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गिलहरी बनी जान की दुश्मन

२९ मार्च २०१४

उत्तरी अमेरिका में पाई जाने वाली सलेटी गिलहरी होती तो भारतीय गिलहरी जैसी ही है लेकिन उसके ऊपर धारियां नहीं होती. ये सलेटी गिलहरियां स्कॉटलैंड की लाल गिलहरियों को खत्म कर रही हैं.

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तस्वीर: picture alliance / Hinrich Bäsemann

अब हालत यह हो गई है कि लाल गिलहरियों को बचाने के लिए प्रकृति संरक्षणकर्ता सलेटी गिलहरियों को पकड़ कर मार रहे हैं. लॉरा मैकफेर्सन ने अपने जीवन में कभी लाल गिलहरी नहीं देखी. वह बताती हैं, "शायद बचपन में स्की द्वीप पर देखी हो, लेकिन मुझे याद नहीं." दक्षिण पूर्वी स्कॉटलैंड के स्टरलिंग में स्थानीय लाल गिलहरियों की बजाए सलेटी गिलहरियां हीं उनके बागीचे में घूमती हैं, "वे काफी मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. वे बहुत कड़े प्लास्टिक के डब्बे में भी अपने दांतों से छेद कर देती हैं और अक्सर कचरे को डब्बे में चली जाती हैं और चीजें खराब भी करती हैं."

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लाल गिलहरी को खतरातस्वीर: picture-alliance/dpa

इतना ही नहीं इन गिलहरियों की लाल प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं. सलेटी गिलहरियों के बत्ते भी बहुत होते हैं, ये बड़ी होती हैं और बहुत खाती हैं. ये लाल गिलहरियों का खाना भी चुरा लेती हैं. ब्रिटेन में सिर्फ एक लाख साठ हजार गिलहरियां ही बची हैं जबकि सलेटी वाली तीस लाख हैं.

मौत का रास्ता

माना जाता है कि 19वीं सदी में पहली बार थॉमस ब्रोकलेहर्स्ट अमेरिका से सलेटी गिलहरी इंग्लैंड लेकर आए थे जो उनके बागीचे को सवांरने के लिए थी. संरक्षणकर्ता केन नील कहते हैं, "काश कि मेरे पास टाइम मशीन होती. तो मैं अतीत में जाता और कहता कि मिस्टर ब्रोकेलहर्स्ट, यह कोई अच्छा आयडिया नहीं है."

नील लाल गिलहरियों को बचाने के लिए काम कर रहे हैं. वह और उनकी टीम स्कॉटलैंड के हरे भरे इलाकों में पिंजरे रखती हैं और लाल गिलहरियों को पकड़ती हैं. फिर वे उन्हें पुराने इलाकों में छोड़ती हैं, जबकि सलेटी गिलहरियों को जान गंवानी पड़ती है. नील कहते हैं, "इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है. वे कहीं नहीं जा सकती, हम उन्हें जहाज पर अमेरिका भी वापस नहीं भेज सकते."

इसलिए उनका संगठन अपने शिकारियों को एक शॉट में उन्हें मारने की ट्रेनिंग देता है. हालांकि नील भी इन गिलहरियों को मार कर खुश नहीं हैं. लेकिन वह यह भी कहते हैं कि स्थानीय प्रजाति को बचाना जरूरी है क्योंकि वे सीधे इलाके की जैव विविधता से जुड़ी हुई हैं.

सलेटी गिलहरियों की एक और मुश्किल है कि उनमें स्क्विरल पॉक्स वायरस होता है. इससे उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन लाल गिलहरियां मारी जाती हैं. अभी तो यह वायरस इंग्लैंड से स्कॉटलैंड नहीं पहुंचा है, "हम नियमित रूप से इन गिलहरियों की चेकिंग करते हैं."

सिर्फ सलेटी गिलहरियां ही अमेरिका से इंग्लैंड नहीं लाई गईं. 20वीं सदी की शुरुआत में उत्तरी अमेरिका से फर के लिए ऊदबिलाव भी लाए गए थे. लेकिन वे पकड़ से निकल गए और ब्रिटिश द्वीपों पर फैल गए. संरक्षणकर्ताओं में चिंता बढ़ाने वाले क्रेफिश और जेबरा भी हैं. इनका भी नियमित रूप से शिकार किया जाता है ताकि उन्हें यहां से खत्म किया जा सके.

रिपोर्टः ब्रिगिटे ओस्टेराथ/एम

संपादन: ईशा भाटिया