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सेना के दखल से दिल्ली को राहत

२२ फ़रवरी २०१६

जाट आरक्षण आंदोलन ने दिल्ली में पानी को लेकर चिंताएं पैदा कर दी थी. लेकिन सेना के दखल से दिल्ली सरकार राहत महसूस कर रही है. जाट नेताओं का कहना है कि वे अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे, हालात और बिगड़ने की आशंका बनी हुई है.

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Indien Haryana Jat Proteste Kastensystem Soldaten
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Stringer

दिल्ली को बड़ी मात्रा में पानी की ​आपूर्ति करने वाली नहर पर सेना के दखल के बाद फिर से नियंत्रण पा लिया गया है. जाट आ​रक्षण के लिए प्रदर्शन कर रहे लोग इस नहर को रोके हुए थे जिन्हें सेना ने वहां से हटा दिया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्वीटर हैंडल पर इसकी घोषणा करते हुए सेना और केंद्र सरकार का आभार जताया है.

पिछले हफ्ते से शुरू हुए जाटों के इस आंदोलन की मांग है कि उन्हें सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में आरक्षण दिया जाए. ​बीते दिनों इस प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया था और इस दौरान अब तक कम से कम 12 लोगों के मारे जाने की खबर है.

रविवार को सरकार की ओर से इनकी मांगों का संज्ञान लेने से पहले प्रदर्शनकारियों ने सड़क और रेल यातायात को ​बुरी तरह बाधित कर दिया था. प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली की पानी की आपूर्ति को ​भी ठप कर दिया था ​जिससे यहां पानी की कमी का खतरा पैदा हो गया था. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से बीचबचाव की मांग की थी.

कुछ प्रदर्शनकारी नेताओं ने कहा है कि वे अपना प्रदर्शन तब तक जारी रखेंगे जब तक सरकार उन्हें आरक्षण नहीं दे देती. भारतीय जाट आरक्षण आंदोलन के समन्वयक रमेश दाला ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए कहते हैं, ''हम अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे. सरकार सोच रही है कि हम उसके दबाव डालने से झुक जाएंगे, लेकिन हमें अनदेखा कर सरकार एक बड़ी गलती कर रही है.''

हरियाणा की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा जाटों का है. सामान्यतया ये भूस्वामी हैं और इनकी सामाजिक स्थिति काफी प्रभावशाली है. लेकिन भारत की बेतहाशा जनसंख्यावृ​द्धि और पिछले दो साल से पड़ रहे सूखे ने इनकी आर्थिक स्थिति पर गहरा असर डाला है.

Indien Demonstration von Studenten in Rohtak Haryana
जाट आरक्षण के लिए प्रदर्शन करते आंदोलनकारीतस्वीर: Imago

जाटों का यह आंदोलन भी पिछले साल अगस्त में उठे इसी तरह के प्रभावशाली तबके के पाटीदार और पटेलों के आंदोलनों की तरह उभरा है. इन आंदोलनों की मांग भी अपनी ​जाति के लोगों को ​नौकरशाही और विश्वविद्यालयों में और अधिक अवसर दिए जाने को लेकर थी.

समाचार ऐजेंसी पीटीआई से बात करते हुए हरियाणा के गृह सचिव पीके दास कहते हैं, ''आरक्षण एक भावनात्मक मसला है. इसलिए इस आंदोलन में कई लोग शामिल हैं. एक खास समुदाय के लोगों की इच्छा है कि उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए.'' हालांकि आधिकारिक तौर पर भारत में जाति व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है ​लेकिन सामाजिक तौर पर अब भी यह बहुत प्रभाव​शाली है.

आरजे/आईबी (रॉयटर्स, पीटीआई)