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शांति जिरगा के दौरान हमला, राष्ट्रपति ने कहा, 'कुछ नहीं होगा'

२ जून २०१०

अफ़गानिस्तान की राजधानी काबुल के पास जिरगा की बैठक शुरू होने के साथ ही आसपास बम धमाके और गोलीबारी हुई. तालिबान ने धमाकों की ज़िम्मेदारी ली है. बुधवार को राष्ट्रपति हामिद करजई ने इस बैठक का उद्धाटन किया.

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शांति जिरगा की बैठकतस्वीर: AP

बैठक के शुरू होने के साथ ही नज़दीक दो बम धमाके हुए और गोलीबारी की आवाज़ें सुनाई दीं. तालिबान ने बम धमाकों की जि़म्मेदारी ली है. तीन दिन चलने वाले इस जिरगा के लिए कड़ी सुरक्षा की गई है. समाज के अलग अलग वर्गों से एक हज़ार से ज़्यादा प्रतिनिधि यहां इकट्ठे हुए हैं.

जिरगा की बैठक जहां हो रही है उस जगह से 500 मीटर की दूरी पर दो बम धमाके सुने गए जबकि इलाके के पश्चिमी हिस्से से गोलीबारी की आवाज़ें सुनी गईं. इस दौरान करज़ई उद्घाटन भाषण दे रहे थे वे इस हमले में हताहत नहीं हुए.

रॉकेट हमला भी किया गया जिसके कारण बैठक में आए लोग उठ खड़े हुए, उन्हें शांत करते हुए करज़ई ने कहा, "बैठ जाईए, कुछ नहीं होगा." तालिबान ने बैठक का बहिष्कार किया है. तालिबान का कहना है कि ये शांति जिरगा अमेरिका और दूसरे नैटो देशों के लिए किया जा रहा है. तालिबान के बयान के हवाले से रॉयटर्स समाचार एजेंसी ने लिखा है, "निश्चित ही जिरगा देश में शांति लाने की कोशिशों के बजाए अमेरिका के लिए एक भूमिका बनाएगा कि वह अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध जारी रखे."

Afghanistan Jirga Vorbereitung
कड़ी सुरक्षातस्वीर: AP

हामिद करज़ई ने उन तालिबान लड़ाकों को अफ़ग़ानिस्तान लौटने का अनुरोध किया है जो सैनिक कार्रवाई की वजह से देश से चले गए थे. करज़ई ने कहा कि उनकी सरकार तालिबानी लड़ाकों को देश की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्रतिबद्ध है. लेकिन साथ ही कहा कि वो उन तालिबानी लड़ाकों को कभी माफ नहीं कर सकेंगे जिन्होंने आम लोगों पर हमला किया. भाषण के बाद राष्ट्रपति की गाड़ियों का काफिला वहां से जाता दिखाई दिया.

करीब 1600 कबायली नेता, सांसद, परिषद के सदस्य और धार्मिक नेता इस तीन दिन के जिरगे में हिस्सा ले रहे हैं.

अमेरिका का कहना है कि वह जुलाई 2011 से सैनिक वापिस बुलाना शुरू कर देगा और अफ़ग़ानी सुरक्षाबलों को मज़बूत करेगा. इस सबके चलते कई राजनयिक, और विश्वलेषक जिरगा का समर्थन तो कर रहे हैं लेकिन उन्हें इसके प्रभाव पर पूरा विश्वास नहीं. वहीं विपक्षी नेता अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने जिरगा की बैठक को खारिज किया है लेकिन उसका बहिष्कार नहीं किया. अब्दुल्ला का कहना था कि इसका नतीजा शांति के आस पास भी नहीं ले जाएगा. "इस बैठक का एजेंडा किसी को पता नहीं जो प्रतिनिधि जिरगे में आए हैं वे लोगों के प्रतिनिधि नहीं है. मुझे ये बैठक पब्लिक रिलेशन बढ़ाने की कवायद जैसी लग रही है."

हालांकि करज़ई की योजना है कि वे उन तालिबानियों से बात करें उन्हें समाज की मुख्य धारा में वापस लाएं जो हथियार छोड़ चुके हैं और अफग़ानिस्तान के संविधान में यकीन रखते हैं.साथ ही वो चाहते हैं कि कुछ तालिबानी नेताओं को संयुक्त राष्ट्र की ब्लैक लिस्ट से हटाया जाए और दूसरे नेता किसी मुस्लिम देश में रह सकें.

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा मोंढे