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सीआईए रिपोर्ट के साथ पोलैंड की मुश्किलें

हेनरिक यारचिक/एमजे११ दिसम्बर २०१४

सालों तक पोलैंड के पूर्व राष्ट्रपति अलेक्जांडर क्वास्निएव्स्की कुछ पता न होने का दावा करते रहे, न तो अपने देश में सीआईए की जेल होने का और न ही वहां क्या हो रहा था इसके बारे में. सीआईए रिपोर्ट आने के बाद यह संभव नहीं रहा.

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तस्वीर: Piotr Placzkowski/AFP/Getty Images

अमेरिका में सीआईए की यातना पर सीनेट की रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद क्वास्निएव्स्की मामले से हाथ धोने की कोशिश कर रहे हैं. पोलैंड के पूर्व राष्ट्रपति कहते हैं, "हमने खुफिया एजेंसियों के बीच सहयोग की अनुमति दी थी क्योंकि हम समझते थे कि लोकतांत्रिक देश के रूप में अमेरिका कानून के ढांचे में काम करेगा. हमारे पास यह सोचने का कोई कारण नहीं था कि अमेरिका का नेतृत्व गैरकानूनी गतिविधियों को स्वीकार करेगा, समर्थन करेगा और उसे छिपाएगा."

अमेरिका के लिए शांत इलाके

अमेरिकियों ने अपने काम के लिए एक शांत जगह देने की अपील की थी. फैसला स्टारे किकुती के पक्ष में गया. पूर्वोत्तर पोलैंड में माजूरिया में दो झीलों के बीच जंगल में बसी एक छोटी सी जगह. साम्यवादी शासन के दौरान यहां सैन्य खुफिया सेवा की चौकी पर एजेंटों की ट्रेनिंग होती थी. यह जगह सीआईए की जरूरतों के लिए एकदम सही लगी. क्वास्निएव्स्की कहते हैं कि इसीलिए वहां दो इमारतों में एक सीआईए को दे दी गई. उनका कहना है कि पोलिश अधिकारियों ने किसी भी समय बंदियों को यातना की अनुमति नहीं दी थी.

कुछ समय बीतने के बाद अमेरिकी एजेंटों की पूछताछ की विधि के बारे में पोलिश अधिकारियों के मन में संदेह जगे. क्वास्निएव्स्की का कहना है कि उस समय उन्होंने इस बात को संभव नहीं माना था कि सीआईए के एजेंट अपने ही राष्ट्रपति को सच नहीं बोलेंगे. "आज आशंकाएं सही साबित हुई हैं लेकिन वे किसी भी तरह इसे साबित नहीं करते कि अमेरिकियों ने जानबूझ कर इस पैमाने पर मौजूदा कानून का उल्लंघन किया." अमेरिकी एजेंटों की गतिविधियों ने फिर भी पोलिश नेताओं के मन में संदेह पैदा किए और पूर्व राष्ट्रपति के अनुसार इसीलिए सहयोग को समाप्त कर दिया गया.

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संदिग्ध कैदियों से हुई पूछताछतस्वीर: picture alliance/dpa/Michelle Shephard

अवैध जेल पर 2003 में ताला

अलेक्जांडर क्वास्निएव्स्की का कहना है कि इस फैसले के बारे में उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को अपने अमेरिका दौरे पर व्यक्तिगत रूप से जानकारी दी थी और इस तरह उनसे अप्रत्यक्ष रूप से पोलैंड में इस ठिकाने को बंद करने की मांग की थी. सोशल डेमोक्रैटिक राजनीतिज्ञ का कहना है कि इस पर 2003 में ही अमल भी किया गया.

उस समय पोलैंड के प्रधानमंत्री रहे लेशेक मिलर अपने पुराने रुख पर कायम हैं, "मैं पहले भी कई बार कहा है, मुझे इसके बारे में कुछ पता नहीं था. साथ ही मेरा यह मानना है कि लोगों को आतंकवाद के ऊपर गुस्सा आना चाहिए, आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष पर नहीं. जब मैं इस समय इस्लामिक स्टेट द्वारा की जा रही बर्बरता देखता हूं तो मेरा पहले की ही तरह विचार है कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष किया जाना चाहिए. उस समय न्यू यॉर्क में हमले के बाद और आज भी, मैं समझता हूं कि पोलैंड उस समय भी सही पक्ष में था और आज भी है."

अमेरिका से दस्तावेजों की मांग

आज शब्द के साथ पोलैंड की वर्तामन प्रधानमंत्री एवा कोपाच जी सकती है, लेकिन उस समय के फैसले के साथ नहीं. सरकार प्रमुख ने संबंधित अधिकारियों को अमेरिका से तुंरत दस्तावेजों की मांग करने का निर्देश दिया है और उसकी ठीक से जांच करने को कहा है ताकि अनुकूल कदम उठाए जा सकें.

पोलैंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता जोसेफ पिनियोर के लिए यह काफी नहीं है. वे कहते हैं, "जिस तरह से अमेरिकी इस मामले पर कार्रवाई कर रहे हैं, उसी तरह हमें भी करना चाहिए. हम अक्सर अमेरिका को अपना आदर्श मानते हैं, अब हमारे पास ऐसा करने का एक और अच्छा मौका है." यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पोलैंड की संसद और पिछले छह सालों से इस मामले की जांच कर रहा अभियोक्ता कार्यालय भी इस मामले को इसी तरह देखते हैं.