1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज

३० सितम्बर २०१०

अयोध्या मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के तीनों जज अलग अलग फैसला देंगे. लखनऊ जिला मजिस्ट्रेट ने यह जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि तीनों फैसलों की घोषणा के बारे में मीडिया को संक्षिप्त जानकारी दी जाएगी.

https://p.dw.com/p/PQMN
तस्वीर: dpa - Bildarchiv

लखनऊ जिला मजिस्ट्रेट अनिल कुमार सागर ने बताया कि फैसलों को अदालत की वेबसाइट पर भी लगाया जाएगा. उधर अयोध्या पर फैसला आज आ रहा है लेकिन यह टिकेगा नहीं. सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी पूरी है और हो सकता है कि मामला आज ही सुप्रीम कोर्ट में चला जाए. वकीलों ने तो कागज तक जमा करा दिए हैं.

अयोध्या विवाद के 60 साल से चल रहे मुक़दमे के फैसले की घड़ी तो आ गई है लेकिन फैसले पर तत्काल स्टे की तैयारी भी कर ली गई है. यानी फैसला तो आज होगा लेकिन वह ज्यादा देर रुक नहीं पाएगा. मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट से निकल कर देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच जाएगा. सूत्रों के मुताबिक सुलह सफाई की याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुचे वकीलों ने याचिका ख़ारिज होने के बाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने की सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं.

पक्षकारों ने अपने अपने वकालतनामे और दूसरे दस्तावेज शीर्ष अदालत में जमा करा दिए हैं ताकि साढ़े तीन बजे फैसला आने के तुरंत बाद उसे विशेष उल्लेख यानी मेंशन कर इस पर सुनवाई कराई जा सके. माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले की सत्यापित प्रति की औपचारिकता के बिना ही इस पर विशेष परिस्थितियों में सुनवाई करेगा. हाई कोर्ट ने पहले ही घोषणा कर रखी है कि 15 मिनट के अन्दर ही फैसले का ऑपरेटिव पार्ट वेबसाइट पर डाल दिया जाएगा. यह भी माना जा रहा है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए स्वयं कह दे. इस बार में कानूनविदों का कहना है कि इस तरह के उदहारण पहले भी हो चुके हैं.

आम तौर पर किसी भी फैसले की सत्यापित प्रतिलिपि हाई कोर्ट से तीन दिन में मिलती है. उसी के आधार पर वादी अपील करता है. अयोध्या विवाद के एक पक्षकार श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति की वकील रंजना अग्निहोत्री ने इस बारे में डॉयचे वेले से कहा कि आम हालात में इतनी जल्दी स्टे नहीं दिया जा सकता. लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस तरह का फैसला ले भी सकता है. उन्होंने रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका का उल्लेख करते हुए कहा के उम्मीद के खिलाफ ही तो वह याचिका भी स्वीकार हुई थी. उन्होंने इस बात पर काफी जोर दिया कि आज जो फैसला आने वाला है उससे किसी पक्ष का नुकसान नहीं होने वाला.

आज इलाहाबाद हाई कोर्ट की जो विशेष बेंच फैसला सुनाने वाली है उसमे जस्टिस एसयू खान, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस धर्मवीर शर्मा हैं. जस्टिस खान अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लॉ ग्रैजुएट हैं. उन्होंने अलीगढ़ सिविल कोर्ट से प्रैक्टिस शुरू की. वह इलाहाबाद हाई कोर्ट में दिसंबर 2002 में जज बने. दूसरे जज 52 वर्षीय जस्टिस अग्रवाल 5 अक्तूबर 2005 में हाई कोर्ट के जज बने . इससे पहले वह यूपी सरकार के अडिशनल एडवोकेट जनरल भी रहे हैं. मेरठ यूनिवर्सिटी से लॉ ग्रैजुएट जस्टिस अग्रवाल टैक्सेशन के अच्छे वकीलों में शुमार होते थे. तीसरे जज 62 वर्षीय जस्टिस धरमवीर शर्मा 20 अक्तूबर 2005 में हाई कोर्ट के जज बने. वह हाई कोर्ट में जज बनने से पहले उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में रह चुके हैं. वह सरकार के प्रिंसिपल सेक्रट्री (लॉ) भी रह चुके हैं. यह भी अजीब इत्तेफाक है कि उम्र में सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस शर्मा जजों में सबसे जूनियर हैं.

रिपोर्ट: सुहेल वहीद, लखनऊ

संपादन: वी कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें