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विदेशियों को अपनाता जर्मनी

१८ सितम्बर २०१३

ब्लू कार्ड की शुरुआत कर जर्मनी विदेशी कामगारों को लुभाने की कोशिश तो कर रहा है, लेकिन विदेशियों के साथ जर्मनी का अच्छा इतिहास नहीं रहा है. तुर्क मूल के लोगों का आज भी यहां समेकन नहीं हो पाया है. ये चुनाव का मुद्दा भी है.

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तस्वीर: DW/I. Bhatia

जर्मनी में 22 सितंबर को चुनाव होने हैं. दुनिया भर के टीवी चैनल इस चर्चा में लगे हैं कि क्या अंगेला मैर्केल का जादू तीसरी बार भी चल पाएगा. लेकिन मीडिया में हो रही चर्चा को अगर छोड़ दें, तो देश में चुनाव का कोई शोर गुल सुनाई नहीं देता. भारत की तरह यहां ना ही बड़ी बड़ी रैलियां दिखाई देती हैं और ना ही लाखों की तादाद में नेताओं का भाषण सुनने आए लोग. नेता छोटे स्तर पर ही मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश में लगे हैं.

जर्मनी की ग्रीन पार्टी मुख्य विपक्षी दल एसपीडी के साथ मिल कर चुनाव प्रचार में लगी है. चुनाव अभियान के तहत ग्रीन पार्टी के संसदीय दल के उपनेता योसेफ विंकलर पहुंचे जर्मन शहर बिंगेन में. भारतीय मूल के विंकलर ने यहां विदेशी मूल के लोगों से मुलाकात की जो जर्मनी में बसने की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि जर्मन नागरिक ना होने के कारण ये लोग मतदान में हिस्सा नहीं ले सकते, लेकिन जर्मनी में विदेशियों का समेकन ग्रीन पार्टी के चुनाव प्रचार का हिस्सा है.

Josef Winkler im Lernzentrum Bingen
एडल्ट एजुकेशन सेंटर में ग्रीन पार्टी के योसेफ विंकलरतस्वीर: DW/I. Bhatia

नेता से मुलाकात

बिंगेन जर्मनी की सबसे बड़ी नदी राइन पर बसा एक छोटा सा शहर. इसे यहां की खूबसूरती के लिए जाना जाता है. केवल 25,000 की आबादी वाला बिंगेन देखने में एक पारंपरिक जर्मन शहर है, जहां नदी किनारे दूर दूर तक विनयार्ड फैले हैं. फ्रांस, लग्जमबर्ग और नीदरलैंड्स की सीमाओं के करीब इस छोटी सी जगह में आपको कई विदेशी दिख जाएंगे. ये सैलानी नहीं हैं, बल्कि जर्मनी में बसने की उम्मीद से आए लोग हैं.

इन्हीं के लिए यहां के एडल्ट एजुकेशन सेंटर (वीएचएस) में कई तरह के कोर्स चल रहे हैं. यहां 70 से भी ज्यादा देशों के लोग जर्मन भाषा और संस्कृति को सीख रहे हैं. इनमें से कई योसेफ विंकलर के आने से काफी उत्साहित दिखे. वीएचएस की मार्था श्वाब बताती हैं, "हमारे स्टूडेंट इस बात से बहुत खुश हैं कि एक नेता उनके पास आए और उनकी बातें सुनीं."

Politiker Josef Winkler im Gespräch mit ausländischen Studenten im Lernzentrum Bingen. Foto: DW/Isha Bhatia, 11.09.2013
बिंगेन के एडल्ट एजुकेशन सेंटर (वीएचएस) की मार्था श्वाबतस्वीर: DW/I. Bhatia

पाकिस्तान के मुशर्रफ अहमद भी इस ग्रुप का हिस्सा हैं. वे इस उम्मीद में यहां पहुंचे कि जान सकें कि शरणार्थियों के बारे में नेता क्या सोच रखते हैं. मुशर्रफ अहमदी मुसलमान हैं. उनका कहना है कि पाकिस्तान में उनकी जान को खतरा था, इसलिए उन्हें भाग कर यूरोप आना पड़ा. करीब सवा साल पहले वह अपनी मां के साथ जर्मनी पहुंचे. इस बीच उनकी मां को तो शरणार्थी घोषित कर दिया गया है, लेकिन मुशर्रफ की अर्जी पर अब भी कोई फैसला नहीं लिया गया है.

विंकलर ने मुशर्रफ और अन्य विदेशियों की दिक्कतें सुनीं और उन्हें आश्वासन दिया कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वे इस बारे में जरूर कुछ करेंगे. डॉयचे वेले से बातचीत में योसेफ विंकलर ने कहा, "आप हर किसी को शरण तो नहीं दे सकते हैं. लेकिन फिलहाल प्रक्रिया बहुत ही लंबी है. लोग यहां आ कर छह छह महीने तक इंतजार करते हैं. उन्हें नहीं पता होता कि उन्हें यहां रहने की अनुमति मिलेगी भी या फिर वापस लौट जाना होगा. इस तरह मानसिक रूप से उन्हें तकलीफ पहुंचती है. हम सरकार में आते ही इसे बदलना चाहेंगे."

Josef Winkler im Lernzentrum Bingen
अफगानिस्तान के अहमद अवि फराश (बायें) और पाकिस्तान के मुशर्रफ अहमदतस्वीर: DW/I. Bhatia

विदेशियों की दिक्कतें

विंकलर मानते हैं कि जर्मनी की राजनीतिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि विदेशियों के लिए यहां स्थिति मुश्किल बन जाती है. वीएचएस की मार्था श्वाब 15 साल से विदेशियों को पढ़ा रही हैं. वह भी इस से सहमत हैं, "राजनीतिक कारणों से विदेशियों को समाज में अपनी जगह नहीं मिल पा रही है. धीरे धीरे हालात बेहतर तो हुए हैं, और मैं उम्मीद करती हूं कि आगे यह और भी बदलेगा." डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा कि विदेशियों को जर्मनी में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, "नौकरी के लिए अनुमति लेने में ही बहुत वक्त लग जाता है, यूनिवर्सिटी में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. आर्थिक तौर पर भी उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इसलिए कई बार तो वे छुप कर नौकरियां करते हैं. कई स्टूडेंट हमें बताते हैं कि जर्मन लोगों के साथ दोस्ती करना मुश्किल होता है, क्योंकि वे हर चीज को संदेह की नजर से देखते हैं".

अफगानिस्तान के अहमद अवि फराश भी वीएचएस में पढ़ रहे हैं. वह 15 महीने पहले जर्मनी पहुंचे और अब यहीं अपना करियर बनाना चाहते हैं. शहर से दूर एक छोटे से गांव में उनका होस्टल है, जहां वह अन्य विदेशियों के साथ रह रहे हैं. वह कहते हैं कि अफगानिस्तान उन्हें निजी कारणों से छोड़ना पड़ा, जिनके बारे में वह बात नहीं करना चाहते. 15 महीनों में वह जर्मन भाषा का काफी ज्ञान हासिल कर चुके हैं. वह उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही भाषा पर उन्हें महारत हासिल होगी और फिर असायलम मिल जाने के बाद वह फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई शुरू कर सकेंगे.

Josef Winkler im Lernzentrum Bingen
ग्रीन पार्टी के योसेफ विंकलर से मिलने आए विदेशी छात्रतस्वीर: DW/I. Bhatia

विदेशी नहीं छीनते नौकरियां

विदेशियों के बारे में अक्सर लोगों में यह धारणा होती है कि वे देशवासियों की नौकरियां छीन रहे हैं. विंकलर का कहना है कि राजनीतिक इच्छा की कमी ही समाज में ऐसी धारणाओं के पनपने का कारण है. वीएचएस में छात्रों के सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने अंगेला मैर्केल की पार्टी पर वार करते हुए कहा कि जब तक सीडीयू और सीएसयू जैसी पार्टियां सत्ता में रहेंगी तब तक हालात ऐसे ही बने रहेंगे. डॉयचे से बातचीत में उन्होंने कहा, "चुनाव प्रचार में तो समेकन की बातें हो रही हैं, लेकिन कथनी और करनी में बहुत फर्क है."

मार्था श्वाब भी इस धारणा को बेबुनियाद मानती हैं, "ये पढ़े लिखे लोग हैं, जो यहां आ कर अच्छी नौकरियां ढूंढ रहे हैं. और अधिकतर वे ऐसी नौकरियां कर रहे हैं जो जर्मन नहीं कर पा रहे हैं. मुझे लगता है कि ये सस्ती लोकप्रियता बटोरने वाले चैनलों ने फैलाई हुई बात है. मुझे तो कभी ऐसा कोई नहीं मिला जिसने मुझसे कहा हो कि विदेशियों ने मेरी नौकरी छीन ली."

विंकलर उन नेताओं में से हैं, जो धार्मिक और आप्रवासन नीति जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर पार्टी का नेतृत्व करते आए हैं. खुद दो संस्कृतियों को जानने वाले विंकलर, चर्च पॉलिसी और धर्मों के बीच संवाद के मामलों पर ग्रीन पार्टी के प्रवक्ता रह चुके हैं. इसके अलावा वह इंडो-जर्मन संसदीय मैत्री संगठन के प्रमुख भी हैं. उम्मीद की जा सकती है कि उनके प्रयास जर्मनी में विदेशियों के समेकन में मददगार साबित होंगे.

रिपोर्ट: ईशा भाटिया, बिंगेन

संपादन: आभा मोंढे

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