त करती है तो सरकार को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी से वह नहीं चूके.

क्या अब सब अच्छा है?

इस बीच सुरक्षाकंपनी के साथ ठेका खत्म कर दिया गया है. नए मानक स्वीकार किए गए हैं ताकि इस तरह की घटनाएं फिर ना हों. आगे से जांच करने के बाद उन सुरक्षाकर्मियों को ही रखा जाएगा जिनके पास पुलिस सर्टिफिकेट हो. यह तो वैसे भी होना चाहिए था. लेकिन ये सारे उपाय तब शुरू किए गए हैं जब बच्चा कुएं में गिर चुका है. जो लोग जर्मनी में शरण तलाश रहे हैं उन्हें कम से कम इतनी सुनिश्चितता तो होनी ही चाहिए कि उन्हें यहां सुरक्षा मिलेगी. पैसे कम हों या ज्यादा, इससे कुछ तय नहीं होना चाहिए. कम से कम जर्मनी जैसे संपन्न देश में यह स्वीकार नहीं किया जाएगा.

समीक्षाः स्वेन पोएले/एएम

संपादनः ईशा भाटिया