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शांति प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए अफ़ग़ान जिरगा

२ जून २०१०

कुरान की आयत के साथ आज से काबुल के पास तीन दिनों का जिरगा शुरू हो रहा है. समाज के विभिन्न वर्गों के 1,600 प्रतिनिधि यहां देश में युद्ध की स्थिति ख़त्म करने के बारे में विचार विमर्श करेंगे.

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जनता से जुड़ने की कोशिशतस्वीर: AP

काबुल के पास एक एअरकंडीशंड तंबू में इस परंपरागत जिरगे का आयोजन किया गया है. राष्ट्रपति हामीद करज़ई इसका उद्घाटन करने वाले हैं. प्रतिनिधियों को तालिबान के हमलों से बचाने के लिए लगभग 12 हज़ार सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं.

नवंबर में चुनाव जीतकर दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद हामिद करज़ई ने वादा किया था कि नौ साल से जारी युद्ध समाप्त करने और अंततः अमेरिकी सेना की वापसी संभव बनाने के लिए राष्ट्रीय सहमति बनाने की ख़ातिर वे एक जिरगे का आयोजन करेंगे. जिरगे के प्रतिनिधियों में 300 महिलाएं भी शामिल हैं. संगठकों का कहना है कि तालिबान के प्रतिनिधियों को औपचारिक रूप से आमंत्रित नहीं किया गया है, लेकिन अगर वे आते हैं, तो उन्हें जिरगे में भाग लेने से रोका नहीं जाएगा. चरमपंथियों का कहना है कि जब तक देश में विदेशी टुकड़ियां मौजूद हैं, वे शांति वार्ता में भाग नहीं लेंगे.

शुक्रवार को जिरगा के समापन पर एक घोषणा पेश की जाएगी, जिसमें विद्रोह के ख़ात्मे के लिए क़दमों का प्रस्ताव किया जाएगा. इसमें इसकी भी एक रूपरेखा पेश की जाएगी कि शांति प्रक्रिया में किन ग्रुपों को शामिल किया जाए व कैसे उनसे संपर्क किया जाए.

नंगरहार से आए जिरगा के प्रतिनिधि साएद अज़ीज़ ज़हीर का कहना है कि अगर जिरगा पूरी तरह से सफल नहीं भी होता, तब भी यह सही दिशा में एक क़दम होगा. उनका कहना था कि अब वक्त आ गया है कि सरकार अपने सशस्त्र बाग़ियों सहित सभी विरोधियों के साथ वार्ता की मेज पर बैठे. उनकी राय में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को शांति वार्ता का समर्थन करना चाहिए और सरकार को विश्वास पैदा करने के लिए विरोधियों की ओर आगे बढ़ना चाहिए.

करज़ई ने कहा है कि वे अल क़ायदा और उससे जुडे तालिबान के गिरोहों के साथ बात नहीं करेंगे, जो हिंसा त्यागने के लिए तैयार नहीं हैं. लेकिन वे सहमेल की प्रक्रिया का समर्थन कर रहे हैं. जिरगा के संगठकों ने इस पर भी ज़ोर दिया है कि शांति प्रक्रिया में मानव अधिकारों और महिलाओं के अधिकारों के क्षेत्र में प्राप्त प्रगति मिटाई नहीं जानी चाहिए.

जिरगा में भाग ले रहे कंदहार के प्रांतीय कौंसिलर आग़ा ललई दस्तगिरी का कहना है कि शांति तभी संभव होगी जब पड़ोस के देश उसका समर्थन करें और विद्रोहियों को मदद करना बंद करें.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ओ सिंह