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शार्क से जहाजों को तेज करने की सीख

१ अप्रैल २०१३

मनुष्य ने प्रकृति से बहुत कुछ सीखा है. अब वैज्ञानिक शार्क मछली की त्वचा को समझ कर वैसा ही कुछ पानी के जहाज बनाने में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा करने से जहाज कम ऊर्जा खर्च कर तेज रफ्तार में चल सकेंगे.

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तस्वीर: Getty Images

मनुष्य ने अपने विकास के लिए प्रकृति से बहुत कुछ सीखा है. अब वैज्ञानिक शार्क मछली की त्वचा को समझ कर वैसा ही कुछ पानी के जहाज बनाने में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा करने से जहाज कम ऊर्जा खर्च कर तेज रफ्तार में चल सकेंगे.

खूंखार मछली शार्क को देख कर डर भले लगता हो लेकिन इसके त्वचा को समझ कर वैज्ञानिक उससे प्रेरणा ले रहे हैं. हैम्बर्ग के वैज्ञानिक जहाज की बाहरी सतह पर ऐसी परत चढ़ाने के बारे में सोच रहे हैं जो शार्क की त्वचा से मिलती जुलती हो. शार्क की त्वचा में बहुत सारी नलिकाएं होती हैं जिसकी मदद से वह तेज तैर सकती है. रिसर्च संस्था 'हैम्बर्ग शिप मॉडल बेसिन' (एचएसवीए) में काम करने वाले क्रिस्टियान योहांसेन कहते हैं, "इन नलिकाओं की मदद से वे बहाव के प्रतिरोध को कम कर पाती हैं, यानि उतनी ही ताकत लगाकर वे ज्यादा तेज रफ्तार में तैर लेती हैं."

प्रतिरोध में कमी

पानी के जहाज बनाने वालों के लिए शार्क की खाल को समझना बड़े काम की जानकारी है. विधि बहुत आसान है, कम प्रतिरोध का मतलब है जहाज को कम ऊर्जा की जरूरत होगी. इससे गैसों का उत्सर्जन भी कम होगा. यानि जहाज के साथ साथ पर्यावरण को भी फायदा होगा. माना जाता है कि यह क्षमता शार्क ने विकास के क्रम में अर्जित की जिससे उन्हें शिकार करने में आसानी होती है. सारा रहस्य नलिकाओं से बनी त्वचा में छुपा है. योहांसेन कहते हैं, "चिकनी सतह से प्रतिरोध कम करने में मदद मिलती है यह मिथ्या है." खांचेदार संरचना तैरने के लिए ज्यादा फायदेमंद है. शार्क के शरीर पर सिर से पूंछ तक गतिशील स्केल होते हैं जिन्हें रिब्लेट भी कहते हैं. ये तैरने की दिशा के समानांतर रहते हैं, इससे प्रतिरोध कम करने में मदद मिलती है. लेकिन यह जानकारी नई नहीं है. देखना यह है कि क्या यही तरकीब जहाजों में इस्तेमाल हो सकती है?

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तस्वीर: imago/imagebroker

जर्मनी के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट में इस बात पर प्रयोग किया जा रहा है कि क्या जहाज की सतह को इस तरह की संरचना देकर उसकी रफ्तार बढ़ाई जा सकती है.

हैम्बर्ग में प्रयोग

हैम्बर्ग में 1913 से जहाजों के मॉडल टेस्ट होते आए हैं. यहां जहाजों को उठाने और खींचने से लेकर उनके ईंधन की बचत वाले मॉडलों को चेक करने के लिए बर्फ के पूल भी मौजूद हैं. फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट के कर्मचारियों ने हाइड्रोडायनामिक का इस्तेमाल कर जहाजों की सतह पर शार्क की त्वचा की तरह रिब्लेट की परत चढ़ाकर प्रयोग किया. योहांसेन ने बताया, "दो बातों की जरूरत होती है, एक तो बड़ा आकार और दूसरी चीज तेज रफ्तार." जहाज पर यह परत चढ़ाने के बाद 36 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से पानी छोड़ा गया. प्रयोग में पाया गया कि रफ्तार जितनी ज्यादा होगी रिब्लेट उतना ही प्रतिरोध कम करने में मदद करेंगे. इसका मतलब हुआ कि रिब्लेट की परत चढ़ाने से जहाज को तेज रफ्तार में चलाने के लिए कम ऊर्जा की जरूरत होगी. कम ईंधन के इस्तेमाल से जहाजों के मालिक सालाना हर जहाज पर 234,000 यूरो यानि लगभग डेढ़ करोड़ रुपये बचा सकेंगे.

बड़े बड़े कंटेनरों वाले जहाज समुद्र में कई सालों तक रहते हैं, इसलिए यह परत भी ऐसी होनी चाहिए जो सालों तक टिकी रहे. योहांसेन कहते हैं, "हमने पाया कि जब तक यह परत 50 फीसदी खराब होती है इससे फायदा मिलना भी लगभग बंद हो जाता है." रिसर्चरों ने एक और समस्या यह पाई कि इस परत पर सीपियों के उग जाने से प्रतिरोध बढ़ने लगता है. इससे बचने के लिए उन्होंने इस परत पर जहरीला वार्निश लगाया जिससे सीपियों से इन्हें बचाया जा सके.

शार्क की त्वचा की संरचना और सीपियों से बचाने वाली वार्निश का इस्तेमाल जहाजों को भविष्य में कितना फायदा पहुंचाएगा, इस पर रिसर्च जारी है. अगर प्रयोग सफल रहता है तो समुद्री परिवहन में क्रांति आ जाएगी.

रिपोर्ट: मार्क फॉन लुप्के/एसएफ

संपादन: महेश झा

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