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शादी के लिए क्या है सही उम्र

११ अगस्त २०१०

शादी का सवाल कभी न कभी सब के सामने आता है. खासकर आजकल भागती दौड़ती जिंदगी और करियर की आपाधापी में यह सवाल और भी अहम हो गया है कि शादी की क्या उम्र होनी चाहिए.

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तस्वीर: picture-alliance / dpa

पारंपरिक हिसाब से देखें तो भारत में 20 से 25 साल की उम्र को शादी के लिए सही समझा जाता है. बदलती सोच के मद्देनजर कुछ लोग 25 से 30 को सही उम्र बताने लगे हैं. लेकिन 28 साल के चक्रेश का कहना है कि अब पैमाना कुछ और हो गया है. वह कहते हैं, "लोग सोचते हैं कि 32 से 35 साल के बीच शादी कर लेंगे. दरअसल 20 से 30 साल की उम्र में तो आदमी अपने करियर को सेट करने में ही व्यस्त रहता है. तब शादी के लिए सोच पाना मुश्किल होता है."

Südkorea Moon Sekte Massenhochzeit in Seoul
तस्वीर: AP

करियर या शादी

शादी करना न करना, बेशक हर किसी का व्यक्तिगत फैसला हो सकता है. भारत में यूं तो 18 साल की लड़की और 21 साल के लड़के को कानूनी रूप से शादी करने का हक है. लेकिन आजकल हर कोई शादी से पहले अपनी जिंदगी को सेटल करना चाहता है. और जिस तरह आज गला काट प्रतियोगिता है, उसे देखते हुए तो इस उम्र में शादी करना टेढ़ी खीर दिखता है.

हालांकि एक एड एजेंसी में काम करने वाली नेहा चोपड़ा कहती हैं कि करियर की महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं होता, ऐसे में शादी के लिए सही उम्र वही है जब मानसिक रूप से उसके लिए तैयार हों. वह कहती हैं, "समाज ने या फिर आपके मां बाप ने शादी के लिए क्या उम्र तय कर रखी है, उससे कोई मतलब नहीं है. बात यह है कि जब तक आप मानसिक रूप से इसके लिए तैयार न हो, शादी नहीं करनी चाहिए."

सुनीता पचौरी एक कॉलेज लेक्चरर हैं और उन्होंने शादी 34 से 35 साल की उम्र में की. अब उनकी एक बेटी है और खुशहाल छोटा सा परिवार है. लेकिन वह मानती है कि देर से शादी करने में कभी कभी आपको वह नहीं मिल पाता जो शायद आपने सोचा है. वह कहती हैं, "कई बार अच्छे विकल्प मिल जाते हैं तो कई बार ठीक ठाक विकल्प मिलना भी मुश्किल हो जाता है. मेरे कई दोस्त हैं महिला भी और पुरूष भी, जिन्हें अब सही मैच नहीं मिल पा रहा है."

Symbolbild Große Koalition SPD und CDU Elefantenhochzeit
तस्वीर: dpa

नई सोच की दरकार

हालांकि नई पीढ़ी कुछ भी सोचे, लेकिन भारत इस मामले में थोड़ा अलग है. वहां वक्त से शादी न हो तो लोग बातें बनाने लग जाते हैं. अब ऐसे में मां बाप चाहे कितने भी नई सोच के और व्यवहारिक हों, उन्हें आखिरकार रहना तो समाज में ही पड़ता है. नेहा कहती हैं, "जब भी आप ऑफिस से घर जाते हैं तो आपको लगता है कि कहीं आज फिर शादी को लेकर नई टेंशन न खड़ी हो. इससे घर की शांति भंग होती है. साथ ही आपके माता पिता की सेहत भी प्रभावित होती है. उन्हें चिंता रहती है कि बच्चों की शादी नहीं हो रही है. गाहे बगाहे उन्हें लोगों की बातें सुनने को मिलती हैं. इस तरह शादी के लिए भावनात्मक रूप से काफी दबाव होता है."

खासकर लड़कियों के लिए करियर और शादी का सवाल और भी अहम हो जाता है. शानदार करियर बनाने की तमन्ना हर किसी की हो सकती है, लेकिन परिवार को पारंपरिक रूप से एक महिला की ही जिम्मेदारी समझा जाता रहा है. वैसे भी भारतीय परिवेश में कामकाजी महिला की जवाबदेही ज्यादा हो जाती है. पुरुष प्रधान समाज की अपनी मानसिकता है तो वहीं महिलाओं को लेकर बुनियादी सामाजिक रुढ़ीवादी सोच भी एक मुद्दा है.

सुनीता कहती हैं, "अगर कोई टीचर सुबह आठ बजे घर से निकलती है और घर 2 बजे की बजाय चार बजे पहुंचे तो पहला सवाल उसके चरित्र पर ही उठता है. हो सकता है कि उसे दफ्तर में कुछ अतिरिक्त काम रहा हो, लेकिन उससे सवाल जवाब उसी तरह किए जाते हैं."

जरूरत एक संतुलन की

कई लोगों की यह भी दलील होती है कि देर से शादी करने में आगे कई दिक्कतें आ सकती हैं. खासकर परिवार बढ़ाने के सिलसिले में कुछ परेशानियां आ सकती हैं. हालांकि मनोवैज्ञानिक डॉ. मानसी यादव कहती हैं कि मेडिकल साइंस के विकास के साथ अब ऐसी आशंकाएं बहुत कम हो गई हैं. वैसे शादी की बहस के बीच आजकल एक और चलन परवान चढ़ रहा है लिव इन रिलेशनशिप का. यानी शादी से पहले साथ साथ रहना. खासकर चक्रेश जैसे नौजवानों का इस चलन में ज्यादा विश्वास न हो, लेकिन यह उसी माहौल में हो रहा है जिसका वे भी हिस्सा हैं.

वह कहते हैं, "शहरों में ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ रही है जिन्हें लिव इन रिलेशनशिप का चलन पसंद आ रहा है. न सिर्फ यह ट्रेंडी है, बल्कि शादी जैसी बाध्यता भी इसमें नहीं है. लेकिन भारत समाज में इसकी स्वीकार्यता एक बड़ा मुद्दा है."

खैर, शादी की सही उम्र को लेकर जो बात उभर कर सामने आती है, वह यही है कि करियर और निजी जिंदगी में एक संतुलन बेहद जरूरी है. और हर व्यक्ति अपनी परिस्थिति के आधार पर तय कर सकता है कि उसे कब शादी करनी चाहिए.

रिपोर्टः हलो जिंदगी डेस्क

संपादनः एस गौड़

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