श्रीलंका में संसदीय चुनाव
८ अप्रैल २०१०राष्ट्रपति चुनावों के ठीक 3 महीने बाद श्रीलंका एक और बड़े मतदान के लिए तैयार है. इस चुनाव में 36 राजनीतिक दलों और स्वतंत्र संगठनों के लगभग 7500 उम्मीदवार भाग ले रहे हैं. जनमत सर्वेक्षणों की माने तो इन चुनावों में महिंदा राजपक्षे के सत्तारूढ़ युनाइटेड फ्रीडम अलाएंस की जीत की संभावना ज़्यादा है.
कोलंबो के राजनीतिक विश्लेषक रोहन एदिरसिंघे कहते हैं, "महिंदा राजपक्षे की लोकप्रियता, लिट्टे के खिलाफ जीत के बाद काफी बढ़ गई है. इसी कारण उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव जीता. श्रीलंका में राष्ट्रपति पद को बड़ी अहमियत दी जाती है."
महिंदा राजपक्षे ने अपनी लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए संसदीय चुनाव कराने का फ़ैसला लिया. तेज विकास और गरीबी हटाने जैसे वायदों के साथ उनका सत्तारूढ़ युनाइटेड फ्रीडम अलाएंस 225 सदस्यीय श्रीलंका संसद में दो तिहाई बहुमत की जीत की अपेक्षा कर रहा है. कोलंबो के राष्ट्रीय शांति परिषद के कार्यकारी निदेशक जेहन पेरेरा का मानना है कि इस लक्ष्य तक पहुंचना इतना आसान नहीं है.
जेहन परेरा कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि किसी पार्टी को दो तिहाई बहुमत हासिल होगा क्योंकि हमारी चुनाव प्रणाली सानुपातिक प्रद्धति पर आधारित है." राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजपक्षे की पार्टी चुनाव में इन आंकड़ों के करीब तो ज़रूर पहुंचेंगी लेकिन चुनाव के बाद कुछ और राजनीतिक दलों के साथ मेल-जोल कर के दो तिहाई बहुमत हासिल करने की कोशिश करेगी.
पूर्व सेना प्रमुख सरत फोन्सेका को राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाने वाले विपक्षी दल का विभाजन हो गया है. ‘यूनाइटेड नेशनल फ्रंट' के नेता पूर्व प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे कानून में सुधार लाने, बेहतर अर्थव्यवस्था, मुद्रास्फीति और भ्रष्टाचार से निपटने जैसे लक्ष्यों को हाथ में लिए मैदान में उतर तो गए हैं लेकिन उनके जीतने की संभावनाएं काफी कम हैं.
दूसरा विपक्षी मोर्चा डेमोकेट्रिक नेशनल अलायंस है जिसमें फोन्सेका भी शामिल हैं, उसका जीतना भी संभव नहीं लग रहा. फोन्सेका चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते भी हैं, तब भी शायद वह अपने राजनीतिक कैरियर को ज़्यादा दिन संभाल नहीं पाएंगे क्योंकि भूतपूर्व जनरल पर कोर्ट मार्शल की कार्यवाही चल रही है.
सरकार ने चुनाव के दौरान सुरक्षा के लिए 20,000 निगरानी यंत्र जगह-जगह लगाए हैं. साथ ही साथ 70,000 सैनिकों और पुलिस के सिपाहियों को तैनात करने का फैसला भी किया है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/श्रेया कथूरिया
संपादन: महेश झा