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साझेदार या प्रतिद्वंद्वी

२५ मार्च २०१३

एक पूरे दशक तक ब्रिक्स देशों ने कमाल का आर्थिक विकास किया. ब्राजील, रूस, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका सालाना आठ प्रतिशत से बढ़े. 2008 के बाद आर्थिक संकट को काबू में रखने में भी इनका बड़ा योगदान रहा.

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तस्वीर: AP

अब हालांकि ब्रिक्स देशों की हालत भी खराब हो रही है. क्या इन देशों में भी विकास की मोटर धीमी हो रही है. जर्मन विकास नीति पर शोध कर रहे संस्थान डीआईई के डिर्क मेसनर को ऐसा नहीं लगता. उनका मानना है कि चीन की विकास दर 10 प्रतिशत से भी ज्यादा रही लेकिन इसमें हैरान होने वाली बात नहीं. "विश्व अर्थव्यवस्था में ऐसा कोई देश नहीं जो चार, पांच दशकों तक 10 प्रतिशत की दर से बढ़ता रहा. चीन अब छह, सात, आठ प्रतिशत विकास दर के साथ एक सामान्य स्थिति में पहुंच रहा है. यह अब भी बड़ी बात है."

जर्मन अर्थव्यवस्था संस्थान आईडब्ल्यू के युर्गेन माथेस का भी मानना है कि ब्रिक देशों में आर्थिक विकास बढ़ता रहेगा. "इनमें विकसित देशों के मुकाबले खुद को संभालने की क्षमता ज्यादा है."

लेकिन हर देश के बारे में विश्लेषकों की राय भी अलग अलग है. "ब्राजील में भविष्य काफी अच्छा दिख रहा है क्योंकि एक तरफ वहां तेजी से औद्योगिक विकास हो रहा है और दूसरी तरफ उनके पास प्राकृतिक संसाधन हैं." यह मानना है डीआईई के मेसनर का. भारत के बारे में भी वह काफी सकारात्मक सोच रखते हैं. हालांकि रूस को लेकर वह कुछ हताश से हैं क्योंकि उनके मुताबिक देश आर्थिक तौर पर अपनी ताकत नहीं बढ़ा रहा बल्कि केवल प्राकृतिक संसाधनों को लूटने में लगा है. साथ ही बाकी ब्रिक देशों के मुकाबले यूरो संकट से सबसे ज्यादा नुकसान मॉस्को को है, जो तेल और गैस यूरोपीय संघ को बेचता है और उसका मुनाफा इस बाजार की मांग पर निर्भर है.

जहां तक दक्षिण अफ्रीका का सवाल है, मेसनर कहते हैं, "दक्षिण अफ्रीका एक मुश्किल स्थिति में है क्योंकि उसके आसपास का क्षेत्रीय माहौल जटिल और अस्थिर है. ऐसे देखा जाए तो दक्षिण अफ्रीका की चीन या भारत से तुलना करना करीब नामुमकिन है."

BRICS Logo vom kommenden Gipfel in Durban Südafrika März 2013

ब्रिक्स एक मिला जुला गुट है और इसके सदस्य कभी कभी एक दूसरे के रास्ते में भी टांग अड़ाते हैं. मिसाल के तौर पर चीन नाराज होता है जब बाकी ब्रिक्स देश उसे डंपिग मामले में दोष देते हैं. रूस ने ब्राजील से खाद्य सामग्री पर आयात पर रोक लगा रखा है और ब्राजील को यह पसंद नहीं. रूस खुद खाद्य सामग्री निर्यात करना चाहता है और ब्राजील उसका सीधा प्रतिद्वंद्वी है.

ब्रिक्स देशों को साथ काम करने में परेशानियां भी आ रही हैं. मेसनर के मुताबिक इसकी वजह यह है कि यह अर्थव्यवस्थाएं हमेशा नहीं बढ़तीं और इसलिए एक दूसरे को फायदा भी नहीं पहुंचा सकती हैं."चीन के निर्यात का अहम बाजार एशिया में है. और जहां तक ब्राजील के उद्योग का सवाल है, दक्षिण अमेरिकी इलाका बहुत ही अहम है."

इसका मतलब यह कि इन विकासशील देशों के लिए स्थानीय सहयोग प्राथमिक है. इनकी राजनीतिक प्रणालियां भी अलग हैं और वास्तव में एक ब्लॉक बनाना मुश्किल हो जाता है. इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं कि अब तक के ब्रिक शिखर सम्मेलनों से कुछ ठोस नहीं निकला है. बस यह पता चला है, "कि वैश्विक अर्थव्यवस्था केवल पश्चिमी विकसित देशों, यानी ओईसीडी देशों से नहीं बना हुआ है." मेसनर कहते हैं कि शायद ब्रिक्स सम्मेलनों का यही एकमात्र बड़ा राजनीतिक संदेश हैं. इसके अलावा यह संगठन किसी को खास चुनौती नहीं दे रहा.

आईडब्ल्यू के युर्गेन माथेस कहा कहना है कि यही सवाल सबसे दिलचस्प है, "क्या एक साथ एक बड़ी ताकत बनाने की इच्छा इन देशों को अपने निजी स्वार्थ और मतभेदों को खत्म करने के लिए मजबूर करेगी? या क्या इनके आपसी मतभेद सच में इतने बड़े हैं कि अंत में यह सब एक दिखावा बन कर रह जाएगा."

रिपोर्टः जांग डानहोंग/एमजी

संपादनः आभा मोंढे

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