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संसद में गतिरोध से आर्थिक गतिविधियां ठप्प

प्रभाकर१२ अगस्त २०१५

संसद का कामकाज ठप्प है, आर्थिक सुधारों पर असर पर रहा है. लेकिन सत्तारुढ़ एनडीए और विपक्षी राजनीतिक दलों में से कोई अपना रुख बदलने पर सहमत नहीं है. कॉरपोरेट भारत ने सुलह की अपील की.

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तस्वीर: UNI

सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने राजनीतिक हितों के लिए कई मुद्दों पर टकराव पर हैं. इनमें ललित मोदी कांड में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भूमिकाओं और मध्यप्रदेश में सरकारी कॉलेजों और नौकरियों में भर्ती के लिए हुए व्यापमं घोटाला प्रमुख हैं. खासकर कांग्रेस ने इस मामले में काफी आक्रामक रुख अपनाया है. सदन में अपने 25 सांसदों के निलंबन के बाद कांग्रेस ने और हमलावर रवैया अख्तियार कर लिया है. सुषमा स्वराज ने सदन में ललित मोदी मुद्दे पर बहस का भरोसा दिया है, लेकिन विपक्ष उनके इस्तीफे से कम पर संसद चलने देने को तैयार नहीं है. बुधवार को भी विपक्ष के हंगामे के चलते सदन की कार्यवाही बार-बार ठप होती रही. इस गतिरोध के चलते चालू सत्र के दौरान कोई अहम विधेयक पारित नहीं हो सका है. बुधवार को बेहद अहम कहे जाने वाले जीएसटी विधेयक पर बहस होनी थी. लेकिन इसे पेश ही नहीं किया जा सका. इससे पहले सदन में सरकार की ओर से जो चार विधेयक पारित हुए भी हैं, वह भी विपक्ष की गैरमौजूदगी में ही पारित हो सके हैं.

आर्थिक गतिविधियां ठप

संसद में जारी गतिरोध की वजह से देश में आर्थिक सुधारों पर तो असर पड़ा ही है, कॉरपोरेट जगत भी इससे अछूता नहीं है. यही वजह है कि देश के तमाम शीर्ष उद्योगपतियों ने इस गतिरोध को शीघ्र खत्म करने के लिए एक ऑनलाइन याचिका जारी की है. इस पर राहुल बजाज, आदि गोदरेज और किरण मजुमदार-शॉ समेत 17 हजार से ज्यादा लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं. इस याचिका में राजनीतिक दलों से गतिरोध दूर कर अहम विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया शुरू करने की अपील की गई है. उद्योग-व्यापार संगठन कनफेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) की ओर से जारी इस याचिका को मिलने वाला समर्थन लगातार बढ़ रहा है.

उद्योगपतियों के अलावा, छात्र, शिक्षाविद, अर्थशास्त्री और आम लोग भी इसे समर्थ दे रहे हैं. सीआईआई का कहना है कि संसद के पंगु होने से देश का लोकतंत्र कमजोर हो सकता है. याचिका में कहा गया है कि संसद में राजनीतिक ताकत सरकार व विपक्ष के बीच बंटी है. दोनों की भूमिका अहम है और उन पर तमाम महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने और उको सुलझाने की जिम्मेदारी है. संगठन ने तमाम राजनीतिक दलों से देशहित में इस गतिरोध को तुरंत खत्म करने की अपील की है.

खतरे में आर्थिक विकास

संसद के मौजूदा सत्र में दो अहम विधेयकों, भूमि अधिग्रहण और गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) विधेयकों पर बहस के बाद उनको पारित किया जाना था. इससे आर्थिक सुधारों की गति तेज करने में सहायता मिलती. लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के कारण विपक्ष के रुख के चलते इन विधेयकों को कानूनी जामा नहीं पहनाया जा सकेगा. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी. जोशी कहते हैं, ‘अगर इन विधेयकों को पारित नहीं कराया जा सका तो उद्योग जगत की भावनाओं और भरोसे को ठेस पहुंचेगी और नतीजतन आर्थिक विकास प्रभावित होगा.

संसद में जारी गतिरोध को ध्यान में रखते हुए इन विधेयकों के पारित होने की कोई संभावना नहीं है.' राजनीतिक गतिरोध का असर धीरे-धीरे देश के आर्थिक सुधारों पर भी नजर आने लगा है. वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि राजनीतिक झगड़े से उद्योग जगत का आत्मविश्वास प्रभावित हो रहा है और आर्थिक सुधार के वादे को पूरा करने में नाकामी विकास को पटरी से उतार सकती है. राजनीतिक पर्यवेक्षक सतीश मिश्र कहते हैं, ‘सरकार को विपक्ष को भरोसे में लेना होगा. उसी से आगे बढ़ने की राह आसान होगी. लेकिन फिलहाल तो सरकार विपक्ष को एक इंच जमीन देने के मूड में नहीं नजर आती. ऐसे में इस गतिरोध के खत्म होने के आसार कम ही हैं.'

दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों के मुताबले भारतीय संसद की बैठकों का सालाना औसत पहले से ही काफी कम है. अमेरिकी सीनेट की साल में औसतन 180 दिन बैठक होती है और कांग्रेस की 126 दिन. ब्रिटेन के हाउस आफ कॉमंस की साल में 130 बैठकें होती हैं जबकि फ्रांस की नेशनल असेंबली की 149 दिन. इनके मुकाबले दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत में संसद की साल में औसतन महज 80 बैठकें ही होती हैं. उसमें भी एक पूरे सत्र का राजनीतिक विवाद की भेंट चढ़ जाना चिंता का विषय है. तीन दिन बाद 68वां स्वाधीनता दिवस मनाने वाले भारत के लोकतंत्र का यह स्वरूप कतई वांछनीय नहीं है.