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साइकिल पर इंटरनेट

१७ जून २०१३

वे युवा हैं और साइकिल पर सवार हैं. बांग्लादेश में ये इन्फोलेडीज दूर दराज के गांवों में जाती हैं और वहां सेहत से जुड़ी अहम जानकारियां देती हैं. इसके लिए उन्हें बॉब्स 2013 का ग्लोबल मीडिया फोरम जूरी अवॉर्ड दिया गया.

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तस्वीर: D.net/Amirul Rajiv

महफूजा अख्तर और पढ़ाई करना चाहती थीं लेकिन उनके परिवार के पास पैसा नहीं था. 12वीं कक्षा पास करके गांव की महफूजा को गाइबांधा में कोई नौकरी नहीं मिलती. 2010 में किस्मत ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी. महफूजा इन्फोलेडी बन गई. 25 साल की महफूजा आज अलग सा काम कर रही हैं. इसके लिए उन्हें एक साइकिल दी गई है और एक हाईटेक उपकरण.

दिल से स्वागत

हर रोज साइकिल से इन्फोलेडी गांवों में जाती हैं. और हर जरूरतमंद को अपनी सेवाएं देती हैं. उनकी थैली में एक लैपटॉप होता है, एक डिजिटल कैमरा और एक इंटरनेट मोडम और इलाज के लिए मूल सुविधाएं.

गांव में महफूजा अख्तर का बेसब्री से इंतजार किया जाता है. उन्हीं के कारण कोई महिला कहीं अपने किसी रिश्तेदार से स्काइप के जरिए बात कर सकती है. इसके बाद वह एक युवा लड़के को एप्लीकेशन के लिए कुछ टिप्स देती हैं और उसका फोटो भी लेती है. इसके बाद वह एक दादाजी से मिलने जाती हैं. उन्हें डाइबिटीज है इसलिए उनकी रोज शुगर चेक की जाती है. साथ ही एक गर्भवती महिला को भी वो हर दिन देखती हैं और उसका वजन नियमित रूप से चेक करती है. जरूरत पड़ने पर वह इस महिला के साथ स्थानीय दफ्तरों में भी जाती हैं ताकि उसे होने वाले बच्चे के लिए धन राशि मिले. महफूजा के पास सबके लिए समय है और जरूरी उपकरण भी.

इस काम के लिए इन्फोलेडी को कुछ पैसे मिलते हैं. और अक्सर ज्यादा ही मिलता है. कई बार लोग उन्हें खुशी से फल या दिन का खाना भी देते हैं. महफूजा कहती हैं, "मैं लोगों तक वो चीजें पहुंचाती हूं जिनके लिए उन्हें आमतौर पर बहुत मेहनत करनी पड़ती है." महफूजा को अपने काम पर गर्व है,"गांव के लोग इन्फोलेडी का काफी सम्मान करते हैं उन्हें डॉक्टर या टीचर की तरह मानते हैं जिनकी समाज में काफी इज्जत होती है."

सबको साथ लेना

बांग्लादेश में करीब डेढ़ लाख लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा है और गांवों में बहुत ही कम लोग इसका लाभ ले पाते हैं. जबकि वहां सार्वजनिक सूचना केंद्र बनाए गए हैं. वहां लेकिन बहुत ही कम लोग जाते हैं. डीनेट के उपनिदेशक हुसैन मुशर्रफ कहते हैं, "इन्फोलेडीज के कारण अलग थलग पड़े लोगों को साथ लिया जा सकता है. उन्हें भी दूसरे लोगों जितनी ही सूचना और सेवा की जरूरत होती है."

डीनेट बांग्लादेशी कंपनी है जो अपने देश में रचनात्मक सामाजिक अभियानों पर ध्यान देती है. उन्होंने इन्फो लेडी मॉडल 2007 में बनाया था. यह प्रोजेक्ट मुख्य रूप से महिलाओं, लड़कियों, शारीरिक चुनौतियां झेल रहे लोग और बूढों पर ध्यान देता है. इन्फोलेडीज इन लोगों और प्रशासन के बीच की कड़ी हैं. और इससे सिर्फ युवतियां ही जुड़ी हुई हैं ये कोई किस्मत की बात नहीं. कंपनी का कहना है, "मुद्दा यह है कि महिलाएं एक दूसरे की मदद करें कि वह अपने हिसाब से जीवन जिएं." महिलाएं दूसरी महिला पर ज्यादा भरोसा करती हैं. यह रुढ़िवादी मुस्लिम इलाकों में अहम है. इसके अलावा वह जिम्मेदार हैं. कंपनी के मुताबिक "पुरुष सदस्य साथी के तौर पर मदद कर सकते हैं लेकिन इन्फोलेडी को तो कंपनी चलानी है."

बहुमुखी प्रतिभा जरूरी

महफूजा अख्तर के लिए कंपनी चलाने का रास्ता आसान नहीं था. इन्फोलेडी बनने के लिए उन्हें कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है. इनमें सबसे अहम था ये साबित करना कि वह संवेदनशील हैं और नेतृत्व की क्षमता रखती हैं. क्योंकि इन्फोलेडी को हर दिन किसानों, गर्भवती महिलाओं या बेरोजगारों से मिलना पड़ता है. वहां जीवन के लिए अहम मुद्दों पर बात होती है. कि कैसे एक युवा लड़की अपने बच्चे की देखभाल कर सकती है या फिर चूहों के खिलाफ किसान क्या उपाय कर सकते हैं.

30 दिन की ट्रेनिंग और एक सप्ताह प्रैक्टिकल के बाद उन्होंने इन्फोलेडी के काम को पूरी तरह सीख लिया. इसके बाद वह काम करने लगी. "जब मैंने अपनी मां को पहली बार अपनी कमाई दी तो उनके आंसू छलक आए." आज महफूजा महीने के करीब 11 हजार बांग्लादेशी टका कमा लेती हैं. कुछ पैसा वह बचा भी लेती हैं. उनके परिवार की स्थिति भी अच्छी है.

अच्छा मॉडल

बॉब्स 2013 की जूरी ने उन्हें डॉयचे वेले ऑनलाइन एक्टिविज्म का पुरस्कार दिया गया उन्हें ग्लोबल मीडिया फोरम के तहत उन्हें ये पुरस्कार मिला है. बॉब्स के जूरी शाहिदुल आलम इन्फोलेडी प्रोजेक्ट को अहम बताते हैं. इस पुरस्कार को लेने महफूजा अख्तर खुद बॉन आएंगी.

डीनेट इन्फो लेडी कंसेप्ट के अच्छे भविष्य की उम्मीद रखते हैं. क्योंकि यह आर्थिक और सामाजिक दोनों रूप से टिकाऊ है. 2017 तक 12 हजार युवा महिलाओं को इन्फो लेडी की ट्रेनिंग मिल जाएगी. इस प्रोजेक्ट को कांगो, रवांडा, बुरुंडी और श्रीलंका में शुरू करने भी योजना है.

रिपोर्टः आने ले तूज/एएम

संपादनः एन रंजन