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हीरा है पर तराशने वाले नहीं

३ जनवरी २०१३

इस्राएल में हीरे का कारोबार कम हो रहा है. हालांकि वहां दुनिया का सबसे बड़ा हीरा बाजार है, लेकिन कीमती पत्थर की कटाई और पॉलिश करने वालों की जगह भारत और चीन के सस्ते कारीगरों ने ले ली है.

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तस्वीर: AP

इस्राएल हीरे तराशने और पॉलिशिंग के काम को फिर से देश में वापस लाना चाहता है. इसके लिए वह अल्ट्रा ऑर्थोडॉक्स यहूदियों को इस काम में लगाने की योजना बना रहा है जो आम तौर पर कोई काम नहीं करते. वे अपना समय पूजापाठ, प्रार्थना और पढ़ने में लगाते हैं. वे या तो काम करने की हालत में नहीं हैं या काम करना नहीं चाहते, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था पर बोझ बन गए हैं.

पूजापाठ के साथ काम

इस्राएल में अति धार्मिक लोगों की संख्या करीब 10 फीसदी है. उन्हें अनिवार्य सैनिक सेवा से छूट है और बैंक ऑफ इस्राएल के अनुसार उनमें से सिर्फ आधे लोग काम करते हैं. सरकार ने अगले पांच साल में उन्हें श्रम बाजार में शामिल करने के लिए 20 करोड़ डॉलर खर्च करने का फैसला किया है. अल्ट्रा ऑर्थोडॉक्स की नई पीढ़ी में बहुत से लोग काम करना चाहते हैं. 38 वर्षीय वेजालल कोहेन कहते हैं कि सवाल उपयुक्त काम खोजने का है.

इस्राएली हीरा व्यापारी संघ के अध्यक्ष बूमी ट्राउब कहते हैं कि हीरे की पॉलिश करने का काम अनूठा है. यह उनकी पवित्र जीवन शैली में बाधा नहीं डालेगा. वे कहते हैं, "पेशा एकदम उपयुक्त है. आपका पत्थर से लेनादेना है और यदि आप प्रार्थना के लिए जाना चाहते हैं तो कोई आपको रोकेगा नहीं." ट्राउब के दफ्तर में जाने के लिए दरवाजे पर अंगुली की स्कैनिंग की जाती है. चार इमारतों वाले डायमंड एक्सचेंज में सुरक्षा बंदोबस्त काफी सख्त है. यहां हर साल 25 अरब डॉलर का हीरों का कारोबार होता है.

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तस्वीर: AP

वित्तीय संकट की मार

दुनिया भर में निकाले जाने वाले हीरे के पत्थर का एक तिहाई हिस्सा इस्राएल से होकर गुजरता है. उसके औद्योगिक निर्यात का 20 फीसदी हीरे का निर्यात है. जब 64 साल पहले यहूदी मुल्क बना तो हीरे का कारोबार देश का सबसे स्वाभाविक कारोबार बना क्योंकि हिंसा और उत्पीड़न से भागने वाली पीढ़ी के लिए छोटे कीमती पत्थरों का व्यापार सबसे आसान था. अब भारत और चीन से मिलने वाली चुनौती के बाद इस्राएल में हीरा उद्योग को फिर से पटरी पर लाने में लाखों डॉलर लगेंगे. पहली बार हीरा उद्योग सरकार से मदद मांग रहा है. और सरकार इस उम्मीद में मदद को तैयार हो गई है कि अधिक से अधिक अल्ट्रा ऑकर्थोडॉक्स यहूदियों को काम पर लगाया जा सकेगा.

हीरे के व्यापार पर वैश्विक वित्तीय संकट की भी मार रही है. इस्राएल भी इसकी चपेट में आने से नहीं बचा. 2009 की शुरुआत में हीरे का कारोबार घटकर आधा रह गया. हालांकि 2011 में यह फिर से संकट के पहले के स्तर पर आ गया, लेकिन 2012 में फिर इसमें गिरावट की आशंका है. इस्राएल डायमंड एक्सचेंज के प्रमुख यार शहर का कहना है कि नुकसान भारत जैसे प्रमुख बाजारों की तुलना में कम रहा है. इस्राएली कंपनियों के कम कर्ज की ओर इशारा करते हुए वे कहते हैं, "दूसरे केंद्रों पर हमारी तुलना में दबाव ज्यादा था क्योंकि हम ज्यादा कंजरवेटिव हैं."

