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सहमे हैं खाड़ी के अमीर

१९ फ़रवरी २०१३

ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब मुबारक मिस्र के राष्ट्रपति थे, यूएई और मिस्र की दोस्ती गाढ़ी थी. लेकिन अब समीकरण बदल रहे हैं. अरब वसंत के बाद इन्हें भी यहां क्रांति का डर है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

2011 में सत्ता छोड़ने से ठीक पहले मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने यूएई यानी संयुक्त अरब अमीरात के वरिष्ठ नेताओं का दिल खोलकर स्वागत किया. खाड़ी में राजशाही चलाने वाले यूएई के नेताओं ने हमेशा मुबारक का दिल खोल समर्थन किया. उन्हें अरब जगत का मजबूत दिग्गज करार दिया.

लेकिन फरवरी 2011 में जैसे ही मिस्र में अरब वसंत फूटा, मुबारक और यूएई के नेता एक साथ चिंता में पड़ गए. आठ फरवरी 2011 को यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्लाह बिन जायद अल-नाहयान ने मुबारक को चिट्ठी लिखी. खत में क्या था, इसका पता नहीं चल सका, लेकिन माना जाता है कि उसमें चिंताओं का जिक्र था.

मिस्र और खाड़ी की राज परिवारों की संबंधों को किसी वीडियो कैसेट की तरह फास्ट फॉरवर्ड करें तो बदलाव दिखता है. मिस्र और अरब देशों में इस्लामी विचारों वाली पार्टियों का ताकतवर होना यूएई में हरारत पैदा कर रहा है. मिस्र की क्रांति को देर सबेर अमेरिका का समर्थन मिला. यह एक बड़ी वजह थी कि मुबारक को गद्दी छोड़नी पड़ी. खाड़ी में राजशाही चला रहे शेखों को डर है कि अगर इसी तरह का जन विद्रोह उनके यहां भी हुआ और अमेरिका ने उसका समर्थन किया तो क्या होगा.

चुपचाप दबाने की कोशिश

चिंता के पर्याप्त सबूत भी दिख रहे हैं. पिछले महीने 27 जनवरी को यूएई ने 94 लोगों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया. इन लोगों पर मुस्लिम ब्रदरहुड के संपर्क रखते हुए सत्ता छीनने की साजिश रचने के आरोप हैं. इनमें यूएई और मिस्र के नागरिक हैं. विश्लेषकों के मुताबिक 94 लोगों की गिरफ्तारी से यूएई यह संदेश देना चाहता है कि कट्टरपंथी गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी. हालांकि संदेश के पीछे शेखों की अपनी घबराहट छुपी हुई है.

US-Präsident Obama mit dem saudischen König Abdullah
तस्वीर: picture-alliance/dpa

राजनीति विज्ञानी अब्देलखालेक अब्दुल्लाह कहते हैं, "यूएई में एक नियम है: किसी भी तरह के राजनीतिक संगठनों के लिए शून्य सहनशीलता, चाहे वो इस्लामी हों या गैर इस्लामी. इन लोगों ने इस कानून को तोड़ा है. यह साफ और सरल है."

यूएई के स्थानीय अखबार के मुताबिक जनवरी में शासन के खिलाफ विद्रोह के आरोप में 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया. मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड ने गिरफ्तारी के लिए यूएई की कड़ी आलोचना की. कहा कि अमीरात 11 लोगों को तुरंत रिहा करे. मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी ने कहा कि उन्हें क्रांति का निर्यात करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.

अरब जगत में 2011 में तानाशाहों और राज परिवारों के खिलाफ विद्रोह हुआ. ट्यूनीशिया में बेन अली को सत्ता छोड़ भागना पड़ा. मिस्र में मुबारक ढह गए. लीबिया के गद्दाफी मारे गए. मोरक्को के राज परिवार को जनता को ज्यादा अधिकार देने पड़े, ज्यादा लोकतांत्रिक ढांचे का भरोसा देना पड़ा. सीरिया में संघर्ष अब भी जारी है.

बदलाव के संकेत

क्रांति से पहले तक अरब जगत के गरीब देश खाड़ी से आर्थिक मदद लेते थे. मिस्र और मुबारक को जब भी तकलीफ हुई, उन्होंने यूएई की तरफ देखा. खाड़ी से निवेश भी आया और पैसा भी. मिस्र के लोगों को खाड़ी में विशेष सुविधाओं के साथ रोजगार भी मिला. इससे सरकारों पर बेरोजगारों का दबाव कम हुआ.

यूएई में 3,80,000 मिस्री काम करते हैं. 2011 में यूएई ने मिस्र को तीन अरब डॉलर की मदद दी. हालांकि यह पैसा आज तक काहिरा को नहीं मिला है. मिस्र के अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि राजनीतिक अस्थिरता का हवाला देकर मदद रोकी गई है.

अरब राजनीति के ताकतवर देश और मुस्लिम जगत की वित्तीय राजधानी यूएई के बीच संबंध खराब होना हैरान करने वाला है. अब तक खाड़ी के देश अरब देशों को भारी आर्थिक मदद देते आए हैं, इसके बदले यूएई को अरब से कूटनीतिक सहयोग मिला और कभी कभार सैन्य सहयोग भी.

ब्रिटेन के थिंक टैंक चैटहैम हाउस की जेन किनिनमोंट कहती हैं, "यूएई-मिस्र के झगड़े में बड़ा योगदान अरब जगत में हो रहे बदलाव का है. यहां आपके सामने ऐसे देश हैं जो बदलाव से गुजर रहे हैं, लेकिन उनकी आर्थिक जरूरतें भी हैं. ऐसे में उनके सामने स्वाभाविक रूप से अमीर खाड़ी के अरब देश हैं."

डर भी, मजबूरी भी

1970 से 2008 तक अरब देशों को खाड़ी के देशों से 62 फीसदी मदद मिली है. लेकिन मिस्र में मोहम्मद मुर्सी के सत्ता में आते ही मामला बदलने लगा. खाड़ी के देशों को लगता है कि अगर वे मुर्सी के साथ खड़े हुए तो पड़ोसी सीरिया उनका साथ छोड़ देगा. लेकिन मुर्सी की अनदेखी से भी वे कतरा रहे हैं. उन्हें लग रहा है कि सुन्नी होने के बावजूद मुबारक के उलट मुर्सी शिया ईरान के करीब जा सकते हैं, यह और खतरनाक बात है. कार्नेजी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के मध्य पूर्व मामलों के विशेषज्ञ फ्रेडरिक वेहरी कहते हैं, "अमीरात को पता है कि अरब मामलों में ईरान को जवाब देने मिस्र अहम है."

मनमुटाव को कम करने के लिए सितंबर 2012 में यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्लाह ने मिस्र का दौरा किया. उन्होंने मुर्सी को यूएई का आने का न्योता दिया. छह महीने बीत चुके हैं, मुर्सी की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया. एक दौर था जब मजाक में कहा जाता था कि अरब नेता छींक के इलाज के लिए भी यूएई दौड़ पड़ते हैं.

कुवैत में तैनात पूर्व अमेरिकी राजदूत रिचर्ड लेबैरन के मुताबिक खाड़ी के देश मुस्लिम ब्रदरहुड की वजह से चिंतित हैं. वे इंतजार करो और देखो की रणनीति अपना रहे हैं और यह बात मिस्र के मुर्सी को भी समझ आ रही है.

ओएसजे/एजेए (रॉयटर्स)

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