साबाटीनाः टूटे सपनों ने दी लड़ने की ताकत
१७ जून २०१०साबाटीना 17 साल की थी जब उनके परिवार ने उनकी ज़िंदगी के बारे में बहुत बडा फैसला ले लिया. साबाटीना ऑस्ट्रिया में पली बढ़ीं हैं. लेकिन उनके परिवार ने फैसला किया कि सबाटीना की शादी पाकिस्तान में उसके किसी एक भाई से की जाएगी.
साबाटीना को यह मंजूर नहीं था, लेकिन उसके परिवार ने उन्हे जबरदस्ती लाहौर भेजा. वहां उसे मदरसे में भरती करा दिया गया. अपनी ज़िंदगी के इस मुश्किल समय में उन्हें ऐसा लगा कि उन के सारे सपने टूट गए.
जींस पहनना, नेल पोलिश लगाना, अभिनेत्री बनने की तैयारी करना- ये सब अधूरा रह गया. फिर साबाटीना का भाई पाकिस्तान में उनका यौन शोषण करने लगा. वह परिवार में अपने आप को बिलकुल अकेला महसूस करने लगी. साबाटीना को इस सबसे निकलने का आत्महत्या के अलावा कोई और हल नहीं दिखाई दिया. लेकिन वह बच गई और ऑस्ट्रिया लौटीं. उन्होने अपने परिवार से नाता तोड़ लिया और ईसाई धर्म अपनाने तक का फैसला ले लिया. "2001 में मैने इसाई धर्म अपनाने का फैसला लिया. मेरे पिता ने मुझे मार डालने की धमकी दी. मैं उनको समझ सकती हूं, क्योंकि इस्लाम में यह बहुत ही बडा अपराध है. आज मै जर्मनी में रहती हूं और मेरी सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात की गई है. "
2004 में अपने अनुभवों को संजोते हुए साबाटीना की पुस्तक 'तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हें मौत ही मिल सकती है- 2 ध्रुवों के बीच कैद' प्रकाशित हुई. इसमें सबाटीना के अनुभव हैं वो सब जो उनके साथ 2004 में हुआ.
साबाटीना एक खूबसूरत महिला हैं. आज वे मॉडल के तौर पर भी काम करतीं हैं. वे अपनी संस्कृति पर गर्व करतीं हैं. वे कहतीं हैं कि पश्चिम में पलने से वह अपने संस्कार नहीं भूलीं हैं, लेकिन वह यह सवाल भी पूछतीं हैं कि क्यों दोनों समाज एक दूसरे से कुछ सीख नहीं सकते हैं और क्यों यही फैसला लेना पडता है कि हम इधर के हैं या उधर के.
„यह बात कि एक बेटी कोई दूसरा धर्म अपना लेती हैं यह हमेशा मुश्किल है, उसे स्वीकार करना मुश्किल है. मुझे पता है कि यह मेरे परिवार के लिए एक बहुत बडा सदमा है. न तो मेरे परिवार न ही किसी और परिवार को पता है कि वह ऐसे हालात में कैसे बर्ताव करे.“
साबाटीना का कई सालों से अपने परिवार के साथ कोई रिश्ता नहीं रहा है. साबाटीना कहतीं हैं कि वह सब को बेहद याद करती हैं, खासकर अपने पिता को, जिन से वह बेहद प्यार करती हैं. वह जानती हैं कि अपनी मर्ज़ी से चलने के कारण ये सज़ा उन्हें मिली है, ये कीमत उन्होंने चुकाई है. 2006 में साबाटीना ने जर्मनी में एक संस्था बनाई. इसके ज़रिए वह कुछ ऐसी महिलाओं को मदद देने की कोशिश करती हैं जिनकी शादी ज़बरदस्ती की जा रही हो. साबाटीना की संस्था स्कूलों, युवा कल्याण कार्यालय या महिला आश्रमों के साथ काम करतीं हैं. वैसे, डेढ़ सौ से भी ज़्यादा महिलाओं ने साबाटीना से मदद मांगी है. „मै अपने जीवन को इस तरह से जीने की कोशिश कर रही हूं, कि भगवान मुझे देखकर खुश हो जाएं. मैं उन लोगों को भी माफ करना चाहती हूं, जिन्होने मुझे दर्द और दुख दिया है, या जो मेरे बारे में बुरी बातें फैला रहे हैं. हां इसके लिए हिम्मत और शक्ति की ज़रूरत है.“
साबाटीना इस बात पर ज़ोर देतीं हैं कि वह किसी संस्कृति, धर्म या किसी देश के लोगों के खिलाफ नहीं बोलना चाहतीं हैं. लेकिन उनका मानना है कि दुनिया भर में महिलाओं को उनके अधिकार मिलने चाहिएं.
रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न
संपादनः एम गोपालकृष्णन