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समाज को झकझोरती लक्ष्मी

२२ मार्च २०१४

मायानगरी मुंबई की चकाचौंध से बाहर निकलकर एक फिल्म निर्देशक दक्षिण भारत घूमने गए. इस दौरान उसका सामना एक विचलित करने वाली सच्चाई से हुआ. ये सच अब पर्दे पर है और भारतीय व्यवस्था को आईना दिखा रहा है.

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तस्वीर: AP

फिल्म निर्देशक नागेश कुकनूर जब आंध्र प्रदेश में घूम रहे थे तो उनकी मुलाकात 17 साल की एक लड़की से हुई. वो कुछ लोगों के खिलाफ अदालती लड़ाई जीत चुकी थी. राहत सेंटर में रहने वाली उस युवती ने अपने दोषियों को जेल की सलाखों तक पहुंचाया था. उस मुलाकात का जिक्र करते हुए कुकनूर कहते हैं, "14 साल की उम्र में उसका अपहरण हुआ. उसे देह व्यापार में धकेला गया, वो भाग निकली, उसमें इतनी हिम्मत थी कि वो अपने अपराधियों को अदालत तक ले गई और एक मिसाल पेश की."

पीड़ित लड़की के गृह राज्य आंध्र प्रदेश में ऐसी कानूनी लड़ाई का यह पहला मामला था. इसके बाद ऐसे ही 100 से ज्यादा केस सामने आए और पीड़ितों ने अपने अपहर्ताओं को सजा दिलाई. एशिया में हर साल लाखों बच्चे लापता हो जाते हैं. हाल के बरसों में भारत बच्चियों को देह व्यापार में धकेलने वाले अड्डे के रूप में सामने आ रहा है.

कुकनूर ने काल कोठरी को पीड़ित युवतियों के नजरिए से पेश किया है. पीड़िता से बातचीत कर कुकनूर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस पर फिल्म बनाई. फिल्म का नाम लक्ष्मी है. इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सराहा जा रहा है. अमेरिका के पाल्म स्प्रिंग्स फिल्म फेस्टिवल में फिल्म को दर्शकों की पसंदीदा फिल्म का अवॉर्ड मिला. शुक्रवार को फिल्म भारत में वयस्क सर्टिफिकेट के साथ रिलीज हो गई.

सामाजिक मुद्दों पर टिप्पणी करने वाली लेखिका शोभा डे कहती हैं, "बिना उल्टी किए या स्क्रीनिंग छोड़े मैं सिर्फ 70 फीसदी फिल्म ही देख पाई. मैं इससे ज्यादा विचलित होना बर्दाश्त नहीं कर सकती थी."

कुकनूर को उम्मीद है कि उनकी यह फिल्म समाज को सड़क पर घूमते बच्चों को आवारा या भिखमंगा समझने के बजाए इंसानी नजर से देखने की राह सुझाएगी.

ओएसजे/एजेए (एएफपी)