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हालात कश्मीर में खराब, मार झेल रहा है इलाहाबादी अमरूद

सुहैल वहीद, लखनऊ
११ अक्टूबर २०१६

कश्मीर में महीनों से जारी अशांति के कारण उत्तर प्रदेश के शहरों में कश्मीरी सेब अमरूद के भाव बिक रहा है. लेकिन बाजार में कश्मीरी सेब आने से अमरूद की बिक्री पर असर हुआ है.

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Indien Straßenverkäufer Obstverkäufer  Lucknow
तस्वीर: DW/S.Waheed

लखनऊ की फल मंडी मलीहाबादी आम के लिए मशहूर तो है ही, इलाहाबाद के अमरूद के लिए भी जानी जाती है. इलाहाबादी अमरूद अंदर से लाल निकलता है. यह अमरूद अपने खास स्वाद और अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. सीजन आता है तो हर तरफ यही अमरूद बिकता दिखता है. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि सर्दी की आमद पर लखनऊ में सड़क किनारे इलाहाबादी अमरूद की जगह कश्मीर का सेब बिकता दिख रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह सेब अमरूद के भाव बिक रहा है.

लखनऊ के बाजार हिमाचल के सेब के आदी हैं. इस बार कश्मीर से सेब इसलिए आ रहा है क्योंकि वहां पर पिछले कई महीनों से कर्फ्यू चल रहा है और यह वह सेब है जो विदेशों में निर्यात किया जाता है. कर्फ्यू के चलते वहां का सेब एक्सपोर्ट नहीं हो पा रहा है तो आस पास के बाजारों में उतार दिया गया है.

फल आढ़ती दीपू कहते हैं, "आजकल लखनऊ में रोजाना दस बारह ट्रक माल आ रहा है. कानपुर में करीब 25 ट्रक आ रहा है, इसी तरह मेरठ में 15-20, वाराणसी में करीब 8-10 ट्रक सेब के आ रहे हैं. कुल मिलाकर औसतन पूरे उत्तर प्रदेश में रोजाना इस सेब के 150 ट्रक आ रहे हैं." एक ट्रक में औसतन 15 किलो वाली 150 पेटियां होती हैं. दीपू बताते हैं कि यह कच्चे माल का धंधा है इसलिए इसकी लिखा पढ़ी बहुत ज्यादा नहीं की जाती है. अधिकतर काम मौखिक होते हैं.

एक अन्य आढ़ती राजू ने बताया कि इस बार जो सेब दिल्ली से लेकर लखनऊ तक सड़कों पर 40 रुपए से 70 रुपए किलो बिक रहा है वह सामान्य सीजन में 200 रुपए प्रतिकिलो से ऊपर बिका करता था. अमरूद भी करीब 40 रुपए से शुरू होकर 60 रुपए प्रति किलो तक जाता था. उनके मुताबिक इतनी उम्दा क्वॉलिटी का सेब सड़कों पर ठेले पर बिकेगा, उन्होंने सोचा भी नहीं था.

उन्होंने बताया कि दिल्ली की आजादपुर मंडी से यह सेब दक्षिण दिल्ली के पॉश इलाकों में ही सप्लाई होता था. कश्मीर के बिगड़े हालात के कारण दिल्ली के व्यापारियों ने यह माल दिल्ली सहित उत्तर भारत में उतारा है. उनके अनुसार यह सेब क्वॉलिटी के हिसाब से काफी अच्छा और स्वादिष्ट होता है.

अपने दशहरी आमों के लिए मशहूर लखनऊ की आम पट्टी मलीहाबाद के आढ़ती मोहम्मद रिजवान का कहना है कि इस सर्दी के आगमन पर जो अमरूद आना चाहिए था वह इसीलिए नहीं आ पा रहा है क्योंकि दिहाड़ी पर लगने वाले ठेलों ने अमरूद की जगह लगभग उसी दाम में मिल रहे कश्मीर के सेब को बेचना शुरू कर दिया है.

इलाहाबादी अमरूद और मलीहाबाद के अमरूद को मिलाकर पूरे उत्तर प्रदेश और दिल्ली को मिलाकर करीब डेढ़ सौ क्विटंल अमरूद की प्रति सप्ताह खपत होती रही है. लेकिन इस बार अभी तक 40 क्विंटल भी नहीं हो पाया है. उनके मुताबिक जो लोग अमरूद खाते थे उन्हें लगभग उन्हीं दामों पर सेब मिल रहा है तो अमरूद का बाजार तो खराब होगा ही. रिजवान कहते हैं कि कश्मीर के सेब पर प्रतिकिलो करीब 10 रुपए की बचत हो रही है जिसमें फुटकर वालों को पहली बार पांच रुपए प्रतिकिलो का फायदा हो रहा है.

सेब के कारोबार का एक फायदा यह भी है कि वह अमरुद के मुकाबले देर तक खराब नहीं होता. लखनऊ के सिविल अस्पताल के पास सेब का ठेला लगाने वाले रघु के मुताबिक इस सेब को बेचने में अमरूद से अधिक फायदा है क्योंकि यह हफ्ते भर से भी ज्यादा चल जाता है और अमरूद तो तीन चार दिन में गलने लगता है. इसलिए सेब को बेचने में फायदा ही फायदा है. लखनऊ के डॉक्टर समरजीत कहते हैं कि कश्मीरी सेब सस्ते मिलने से मरीजों को खास तौर से फायदा हो रहा है. पहले जो सेब बाजार में बिकता था उसकी क्वॉलिटी इतनी अच्छी नहीं होती थी. यह सेब काफी अच्छा है.