1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सबका मालिक एकः फिर घर अलग क्यों

१० जून २०१४

एक रब्बी, एक पादरी और एक इमाम ने जर्मनी की राजधानी बर्लिन में वह कर दिखाया, जिसका न जाने कब से इंतजार था. मजहब साथ रहना सिखाता है और इन्होंने सभी धर्मों के लिए एक जगह उपासनास्थल बना दिया.

https://p.dw.com/p/1CF0k
तस्वीर: JOHN MACDOUGALL/AFP/Getty Images

अभी सिर्फ बुनियाद पड़ी है. 2018 में इसी पर बुलंद इमारत खड़ी होगी. यह इलाका बर्लिन की मुख्य जगह पर है और इस जगह पर सभी धर्मों का इतना ख्याल रखा गया है कि इसका कोई नाम भी नहीं रखा गया है.

यह कोई चर्च नहीं, कोई सिनागॉग नहीं, कोई मस्जिद नहीं. लेकिन इसमें तीनों का थोड़ा थोड़ा हिस्सा है. फिलहाल इसे "प्रार्थना और सीखने के केंद्र" के रूप में जाना जा रहा है. इसकी नींव डालने वालों का कहना है कि पूरी दुनिया में इसका कोई जोड़ा नहीं. यह प्रोजेक्ट करीब साढ़े चार करोड़ यूरो का है और यह सिर्फ बहुधर्म का प्रतीक नहीं होगा, बल्कि बहुसंस्कृति वाले बर्लिन का भी प्रतीक होगा.

Berlin Gebetshaus House of One christlich, jüdisch, muslimisch
आर्किटेक्ट विलफ्रिड कूएनतस्वीर: JOHN MACDOUGALL/AFP/Getty Images

रोलांड श्टॉल्ट इस प्रोजेक्ट से जुड़े दो प्रोटेस्टेंट प्रतिनिधियों में से एक हैं. उनका कहना है, "हमें लगा कि इस बात की बहुत ज्यादा जरूरत थी कि हम शांतिपूर्ण तरीके से सभी धर्मों के साथ आएं." अब यह सिर्फ इत्तेफाक ही है कि इसे जहां तैयार किया जा रहा है, उसका गहरा धार्मिक इतिहास रहा है.

यहां की एक ऐतिहासिक चर्च वाली धरोहर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी और बाद में कम्युनिस्ट राज ने 1960 के दशक में उसे ढहा दिया. फिर यहां कार पार्किंग बना दी गई. लेकिन नगर निगम ने बाद में यह जगह प्रोटेस्टेंट समाज को लौटा दी. श्टोल्ट का कहना है, "हम इस जगह में दोबारा जान फूंकना चाहते थे. लेकिन कोई चर्च बना कर नहीं, बल्कि ऐसी जगह बना कर जो आज के बर्लिन के धर्म का प्रतीक हो."

साल 2010 के आंकड़ों के मुताबिक बर्लिन में 34 लाख लोग रहते हैं और उनमें से 19 फीसदी प्रोटेस्टेंट ईसाई हैं. करीब 8.1 प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों का है और एक फीसदी से थोड़ा कम यहूदियों का. करीब 60 फीसदी लोग किसी धर्म को नहीं मानते.

यहां के पादरी ग्रेगोर होबेर्ग का कहना है कि काम शुरू करने के साथ ही मुस्लिम और यहूदी समुदाय के प्रतिनिधियों को साथ लेकर चलना जरूरी था, "शुरू से ही हम इसे एक अंतर धार्मिक प्रोजेक्ट बनाना चाहते थे. ऐसी जगह नहीं कि जिसे ईसाई ने बनाई हो और वहां यहूदियों और मुस्लिमों को भी जोड़ा जाए."

Berlin Gebetshaus House of One christlich, jüdisch, muslimisch
इमारत का एक खाकातस्वीर: JOHN MACDOUGALL/AFP/Getty Images

तुर्क मूल के इमाम कादिर सानची ने बताया कि पश्चिम जर्मनी में एक कैथोलिक प्रोटेस्टेंट चर्च ने उन्हें सपना दिखाया कि ऐसी जगह भी बनाई जा सकती है. उन्होंने कहा, "जब मैं फ्रैंकफर्ट में मुस्लिम थियोलॉजी की पढ़ाई कर रहा था, तो मैंने पड़ोसी शहर डार्मश्टाट में देखा कि एक ही छत के नीचे कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों चर्च चल रहे हैं." इमाम का कहना है, "तब मैंने पादरी से कहा कि कितना अच्छा हो कि ऐसी किसी जगह में मुस्लिमों को भी जगह मिले. तब पादरी ने कहा कि धीरज रखो, इसमें 600 साल लगेंगे."

इस बिल्डिंग का डिजाइन विलफ्रिड कूएन तैयार कर रहे हैं. करीब 200 लोगों ने अपनी इंट्री भेजी थी, जिसमें कूएन की इंट्री को 2011 में पसंद किया गया. उनका कहना है कि इमारत का डिजाइन इतना आसान नहीं, "यह बहुत बड़ी चुनौती थी कि एक साथ रहते हुए भी उनकी निजी पहचान को बनाए रखा जाए."

तीनों धर्मों को इबादत के लिए बराबर जगह के कमरे मिलेंगे, एक ही मंजिल पर. सभी कमरों के दरवाजे एक कॉमन कमरे में खुलेंगे, जहां इबादत के बाद लोग आपस में मिल सकेंगे. होबेर्ग का कहना है कि बहुत सोच विचार के बाद फैसला किया गया कि तीनों धर्मों के लिए उपासना का एक ही कमरा नहीं बनाया जाएगा, क्योंकि इसकी वजह से आकर्षित होने की जगह लोग इससे दूर हो सकते थे, "और हम रूढ़ीवादी लोगों को भी अपनी तरफ आकर्षित करना चाहते थे कि उन्हें बताया जा सके कि धर्मों के बीच बातचीत सिर्फ संभव ही नहीं, बल्कि जरूरी भी है."

एजेए/ओएसजे (एएफपी)