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हथियारों से परेशान अफ्रीकी

४ सितम्बर २०१३

बीते सालों में अफ्रीका में बढ़े विवादों के साथ आम लोगों के बीच बंदूक का इस्तेमाल बढ़ गया है. अफ्रीकी देश इसे रोकने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं लेकिन इससे संबंधित कोई कानून अब तक लागू नहीं किया गया है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

कैमरून जैसे मध्य अफ्रीकी देशों में अपराध ज्यादा बढ़े हैं. वहां के लोग मांग कर रहे हैं कि इससे संबंधित कानून जल्द से जल्द लागू किया जाए ताकि जुर्म को रोका जा सके. कैमरून की राजधानी याउंडे के लोगों में देश में बढ़ रहे अपराध को ले कर चिंता है. लोगों का कहना है कि दिन में भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए बाहर निकलने में उन्हें डर लगता है. अधिकारियों का मानना है कि पिछले दस सालों में वहां अपराध में 22 फीसदी वृद्धि हुई है.

2011 में इसका कुछ हल नजर आ रहा था जब मध्य अफ्रीकी देशों के आर्थिक समुदाय ने मिलकर छोटी बंदूकों और राइफलों के इस्तेमाल के लिए संधि की. इसे किंशासा समझौते के नाम से भी जाना जाता है.

नाकाफी समझौता

कैमरून और उसके जैसे दूसरे अफ्रीकी देशों में हस्ताक्षर के बाद भी यह समझौता नाकाफी लग रहा है. इस पर हस्ताक्षर तो हुए लेकिन न तो इसने किसी कानून की शक्ल ली और न ही किसी तरह की सख्ती बरती गई.

कैमरून सरकार का कहना है वह बंदूकों का इस्तेमाल रोकने की कोशिश कर रही है, हालांकि यह बहुत धीरे धीरे हो रहा है.

Mali Soldaten in Gao 13.04.2013
तस्वीर: Joel Saget/AFP/Getty Images

कैमरून का युवा छात्र संघ सरकार पर इस बात का दबाव बना रहा है कि किंशासा समझौते को कानून में परिवर्तित किया जाए. एक गैरसरकारी संगठन में काम करने वाले इउगिनी गालिम मानते हैं कि कैमरून की सड़कों पर चलना खतरे से खाली नहीं रह गया है.

गालिम ने डॉयचे वेले को बताया, "हथियार यहीं बनाए जा रहे हैं, इस समय सड़कों पर घूम रहे गुंडों के पास भी वही हथियार हैं जो पहले सिर्फ सेना के पास हुआ करते थे." वह मानते हैं कि कैमरून में अपराध का एक बड़ा कारण नाइजीरिया जैसे पड़ोसी अफ्रीकी देशों में कट्टरपंथी विद्रोहियों की वजह से बढ़ रही हिंसा भी है.

पूरा अफ्रीका चपेट में

यह परेशानी सिर्फ कैमरून की नहीं है. केन्या के रीजनल सेंटर ऑन स्माल आर्म्स के डैन ओसानो कहते हैं, "अफ्रीका में छोटे हथियार ज्यादा बड़ा मुद्दा रहे हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल छोटी बड़ी लड़ाइयों में होता रहा है." परेशानी सिर्फ पड़ोस में हो रही हिंसा नहीं है. बंदूकों की कम कीमत भी एक बड़ी वजह है. एक मशीन गन तकरीबन साढ़े तीन हजार रुपये में खरीदी जा सकती है.

ओसानो के साथ काम करने वाली एंजेला बइया वदेयुआ को लगता है कि निर्यात के लिए बंदूकों का अत्यधिक उत्पादन और उनकी बिक्री पर नजर न होना भी बड़ा कारण है. उन्होंने कहा, "हम जिम्मेदारी बंदूकें बनाने वालों पर भी नहीं डाल सकते. यह पता होना जरूरी है कि जिन देशों को वे हथियार बेच रहे हैं वे देश कहीं विद्रोहियों को बंदूकें तो नहीं पहुंचा रहे हैं."

सुधार की उम्मीद

हथियारों की खरीद फरोख्त को काबू में करने के लिए कैमरून सरकार ने एक ऐसे कानून को मंजूरी दी है जिसके तहत सरकार छोटे हथियारों के मामलों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करेगी. इसके अलावा किंशासा समझौते को लागू करने की भी बात चल रही है.

कैमरून के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इस कानून के आने के बाद हालात बदलेंगे और लोग सुरक्षित महसूस कर सकेंगे.

रिपोर्ट: एनगाला किलियन चिमटम/एसएफ

संपादन: ईशा भाटिया

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