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हादसों का शिकार होते कंगारू

७ अगस्त २०१४

कंगारू ऑस्ट्रेलिया की पहचान हैं. लेकिन धीरे धीरे इनकी संख्या इतनी कम होती जा रही है कि इस पहचान के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है. इनकी जान ले रही हैं सड़क दुर्घटनाएं.

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Australien Landschaft Ayers Rock mit Verkehrsschild Känguru
तस्वीर: Reuters

ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स राज्य में हर दिन सात हजार जानवर सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. यानि केवल एक राज्य में ही साल भर में 25 लाख जानवर अपनी जान गंवा रहे हैं. इन जानवरों की मौत की वजह है लोगों की लापरवाही. दूर दराज इलाकों में अक्सर जंगलों के बीच से हाइवे गुजरते हैं. इन हाइवे पर लोग काफी तेजी से गाड़ी चलाते हैं और फौरन ही किसी जानवर के सामने आ जाने पर स्थिति से निपट नहीं पाते. कंगारुओं के अलावा सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले जानवरों में कोआला, पेंग्विन और कछुए भी शामिल हैं.

जानवरों को बचाने वायर्स नाम की संस्था सामने आई है. वायर्स यानि वाइल्डलाइफ इंफॉर्मेशन रेस्क्यू एंड एजुकेशन सर्विस. संस्था ने जगह जगह पर बोर्ड लगाए हैं ताकि लोगों को सतर्क किया जा सके. जिन इलाकों में जानवरों के होने की संभावना ज्यादा होती है वहां सरकार अक्सर बोर्ड लगाती है ताकि गाड़ी चालक एहतियात बरत सकें. लेकिन इन पर यह नहीं समझाया जाता कि दुर्घटना होने की स्थिति में क्या किया जाए.

ऐसे में लोग जानवरों को वहीं सड़क पर मरा हुआ छोड़ कर चल देते हैं. वायर्स संस्था लोगों के इसी रवैये को बदलना चाहती है. दुर्घटना होने पर लोग संस्था को फोन कर सकते हैं और वहां पहुंचने के लिए कह सकते हैं. संस्था में काम करने वाले सभी लोग स्वयंसेवी हैं. जनीन ग्रीन पिछले पंद्रह साल से इस संस्था के साथ जुड़ी हुई हैं. अब तक वह 1700 जानवरों की देखभाल कर चुकी हैं. फिलहाल वह दो नन्हें वॉम्बैट को संभाल रही हैं जिनकी मां की सड़क हादसे में जान चली गयी. कंगारू की ही तरह वॉम्बैट भी थैली में बच्चों को ले कर घूमते हैं. जनीन ने बताया कि बच्चे मरी हुई मां की थैली से जख्मी हालत में मिले.

Australien verletzte Tiere Tempolimit
न्यू साउथ वेल्स में हर साल भर 25 लाख जानवर मारे जाते हैं.तस्वीर: DW/C. Atkinson

संस्था की लोइस कात्स बताती हैं कि मां की मौत के कई कई दिन बाद तक भी बच्चे थैली में जिंदा रह सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि हादसे के बाद लोग जल्दबाजी में वहां से भाग जाने की जगह गाड़ी से बाहर निकल कर जानवर की सुध लें. ऐसा भी हो सकता है कि गाड़ी से टकराए हुए जानवर की जान ना गई हो और वक्त से उसे अस्पताल पहुंचाने से वह बच जाए.

वह कहती हैं कि जानवर एक बार जिस रास्ते को समझ लेते हैं, फिर वे सालों साल उसी रास्ते को अपनाते हैं. उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता कि अब वहां से जंगल का एक टुकड़ा गायब हो गया है और वहां सड़क बन गई है जिस पर इंसान गाड़ियां चलाते हैं. सबसे ज्यादा हादसे भोर और सूर्यास्त के समय होते हैं क्योंकि सुबह के वक्त जानवर अपना खाना इकठ्ठा करने निकलते हैं और शाम को घर लौटते हैं.

लोइस कात्स चेतावनी देती हैं कि अगर इस बारे में कुछ नहीं किया गया, तो देश अपनी पहचान खो देगा, "ये जानवर हमारे देश की पहचान हैं. अगर ये गायब हो गए, तो लोग ऑस्ट्रेलिया के बारे में जो सोच रखते हैं, वह भी खो जाएगी."

रिपोर्ट: सोन्या एंजेलिका/ईशा भाटिया

संपादन: महेश झा