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सिजेरियन के कारण मौत

१८ मई २०१४

विवेक प्रकाश ने पिछले दो सालों में अपनी जिंदगी को बदलते हुए देखा है. 2012 में विवेक और उनकी पत्नी रश्मि अपनी पहली संतान के होने का इंतजार कर रहे थे. सब कुछ ठीक था, पर अचानक...

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तस्वीर: Fotolia/shootingankauf

उस समय रश्मि सिन्हा की उम्र 26 साल थी. गर्भावस्था के दौरान वह नियमित रूप से सभी टेस्ट कराती रहीं. सब कुछ ठीक ही था. लेकिन ड्यू डेट से दो दिन पहले उन्हें तकलीफ होने लगी. अल्ट्रासाउंड से पता चला कि गर्भ में बच्चे ने हिलना बंद कर दिया है. डॉक्टर ने समझाया कि ऐसा अक्सर हो जाता और इसमें घबराने की कोई बात नहीं है. उन्होंने रश्मि को सिजेरियन कराने की सलाह दी.

ऑपरेशन पर 25,000 रुपये का खर्च आया. बेटी की किलकारियां सुन कर विवेक की जान में जान आई. परिवार ने उसे शाम्भवी नाम दिया और दो दिन तक खुशियां मनाईं. पर उसके बाद रश्मि का ब्लड प्रेशर गिरने लगा, वह कांपने लगी. छोटे से नर्सिंग होम में डॉक्टरों को समझ नहीं आया कि क्या किया जाए. इसलिए रश्मि को पटना के एक अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया. हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि रश्मि को आईसीयू में भर्ती करना पड़ा. दो दिन बाद रश्मि की मौत हो गयी. विवेक को समझ नहीं आया कि इसका इल्जाम किसे दें, भगवान को या फिर डॉक्टरों को.

सिजेरियन से मौत

पटना में डॉक्टरों ने बताया कि रश्मि के खून में इंफेक्शन हो गया था. सिजेरियन के दौरान साफ सफाई का पूरा ध्यान ना रखा जाए तो बैक्टीरिया से संक्रमण हो सकता है. इसे 'सेप्सिस' कहते हैं. विकसित देशों की तुलना में भारत में सेप्सिस के मामले बहुत ज्यादा देखने को मिलते हैं. रश्मि की ही तरह भारत में हर साल करीब 45,000 महिलाएं अपनी जान गंवा रही हैं.

प्रसव के दौरान होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण सेपसिस ही है. यूनिवर्सिटी ऑफ टोरोंटो में प्रकाश झा ने इस पर रिसर्च की. 'मिलियन डेथ स्टडी' नाम की रिसर्च में झा ने भारत में हुई दस लाख मौतों का कारण समझने की कोशिश की. उन्होंने 1998 से 2014 के बीच हुई मौतों के आंकड़े जमा किए और इसी दौरान उनका ध्यान सेप्सिस पर गया. उनकी टीम ने भारत में एक हजार से ज्यादा परिवारों से बात की और इस तरह की कहानियां सुनीं.

डॉयचे वेले से बातचीत में झा ने कहा, "बहुत दुख की बात है कि भारत में सेप्सिस के बहुत सारे मामले सिजेरियन के कारण हो रहे हैं. अगर आप प्रसव के दौरान संक्रमण होने देते हैं तो मेरी नजर में यह अपराध है. अगर आप क्वालिटी पर ध्यान दें, साफ सफाई रखें और सुनिश्चित करें कि किसी तरह का इंफेक्शन ना फैले, तो सिजेरियन के दौरान मौत नहीं होती है."

किसकी गलती?

विवेक प्रकाश आज भी सदमे में हैं. वह समझ नहीं पा रहे हैं कि चूक कहां हुई. पर उन्हें यकीन है कि गलती किसी डॉक्टर या अस्पताल प्रशासन की ही थी. उस वक्त को याद करते हुए वह कहते हैं, "हम सब गहरे सदमे में थे. तब हम इस हालत में ही नहीं थे कि डॉक्टरों से सफाई मांग सकें और पूछें कि आखिर हुआ क्या." रश्मि के भाई नीरज को भी वो मंजर याद है. वह बताते हैं कि सबसे पहले जिस नर्सिंग होम में रश्मि को ले जाया गया था वहां काफी धूल मिट्टी और गंदगी थी. नीरज का कहना है कि नर्स के रवैये से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे अच्छा प्रशिक्षण मिला है.

आनन फानन में रश्मि का दाह संस्कार भी कर दिया गया. उस वक्त परिवार को यह ख्याल नहीं आया कि पोस्टमार्टम के जरिए मौत की वजह का पता लगाया जा सकता है. आज विवेक न्याय चाहते हैं लेकिन उसके लिए उनके पास पैसा नहीं है. वह जानते हैं कि वह मामला अदालत में ले जा सकते हैं. लेकिन उन्हें यह भी पता है कि इसमें कई साल और लाखों रुपये लग जाएंगे.

अगर इस ओर ध्यान ना दिया गया तो लाखों रश्मियों की मौत होती रहेगी, लाखों विवेक लाचार से रह जाएंगे और लाखों शाम्भवियों को बिना मां के ही जीना होगा.

रिपोर्ट: गायत्री वैद्यनाथन/आईबी

संपादन: महेश झा