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सूरज पर तीन पीढ़ियों से नजर रख रहा हैं ये परिवार

२३ फ़रवरी २०१७

कोडैकनाल स्थित सोलर ऑवजर्वेटरी में काम करना देवेंद्रन के लिए किसी पारिवारिक परंपरा से कम नहीं. देवेंद्रन से पहले इनके दादा और पिता इस वेधशाला में काम करते थे और अब इनका बेटा भी यहां काम करना चाहता है.

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Indien Kodaikanal Solar Observatory
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

सुबह की धुंधली रोशनी में हर रोज सौर वेधशाला यानी सोलर ऑवजर्वेट्री जाना पी देवेंद्रन के लिए कुछ नया नहीं है. अपने दादा और पिता की तरह देवेंद्रन भी तमिलनाडु के कोडैकनाल में स्थित इस वेधशाला में सूरज का अध्ययन करते हैं. वेधशाला में दाखिल होते ही शटर उठाने के लिए वह एक रस्सी खींचते हैं और एक छह इंच के टेलीस्कोप को सेट करते हुए बताते हैं कि इसका इस्तेमाल साल 1899 से सूरज की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जा रहा हैं और आज भी सूरज की हर एक चाल को नोट किया जाता है.

देवेंद्रन ने बताया कि तारों की ही तरह सूरज की जिंदगी भी 10 अरब साल लंबी है इसलिए किसी छोटे से बदलाव की भी जानकारी हासिल करने के लिए आपको अधिक से अधिक डाटा चाहिए. भारतीय खगोल भौतिक संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स) के प्रोफेसर आर रमेश ने बताया कि इस वेधशाला को यह संस्थान चलाता है. उन्होंने बताया कि सूरज की गति और क्रियाओं से जुड़ी जानकारियां धरती पर पड़ने वाले इसके प्रभावों को जानने में अहम होती हैं. रमेश के मुताबिक कोडैकनाल की वेधशाला से हासिल किये गये डाटा के आधार पर जिन खोजों तक भी पहुंचा गया है उनमें से कई सौर भौतिकी के लिए बहुत ही उपयोगी साबित हुई हैं. यहां तक की इस वेधशाला से हासिल डाटा सौर भौतिकी की बुनियादी जानकारी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. मसलन साल 1909 में वेधशाला के निदेशक जॉन एवरशेड द्वारा खोजा गया "एवरशेड इफेक्ट ऑफ गैस मोशन इन सनस्पॉट.

यहां की लाइब्रेरी तमाम रिकॉर्ड, फाइलों और सूरज की हजारों फिल्म प्लेटों से भरी पड़ी है. इसमें से बहुत सा हाथ से लिखा गया डाटा है लेकिन अब इसे सहेजने के लिए अधिकारियों ने इसे डिजिटल करने की योजना शुरू की है.

देवेंद्रन के दादा पार्थसारथी इस वेधशाला से साल 1900 में जुड़े थे. इसी के करीब एक साल पहले इस संस्थान को तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से कोडैकनाल लाया गया था क्योंकि यह जगह सूरज का अध्ययन करने के लिए अनुकूल थी. अपने पिता और दादा की ही तरह देवेंद्रन ने खगोलशास्त्र की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है. लेकिन अपने दादा और पिता के साथ यहां अकसर आते रहने से उनकी रूचि इस विषय के प्रति बढ़ती रही और साल 1986 से वह सूरज का अध्ययन कर रहे हैं.

देवेंद्रन कहते हैं कि तीन दशकों से सूरज की हर चाल पर नजर रखते-रखते अब दूर होकर भी इन्हें सूरज अपने करीब महसूस होने लगा है. परिवार को उम्मीद है कि देवेंद्रन का 23 साल का बेटा राजेश भी परिवार की इसी परंपरा को आगे बढ़ाएगा. लेकिन फर्क बस इतना है कि बेटे के पास भौतिकी में स्नाकोत्तर की डिग्री है. अपने पिता देवेंद्रन की तरह ही राजेश को भी लगता है कि सूरज को देखना और उसका अध्ययन करना उनके खून में समाया हुआ है.

एए/एके (रॉयटर्स)