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सरकार को देसी शराब का सहारा

२१ दिसम्बर २०१२

पश्चिम बंगाल में भीषण आर्थिक तंगी से जूझ रही ममता बनर्जी सरकार की सेहत देसी शराब से सुधर रही है. पिछले एक साल में इस राज्य में देसी शराब की बिक्री बेतहाशा बढ़ी है.साथ ही विवाद भी बढ़ा है.

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तस्वीर: Fotolia/Gudellaphoto

देसी शराब की बिक्री से सरकार को राजस्व के तौर पर करोड़ों रुपए मिल रहे हैं. लेकिन इसके साथ ही सरकार की इस नीति पर विवाद भी लगातार तेज हो रहा है. विपक्षी सीपीएम और कई गैर-सरकारी संगठनों ने शराब के जरिए राजस्व बढ़ाने की सरकार की नीति के खिलाफ आवाज उठाई है.

करोड़ों का राजस्व

आबकारी विभाग ने इस साल 27 अरब रुपए की राजस्व वसूली का लक्ष्य रखा है. लेकिन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि यह आंकड़ा 30 अरब को पार कर जाएगा. पिछले साल इस मद में 21 अरब रुपए की आय हुई थी. इस साल वैसे तो अंग्रेजी शराब की बिक्री भी बढ़ी है. लेकिन देसी शराब की बिक्री के आंकड़े हैरत में डालते हैं. इस साल मार्च तक औसतन हर महीने इस शराब की 2.7 करोड़ बोतलें बिकती थीं. लेकिन नवंबर में यह आंकड़ा बढ़ कर 3.7 करोड़ तक पहुंच गया. इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए राज्य में पिछले कुछ महीनों के दौरान देसी शराब के चार बॉटलिंग प्लांट लगाए गए हैं. इसके अलावा सरकार के पास ऐसे कम से कम 15 आवेदन विचाराधीन हैं. आबकारी विभाग के सूत्रों के मुताबिक, पिछले साल महज देसी शराब की बिक्री से 5.44 अरब रुपए का राजस्व मिला था. लेकिन चालू वित्त वर्ष के दौरान यह साढ़े सात अरब होने की उम्मीद है.

शराब का सहारा

दरअसल, देसी ठेके पर बनने वाली शराब पीकर हुई मौतों की घटनाएं बढ़ने के बाद लोग अब सरकारी ठेके पर देसी शराब पीने के लिए उमड़ने लगे हैं. आबकारी आयुक्त देव कुमार चक्रवर्ती कहते हैं, "पिछले साल दिसंबर में संग्रामपुर में जहरीली शराब से लगभग सौ लोगों की मौत की घटना के बाद आम लोगों में अवैध शराब के खिलाफ जागरुकता बढ़ी है. अब लोग सरकारी ठेकों का रुख कर रहे हैं. यही वजह है कि राज्य में अवैध शराब बेचने के मामले पहले के मुकाबले काफी कम हो गए हैं."

आबकारी विभाग के बढ़ते राजस्व से उत्साहित सरकार अब राज्य के बारों को भी शराब की बोतलें बेचने की अनुमति देने की तैयारी में है. इससे चालू वित्त वर्ष के आखिरी तीन महीनों के दौरान सरकार को लगभग 15 करोड़ का राजस्व मिलेगा. सरकार ने कोलकाता के तमाम बड़े होटलों को 15 जनवरी तक सुबह चार बजे तक बार खुले रखने की अनुमति दे दी है. पहले रात दो बजे तक ही बार खुले रहते थे. एक बड़े होटल से शराब की बिक्री के मद में सरकार को औसतन हर सप्ताह 15 लाख रुपए का राजस्व मिलता है. अब सरकार ने बार मालिकों को बार के पास ही अंग्रेजी शराब की दुकान खोलने की अनुमति देने का फैसला किया. यानी सुबह तक वहां शराब पीजिए और जाते समय बोतल भी बगल में दबा कर घर ले जाइए.

Symbolbild Alkohol Indien trinken
तस्वीर: AP

सरकारी नीति की आलोचना

शराब के सहारे अपनी सेहत सुधारने की ममता बनर्जी सरकार की इस कवायद की अब आलोचना होने लगी है. गैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि सरकार आम लोगों में शराब की खपत बढ़ाने का हरसंभव उपाय कर रही है. एक संगठन सेव कोलकाता के प्रवक्ता मनीश कुमार कहते हैं, "अपनी सेहत सुधारने के लिए सरकार आम लोगों खासकर युवकों की सेहत से खिलवाड़ कर रही है." विपक्षी सीपीएम के नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "सत्ता में आने से पहले ममता बनर्जी दावा करती थी कि वह सत्ता में आने पर लोगों को शराब पिला कर राजस्व बढ़ाने का प्रयास नहीं करेंगी. लेकिन अब साबित हो गया है कि उनकी कथनी व करनी में कोई मेल नहीं है." मिश्र कहते हैं कि सरकार को राजस्व बढ़ाने के नए तरीके तलाशने चाहिए.

दूसरी ओर, आबकारी विभाग की दलील है कि अवैध शराब की बिक्री पर सरकारी अंकुश की वजह से ही सरकारी ठेकों पर मिलने वाली देसी शराब की बिक्री बढ़ी है. उसका कहना है कि पहले लोग अवैध ठेकों पर शराब पीते थे. उनका कोई आंकड़ा विभाग के पास नहीं था. लेकिन अब वही लोग सरकारी ठेकों पर आ रहे हैं. आबकारी आयुक्त देव कुमार चक्रवर्ती का दावा है कि सरकारी ठेकों पर शराब पीने की वजह से एक साल के दौरान जहीरीली शराब पीकर मरने की घटनाएं नहीं के बराबर हुई हैं.

सरकार को इन आलोचनाओं की कोई फिक्र नहीं है. भीषण आर्थिक तंगी से जूझ रही ममता बनर्जी सरकार के लिए यह मुनाफे का सौदा साबित हो रही है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा