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कला

स्लम में सिखाया जा रहा है कोडिंग और ऐप डेवलपमेंट

३ अप्रैल २०१७

झोपड़पट्टियों और बस्तियों में रहने वाली लड़कियां अब दकियानूसी सोच को नकारते हुये कोडिंग और मोबाइल ऐप डेवलप करना सीख रहीं है. लड़कियों के बढ़ते कदम अब मां-बाप को भी नए सिरे से सोचने के लिये मजबूर कर रहे हैं.

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Mumbai Mädchen Projekt Slum  Dharavai
तस्वीर: DW/N. Ranjan

रोशनी की मां कभी स्कूल नहीं गई और न ही उन्होंने कभी कंप्यूटर का इस्तेमाल लिया लेकिन अब उनकी 17 वर्षीय बेटी इसमें उनकी मदद कर रही है. एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी की इस लड़की ने एक मोबाइल एप्लिकेशन को तैयार किया है जिससे उसकी मां अंग्रेजी और गणित सीख रही है. यहां तक कि इस ऐप्लिकेशन से आसपास के डॉक्टर से सलाह-मशिवरा भी लिया जा सकता है. रोशनी सुबह घर का काम खत्म कर स्कूल को भागती है और बाकी का सारा दिन धारावी के डायरी लर्निंग सेंटर में बिताती है. रोशनी शेख धारावी डायरी में दाखिला लेने वाली शुरुआती 15 लड़कियों में से एक है. "धारावी डायरी" प्रोजेक्ट को डॉक्यूमेंटरी फिल्म निर्माता नवनीत रंजन ने साल 2014 में लड़िकयों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से शुरू किया था, ताकि यहां की लड़कियों को भी शिक्षा प्राप्त करने के मौके मिल सकें और ये अपने हुनर भी निखार सकें.

Indien Coding class, Dharavi Diary Center, Mumbai
तस्वीर: DW/N. Ranjan

रंजन कहते हैं कि पहले ये लड़कियां या तो अपनी मां की मदद सफाई करने, खाना बनाने जैसे कामों में करती थीं या छोटे भाई-बहनों की देखभाल करती थीं जो मैं बदलना चाहता था. शुरुआत में रंजन के पास दो ही कंप्यूटर थे लेकिन बकौल रंजन चीजों की कमी कभी कोई चुनौती नहीं थी. उन्होंने बताया "सबसे बड़ी चुनौती मां-बाप को अपनी लड़कियों को भेजने के लिये राजी करना था. ये मां-बाप अकसर सवाल पूछते कि लड़कियां ही क्यों, लड़के क्यों नहीं जा सकते. कई बार तो परिवार वाले ये भी कहते कि परिवार के दो लड़के भी जायेंगे तब एक लड़की जाएगी." रंजन कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की पढ़ाई को खासी तवज्जो नहीं दी जाती. रोशनी बताती हैं कि जब उन्होंने ये केंद्र ज्वाइंन किया था तब पड़ोसियों ने उनकी मां को मना किया और शुरुआत में उन्हें भी परिवार का बहुत सहयोग नहीं मिला.  

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झुग्गी झोपड़ियों के लिये ऐप्स

रोशनी अपने परिवार के साथ एक कमरे के घर में रहती है जिसमें एक बेडरूम, लिविंग एरिया और किचन बना हुआ है. रंजन बताते हैं कि इन बच्चों के लिये बचपन आसान नहीं होता, उन्हें हिंसा का शिकार होना होता है जो इनकी आंकाक्षाओं को मारता है. उन्होंने बताया कि मैंने इन लड़कियों को फोटोग्राफी और अंग्रेजी सिखाने से शुरुआत की थी लेकिन जब मैंने इनके साथ वक्त गुजारा तब मुझे पता चला कि हर एक घर में एक स्मार्टफोन है और इन बच्चों के लिये उन्हें चलाना आसान है. इसलिये मैंने पढ़ाई का तरीका बदला और इन बच्चों को कोडिंग और मोबाइल ऐप विकसित करना सिखाया. रंजन ने कोडिंग की बुनियादी बातों से शुरुआत की थी क्योंकि इसके पहले किसी भी लड़की न तो इसके बारे में सुना था और न ही कंप्यूटर का इस्तेमाल किया था.

रंजन से ही ट्रेंनिग लेने वाली 15 साल की महक शेख ने इस सेंटर में अपने दोस्तों के साथ मिलकर "वुमेन फाइट बेक" नाम से एक मोबाइल ऐप तैयार की है.

महक कहती है कि हमारे समाज की कई महिलायें देर रात तक काम करती हैं और यह ऐप उन्हें बेहतर सुरक्षा देगी क्योंकि मुश्किल के वक्त इस ऐप में एक बटन दबाने से वह अपने दोस्त या पुलिस से मदद की गुहार कर सकती हैं.

Dharavi Diary Mädchen Projekt Mumbai
तस्वीर: DW/N. Ranjan

बढ़ता आत्मविश्वास

रंजन ने बताया कि धारावी डायरी में आने वाली लड़कियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ये लड़कियां अब आत्मनिर्भर हो रही हैं और कई सामाजिक समस्यायें और पारिवारिक विवाद सुलझाने में अपना योगदान दे रही हैं. रंजन ने बताया कि अब कई मां-बाप अपने लड़कियों की शादी करने की बजाय उनकी पढ़ाई के बारे में भी सोचने लगे हैं. महक बताती हैं कि उनकी बिरादरी की कई लड़कियों की तभी शादी हो गई थी जब वह स्कूल में थीं और शादी के बाद वह पढ़ाई नहीं कर सकी. लेकिन महक की मां अब उसकी शादी की जल्दबाजी नहीं करती. पिछले साल धारावी डायरी को गूगल की ओर से कंप्यूटर साइंस एजुकेशन को प्रोत्साहित करने के लिये अवॉर्ड भी मिला था. रंजन कहते हैं कि अब ये लड़कियां अपने घर की दीवारों से बाहर भी सपने देखने लगी हैं और अब ये अपने काम से नाम कमाना चाहती हैं. रोशनी शेख एक फैशन डिजाइनर बनना चाहती हैं. रोशनी कहती हैं "पहले मैं यह सोच भी नहीं सकती थी कि कभी हजारों लोगों के सामने कुछ बात करूंगी लेकिन टेडएक्स और अन्य मंचों पर अपने अनुभव साझा करने के बाद मुझमें आत्मविश्वास आया है."

जेनब सुल्तान/एए