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सबसे ज्यादा निरक्षर भारत में

२९ जनवरी २०१४

सरकार सालों से भारत में साक्षरता अभियान चला रही है और उस पर होने वाले खर्च की खूब चर्चा भी करती आई है. लेकिन इसके बाद भी संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा निरक्षर वयस्क भारत में हैं.

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तस्वीर: AP

'एजुकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट' में बताया गया है कि 1991 से 2006 के बीच भारत में साक्षरता दर 48 फीसदी से बढ़ कर 63 हो गयी है. लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण यह बदलाव दिखाई ही नहीं दिया और कुल निरक्षर वयस्कों की संख्या में भी कोई बदलाव नहीं हुआ.

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में अमीर और गरीब में बहुत ज्यादा फासला है जिसका असर शिक्षा पर भी देखने को मिल रहा है. एक तरफ उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुकी महिलाएं हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बनाई है तो दूसरी ओर ऐसे लाखों बच्चे हैं जिन्हें शिक्षा का मूल अधिकार भी नहीं मिल पा रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है, "2015 के बाद के लक्ष्यों में इस ओर वचनबद्धता दिखाना जरूरी है ताकि सबसे पिछड़े तबकों की प्रगति के लिए मानदंड सुनिश्चित किए जा सकें." भारत में कुल 28.7 करोड़ वयस्क पढ़ना लिखना नहीं जानते हैं, जो कि दुनिया भर की निरक्षर आबादी का 37 फीसदी है.

इस रिपोर्ट के लिए भारत समेत कई देशों में स्कूलों का दौरा किया गया और यह जानने की कोशिश की गयी कि बच्चों का स्तर कैसा है. भारत में किए गए अध्ययनों में पाया गया कि लड़कियों का स्तर लड़कों से बेहतर है.

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भारत में कुल 28.7 करोड़ वयस्क पढ़ना लिखना नहीं जानतेतस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट इस ओर लोगों का ध्यान खींचना चाह रही है कि निरक्षरता के कारण दुनिया भर की सरकारों को सालाना 129 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ रहा है. सूची में रखे गए पहले दस देशों में अनपढ़ लोगों की संख्या 55.7 करोड़ है जो कि कुल निरक्षर आबादी का 72 फीसदी है. दुनिया भर में प्राथमिक शिक्षा पर खर्च किए जाने वाला 10 फीसदी धन बर्बाद हो जाता है क्योंकि शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जाता. इस कारण गरीब देशों में अक्सर चार में से एक बच्चा एक भी वाक्य पूरी तरह नहीं पढ़ सकता.

पाठ्यक्रम में बदलाव

उत्तर प्रदेश में अमीर परिवारों के लगभग सभी बच्चे आराम से पांचवी कक्षा तक स्कूल जाते हैं, जबकि गरीब परिवारों के 70 फीसदी बच्चे ही ऐसा कर पाते हैं. इसी तरह मध्य प्रदेश में अमीर परिवारों के तो 96 फीसदी बच्चे प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लेते हैं लेकिन गरीब परिवारों के 85 फीसदी बच्चे ही पांचवीं तक पहुंचते हैं. हालांकि स्कूल में होने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें ठीक से शिक्षा भी मिल रही है. जब इन बच्चों को गणित के सवाल दिए गए तो पाया गया कि पांच में से केवल एक ही छात्रा सही जवाब देने की हालत में थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि जो बच्चे ठीक से पढ़ नहीं पाते हैं उनकी जल्द ही स्कूल छोड़ देने की भी अधिक संभावना होती है. साथ ही गरीब राज्यों में परिणाम ज्यादा बुरे पाए गए.

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गरीब परिवारों के 85 फीसदी बच्चे ही पांचवीं तक पहुंचते हैंतस्वीर: Sam Panthaky/AFP/Getty Images

बच्चों के स्कूल जाने में अनियमितता के अलावा टीचरों का भी स्कूल से गायब रहना एक बड़ा मुद्दा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में टीचरों के संघ के कारण छात्रों की स्थिति में बेहतरी देखे गयी है. लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो पाया है. वहां ट्यूशन के लालच में कई बार टीचर स्कूल ही नहीं जाते हैं. महाराष्ट्र और गुजरात में स्कूली टीचरों की अनुपस्थिति 15 और 17 फीसदी दर्ज की गयी, जबकि बिहार और झारखंड में 38 और 42 फीसदी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि इसे बदलने के लिए सरकार को टीचरों के साथ मिल कर काम करना होगा. रिपोर्ट ने टीचरों के बर्ताव, छात्रों के साथ दुर्व्यवहार और बच्चों के अधिकारों की रक्षा पर भी जोर देने को कहा है. साथ ही स्कूलों में पाठ्यक्रम में बदलाव की भी बात कही गयी है, "भारत का पाठ्यक्रम दिए गए समय में छात्रों की सीखने की क्षमता से ज्यादा है और इस बढ़ते अंतर की वजह है."

आईबी/एएम (पीटीआई)

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