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"सारी दुनियां फना हो जाएगी"

२२ दिसम्बर २०१२

दुनिया के खत्म हो जाने पर और सीसीटीवी कैमरे के इस्तेमाल पर रिपोर्टें पढ़ कर हमारे पाठकों ने हमें अपनी प्रतिक्रियाएं भेजी हैं.

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तस्वीर: Reuters

कितनी चैकसी करते हैं सीसीटीवी आर्टिकल को पढ़ कर हमें दो पाठकों ने अपनी राय भेजी है..

रवि श्रीवास्तव, इंटरनेशनल फ्रेंड्स क्लब, इलाहाबाद से लिखते हैं:

"सीसीटीवी कैमरे को लेकर एक खास रिपोर्ट डॉयचे वेले की वेबसाइट पर पढ़ने को मिली. ऑफिस हो या फिर रेलवे स्टेशन या कोई अन्य सार्वजनिक स्थान, हर जगह सीसीटीवी कैमरे के प्रयोग का चलन बढ़ा है. अभी पिछले दिनों दिल्ली में हुए गैंग रेप में पकड़ी गई बस और आरोपी भी इसी के जरिए पुलिस के हत्थे चढ़े. बैंक में होने वाली डकैती या फिर रोड एक्सिडैंट के मामले में भी सीसीटीवी कैमरे की फुटेज पुलिस की माथापच्ची को काफी हद तक कम कर देती है. जहां तक निजता का सवाल है तो कहना चाहिए सुरक्षा से बढ़कर कुछ नहीं. जो काम सार्वजनिक स्थानों पर किए जा सकते हैं उनमें निजता या प्रायवेसी का कोई मतलब नहीं. अलबत्ता अगर किसी होटल के कमरे या फिर टॉयलेट में कैमरा लगा हो तो उसका विरोध करना चाहिए. इलाहाबाद के कुम्भ मेले में इसे मद्देनजर सीसीटीवी कैमरे का जाल बिछाया जा रहा है ताकि छोटी सी छोटी घटना भी प्रशासन के निगाहों में आ सके."

प्रमोद महेश्वरी, फतेहपुर शेखावाटी, राजस्थान से लिखते हैः

"अफसोस कि यह कैमरे जिस उद्देश्य से लगाए गए उसे पूरा नहीं कर पा रहे हैं. इनकी असफलता नई कारगर तकनीक को जन्म देगी. यह आशा निर्मूल नहीं क्योंकि सभी सफल खोजों के साथ ऐसा ही होता है."

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कयामत की तैयारी आर्टिकल पर उत्तर प्रदेश, बरेली से आबिद अली मंसूरी लिखते है:

"डीडब्ल्यू हिन्दी की यह रिपोर्ट गुदगुदाने और हैरान कर देने वाली है. आज 21 दिसम्बर है. उन लोगों के लिए जिन्होंने इस कयामत के दिन के लिए खास तैयारी की थी, सब व्यर्थ निकला. हजारों साल के इतिहास को संजोकर रखने वाले माया कैलेंडर का आज अंतिम दिन है. इसी के साथ माया सभ्यता का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा, इस दुनियां का नहीं. इस कैलेंडर के अनुसार 21 दिसम्बर 2012 के बाद की संख्या शून्य हो जाती है, जो किसी क्यामत के दिन का संकेत नहीं.
मगर हां.. परिवर्तन तो प्रक्रति का नियम है, जो हमेशा हुआ है और होता रहेगा. इसमें भी कोई शक नहीं कि कुछ सालों बाद प्रकृति अपने आप को दोहराती है. बस.. भविष्य में कुछ परिवर्तन होंगे जो किसी भी रूप में हो सकते हैं. दुनिया में तरह-तरह के भूकंप, बाढ़, जगह-जगह पर बम विस्फोट, कई तरह के जानलेवा हादसे हो रहे हैं जिनकी वजह से लाखों लोग मारे जाते हैं या बेघर हो जाते हैं. यह भी तो एक कयामत ही है जो हर पल हर रोज होती है. मनुष्य द्वारा ईश्वर की अवमानना, प्रकृति से छेड़छाड़ भी इन सब चीज़ों का नतीजा है. समाज में तरह-तरह के जुर्म, महिलाओं और बच्चों पर हो रहे अत्याचार, एक दूसरे को दुख पहुंचाना, स्वार्थ की खातिर लोगों की हत्याएं, झूठ-फरेब, मां-बाप की नाफरमानी, यह सब पवित्र कुरान के अनुसार कयामत की निशानियां हैं. जिस तरह मौत को नहीं झुठलाया जा सकता, ठीक उसी तरह कयामत को भी नहीं. एक न एक दिन कयामत तो आनी ही है. कब आएगी यह तो मालूम नहीं, मगर हां.. यह जब भी आएगी, सारी दुनियां फना हो जाएगी."
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संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः ईशा भाटिया

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