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तस्वीर: Fotolia/fotografci

'मजाल उबराचा'

लेकिन दूसरी समस्याएं भी रही हैं. कच्चे माल की कीमतों में पिछले सालों में तैयार माल की तुलना में ज्यादा उछाल रहा है. इसकी वजह से मुनाफे में कमी आई है. इसके अलावा 2012 के शुरुआत में मनी लाउंडरिंग और करचोरी के कांडों के कारण ग्राहकों में डर रहा है. जांच पूरी हो गई लेकिन अब तक किसी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल नहीं हुए हैं. तेल अवीव के बाहरी इलाके में स्थित रमत गन की हीरा मंडी दुनिया की सबसे बड़ी मंडी है. यहां गैर सदस्यों को हथियारबंद गार्ड ले जाते हैं. एक दीवार पर ऐसे व्यापारियों के नाम लिखे हैं जिनके साथ कारोबार न करने को कहा जाता है.

हॉल में लंबे काले टेबल की लाइनें हैं जिनपर हीरे आसानी से हाथ बदलते हैं. टेबल के एक ओर विक्रेता बैठता है तो दूसरी ओर अंजान खरीदार जो दुनिया में कहीं का भी हो सकता है. वे हीरों को मैग्निफाइंग ग्लास की मदद से देखते हैं, उसकी जांच करते हैं, तौलते हैं और डील पक्की होने पर कहते हैं, मजाल उबराचा. हिब्रू का यह शब्द हीरा व्यापारियों में दुनिया भर में जाना जाता है, इसके मायने हैं शुभकामनाएं.

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अल्ट्रा ऑर्थोडॉक्स यहूदीतस्वीर: Reuters

भारत और चीन

2011 में इस्राएल ने 4.4 अरब डॉलर के हीरे के पत्थर आयात किए जबकि उसने 7.2 अरब डॉलर के पॉलिश किए हुए हीरे निर्यात किए. कीमत के मुताबिक अमेरिका में बेचा गया हर दूसरा हीरा इस्राएल से आया. लेकिन इसमें से सिर्फ 1.5 अरब डॉलर के हीरे को इस्राएल में तराशा गया. यह एक दशक पहले के मुकाबले बहुत ही कम है. बाकी को तराशने और पॉलिशिंग के लिए या तो विदेशी कंपनी को भेजा गया या विदेश में स्थित इस्राएली कंपनी को.

अरबपति कारोबारी लेव लेविएव कहते हैं, "एक समय इस कमरे में बैठने वाला हर शख्स मैनुफैक्चरर हुआ करता था." उन्होंने कहा कि हीरे का कोई कारोबारी ऐसा नहीं था जो खुद उसे बनाता न हो लेकिन इस बीच ऐसा नहीं रहा. उनका कहना है कि हीरे के पत्थरों के सबसे बड़े आयातक भारत और चीन में तनख्वाहें इतनी कम हैं कि उससे प्रतिस्पर्धा नहीं की जा सकती. इस्राएल अब तक बडे़ कीमती हीरों पर जीता रहा है जिसके खरीदार इस बात के लिए ज्यादा पैसा देते रहे हैं कि उसका निर्माण घर के करीब हो रहा है.

अब स्थिति बदल रही है. विकासशील देशों में भी कामगार अधिक वेतन मांग रहे हैं. यार शहर का कहना है कि तनख्लाह का अंतर अब इस बात को उचित नहीं ठहराता कि हीरों की पॉलिशिंग विदेश में कराई जाए. अब इस्राएल में पहली बार एक लैब खुली है जिसमें हीरा निर्माता अपने हीरों की जांच करवा सकते हैं. अब उन्हें इसके लिए अमेरिका नहीं जाना होगा. इसकी वजह से सालाना कारोबार में 5 करोड़ डॉलर की वृद्धि की उम्मीद की जा रही है.

1980 के दशक में जब इस्राएल में हीरा उद्योग अपने चरम पर था तो हीरे की कटाई और पॉलिशिंग में 20,000 लोग लगे थे. यह घटकर अब 2,000 रह गया है. फैक्टरी मालिक रॉय फुक्स कहते हैं, "नए लोग नहीं आ रहे हैं. अधिकांश पॉलिश करने वाले 50 से ज्यादा उम्र के हैं. यदि नया खून नहीं आता है तो भविष्य में मैनुफैक्चरिंग खत्म हो जाएगी." उद्योग में नया खून लाने के लिए उद्योग को मदद की जरूरत है. और मदद की उम्मीद सरकार से है.

एमजे/आईबी (रॉयटर्स)

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