इच्छा मृत्यु की चाह में स्विट्जरलैंड
२२ अगस्त २०१४चिकित्सा नैतिकता पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक ऐसे लोगों में जर्मन और ब्रिटेन के नागरिकों की संख्या कहीं अधिक है. और ऐसा करने की सबसे बड़ी वजह पक्षाघात, मोटर न्यूरोन रोग और पार्किंसन जैसी तंत्रिका संबंधी बीमारी हैं. इसके अलावा विभिन्न बीमारियों का एक साथ सामना कर रहे लोग भी इच्छा मृत्यु चाहते हैं.
स्विट्जरलैंड में मरने के अधिकार देने वाले कुल चार संगठन हैं जो अपनी सेवा अन्य देशों के नागरिकों को भी मुहैया कराते हैं. रिपोर्ट बताती है कि 2008 से 2012 के बीच 31 देशों के 611 लोग स्विट्जरलैंड 'सुसाइड पर्यटक' के तौर पर पहुंचे. प्रेस में जारी एक बयान के मुताबिक, "ऐसे लोगों की उम्र 23 से लेकर 97 वर्ष है. औसतन उम्र 69 साल है." सुसाइड पर्यटकों में 60 फीसदी महिलाएं शामिल हैं.
मृत्यु में मदद पाने के लिए जर्मनी से 268, ब्रिटेन से 126, फ्रांस से 66, इटली से 44, 21 अमेरिकी, 14 ऑस्ट्रियाई, 12 कनाडाई, स्पेन और इस्राएल से आठ आठ लोग स्विट्जरलैंड गए. मृत्यु के अधिकतर मामलों में सोडियम पेंटोबार्बिटल नाम की दवा का इस्तेमाल किया गया, जिसे "शांतिपूर्ण गोली" के नाम से भी जाना जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि 2008 में चार लोगों ने हीलियम के सहारे मौत को गले लगाया और मीडिया में इन मौतों को बहुत कष्टदायक बताया गया और यही कारण है कि अगले साल स्विट्जरलैंड आने वालों की संख्या में गिरावट आई थी.
कुछ देशों में मौत में मदद या यूथेनेशिया को कानूनन मान्यता है लेकिन कई ऐसे भी देश हैं जहां किसी को मृत्यु पाने में मदद करना दंडनीय अपराध है चाहे मरीज गंभीर और असाध्य दर्द से ही क्यों न पीड़ित हो. शोध के लेखकों का कहना है कि स्विट्जरलैंड में आत्महत्या में सहायता देना कानून द्वारा साफ साफ नियमित नहीं है. पिछले साल एक मामले की सुनवाई करते हुए यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय ने देशों से आग्रह किया था वह इस बारे में दिशा निर्देशों को स्पष्ट करें. कई अन्य देशों समेत ब्रिटेन और फ्रांस में इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है.
एए/एमजे (एएफपी)